पानी और वृक्षों का सरेआम हो रहा विनाश,दिखता फिर भी आंखे बंद कर ली जाती..!
गर्मी का मौसम आता है तो पानी और वृक्षों का जिक्र होने लगता है प्रशासन हरकत में आ जाता है! कुर्सियों पर बैठे बैठे बड़े नेता लाखों वृक्ष लगाने की घोषणा करते हैं! जिन नेताओं को ज्यादा पौधारोपण कर अपने वोट फिर उगाने हैं व योजना बना कर पौधे लगाने का उत्सव निपटाते हैं!
सर्दी में सोई हुई पर्यावरण प्रेमी संस्थाएं स्कूल या अन्य जगहों पर पानी की कमी और उसके सदुपयोग जैसे विषयों पर गोष्ठियां करवाने लगती हैं!जितना जल हम धरती की कोख से निकाल चुके हैं उसे वापस करने के उपाय हम सभी को पता हैं लेकिन ईमानदारी से वापस करते नहीं.!वैसे तो सुविधाभोगी इंसान का हाल अब यह है कि उसे न ज्यादा ठंड चाहिए न ज्यादा गर्मी और न बहुत बरसात यह सब उसे पसंद नहीं है वृक्ष लगाने का समय नहीं है!मकान के आसपास जमीन नहीं है वृक्षारोपण के नाम पर मकानों की छतों पर गमलों में सब्जी उगा रहे हैं या दिखावटी पौधे! सड़कें चौड़ी करने के नाम पर लाखों पेड़ फना किए जाते हैं और योजनानुसार आश्वासन दिए जाते हैं कि जितने वृक्ष काटे जाएंगे उतने ही दूसरी जगह लगाए जाएंगे लेकिन फिर व्रक्ष काटने वाले कह देते हैं कि उपयुक्त जगह नहीं मिल पाई जहां वृक्ष रोपे जा सकते!नई इमारतें बनाते हुए कितने ही वृक्ष काट दिए जाते हैं ये इमारतें ऐसी जगह क्यों नहीं बनाई जा सकतीं जहां खाली जमीन है!
पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क निर्माण के मलबे में कई प्राकृतिक जल स्रोत दबा दिए जाते हैं! वृक्ष दीवारों में चिन दिए जाते हैं!कोई आवाज निकालता भी है तो अनसुनी कर दी जाती है!कुल मिलाकर कुव्यवस्था में फंसी जख्मी विडंबना है कि इंटे सीमेंट लोहे और सीमेंट से होता विकास प्रशंसित हो रहा है लेकिन पानी और वृक्षों का सरेआम हो रहा विनाश नहीं दिखता!यह बड़ी बेबसी का आलम है जो दिखता हैं पर आंखे बंद कर ली जाती।