गैरयादव पिछड़े को प्रदेश अध्यक्ष व ब्राह्मण,दलित,मुस्लिम को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाना रहेगा उचित

लखनऊ। दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है।केन्द्र की सत्ता पाने के लिए कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से सक्रिय होना पड़ेगा।उत्तर प्रदेश में ओबीसी की संख्या 54 प्रतिशत से अधिक,गुजरात में 52 प्रतिशत,मध्यप्रदेश में 50.09 प्रतिशत है और तमिलनाडु, कर्नाटक,आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा,महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़, झारखण्ड,बिहार,हरियाणा, असम,पश्चिम बंगाल आदि में भी 50 प्रतिशत से अधिक है। भारतीय पिछड़ा दलित महासभा के राष्ट्रीय महासचिव चौ. लौटनराम निषाद ने कांग्रेस हाई कमान से पिछड़ी,दलित जातियों को जोड़ने के लिए विशेष ध्यान देने की अपील की है।पार्टी नेतृत्व से ओबीसी,एससी, एसटी के सामाजिक न्याय के मुद्दे पर मुखर होकर उठाने की आवश्यकता पर बल दिया है।बताया कि अतिपिछड़ी जातियों की संख्या 45 प्रतिशत से अधिक है।गैर जाटव दलित जातियों की आबादी 8-9 प्रतिशत है। 2009 में जब कांग्रेस केन्द्र में सरकार बनाई थी,उस समय उसे उत्तर प्रदेश में 22 सीटों पर विजय मिली थी।उन्होंने उत्तर प्रदेश पिछड़ी जातियों को जोड़ने व पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए मजबूत आधार वाले अतिपिछड़े को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी के प्रदेश अध्यक्ष व ब्राह्मण,मुस्लिम,दलित को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने पर जोर दिया है।वही राष्ट्रीय कार्यसमिति में उत्तर प्रदेश व बिहार से पिछड़ों,अतिपिछडों को प्रतिनिधित्व दिए जाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
निषाद उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण की जानकारी देते हुए बताया कि अविभाजित उत्तर प्रदेश में द्विज(ब्राह्मण, राजपूत,भूमिहार,कायस्थ, त्यागी,वैश्य) जातियों की कुल संख्या 20.50 प्रतिशत थी,जिसमें 9.2% ब्राह्मण,7.2% राजपूत,2.5% वैश्य,1.0% कायस्थ,0.04% भूमिहार,0.01% त्यागी व 0.01% खत्री थे।उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के अलग होने से राजपूत व ब्राह्मण का बड़ा भाग कटकर उधर चला गया,जिससे उनकी संख्या में लगभग 5% की कमी होना स्वाभाविक है।मण्डल कमीशन के अनुसार देश में 13.10% सवर्ण,43.70% हिन्दू पिछड़ी जाति,17.60% गैर हिन्दू अल्पसंख्यक,16.60% अनुसूचित जाति,8.60% अनु.जनजाति व 0.40% रेसलर व अन्य थे।
निषाद ने आगे बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार की सामाजिक न्याय समिति-2001 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में हिन्दू-मुस्लिम सवर्ण-20.94% थे।पिछड़ी जातियों में शामिल मुख्य जातियों में यादव-10.48%,निषाद/कश्यप-7.98%,कोयरी/मौर्य/काछी/कुशवाहा/शाक्य/सैनी-4.51%,कुर्मी-4.03%,लोधी/किसान-3.28%,पाल/गड़ेरिया-2.39%,विश्वकर्मा(बढ़ई, लोहार)-2.26%,तेली/साहू-2.18%,जाट-1.95%,प्रजापति-1.84%,नाई/सबिता-1.63%,राजभर-1.32%,चौहान-1.26%,गूजर-0.92% व कानू/भुर्जी-0.77% थे।गौर करने वाली बात है कि यादव,कुर्मी,जाट,गूजर, कुशवाहा/मौर्य,राजभर,चौहान, पाल आदि मुख्य रूप से ग्रामीण अंचल में पाई जाने वाली जातियाँ हैं,वहीं निषाद, कश्यप,लोधी,विश्वकर्मा,नाई, कानू/भुर्जी,प्रजापति,साहू/तेली ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में समान रूप से पाई जाति हैं,जिसके कारण कुल जनसंख्या में इनकी संख्या का प्रतिशत बढ़ जाएगा और यादव,कुर्मी,मौर्य/कुशवाहा,पाल,जाट आदि की संख्या घट जाएगी।
उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जातियों में मुख्य रूप से चमार/जाटव,पासी,धोबी,कोरी,वाल्मीकि, खटिक, धानुक,कोल,गोंड़ का नाम शामिल है।उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण में सिर्फ 4 जातियाँ ऐसी हैं जो 1 प्रतिशत से अधिक हैं।अनुसूचित जातियों में चमार/जाटव-11.43%,पासी-3.26%,धोबी-1.59%,कोरी-1.10%,वाल्मीकि-0.61%,खटिक-0.37%,धानुक-0.32%,कोल-0.23% व गोंड़-0.22% हैं।सेन्सस-2011 के अनुसार 66 अनुसूचित जातियों की कुल संख्या 20.53% व जनजातियों की 0.57% थी।
कांग्रेस के एक प्रदेश स्तरीय नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मीडिया में प्रदेश अध्यक्ष के लिए आचार्य प्रमोद कृष्णन व पूर्व नौकरशाह व पूर्व सांसद पीएल पुनिया का नाम चर्चा में है,लेकिन वर्तमान परिवेश में दोनों नाम किसी तरह भी उपयुक्त नहीं है।पुनिया जिस धानुक बिरादरी के हैं,उत्तर प्रदेश में इस जाति की संख्या महज 0.32 प्रतिशत ही है।किसी मजबूत जातीय संख्या वाले ओबीसी को प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने से कांग्रेस को मजबूती मिल सकती है।सवर्ण जातियाँ तो हाल-फिरहाल भाजपा से दूर नहीं हो सकतीं।