नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट इण्डिया ने देश में इमरजेंसी का किया था विरोध

निर्भय सक्सेना: नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट इंडिया (एन. यू. जे. आई) से जुड़े स्वर्गीय कपिल वर्मा, बलवीर पुंज व स्वर्गीय राजनाथ सिंह सूर्य सांसद भी बने। पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने, मजीठिया वेज बोर्ड आदि की मांग को लेकर कई बार दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन भी किए गए। जिसमें नंद किशोर त्रिखा, राजेंद्र प्रभु, रास बिहारी, मनोज वर्मा, मनोहर सिंह, उपजा के रमेश चंद जैन, अरुण जायसवाल, अनिल माहेश्वरी, अजय कुमार, निर्भय सक्सेना, राकेश शर्मा, जी सी श्रीवास्तव, निरपेंदर श्रीवास्तव, सुनील चौधरी आदि ने समय समय पर भाग लिया। बरेली के उपजा अध्यक्ष पवन सक्सेना, दिनेश पवन, फिरासत हुसैन, सुभाष चौधरी, फहीम करार, जनार्दन आचार्य ने भी दिल्ली के जंतर मंतर के प्रदर्शन ने भी लिया था। पत्रकारों के राष्ट्रीय संगठन नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट इण्डिया (एन. यू. जे. आई.) का राष्ट्रीय अधिवेशन दिल्ली में 23 – 24 जनवरी 1972 को स्थापना के बाद हुआ। इस कार्यक्रम का उद्घाटन भाषण तत्कालीन विशिष्ट विधिवेतत्ता श्री एम. सी. छागला ने किया था और अध्यक्षता तत्कालीन इण्डियन एक्सप्रेस के मुख्य संपादक फ्रैंक मोरेस ने की। ‘दैनिक नवभारत टाइम्स’ के तत्कालीन प्रधान संपादक अक्षय कुमार जैन स्वागत समिति के अध्यक्ष थे।

इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये प्रमुख पत्रकार जिन्होंने एन. यू. जे. आई की स्थापना में भागीदारी की थी उनमें थे सर्वश्री वी के. नरसिम्हन (इण्डियन एक्सप्रेस), डी.आर. मनकेकर (दि मदरलैण्ड), एस. के. राव (दि पाईनियर), मीनाक्षी सुन्दरम (दि मेल), पृथ्वीश चक्रवर्ती (हिंदुस्तान टाइम्स), बालेश्वर अग्रवाल (हिंदुस्तान समाचार), एस. आर. शुक्ला (हिंदुस्तान स्टैण्डर्ड), पीयूष कांति राय (‘द हिंदू), सोमनाथ भट्टाचार्य (आनंद बाजार पत्रिका), के एन.मलिक (टाइम्स आफ इंडिया), हिरणमय कारलेकर (द स्टेट्समेन), राजेन्द्र प्रभु (आर्बिट), रामाशंकर एवं राजेन्द्र कपूर आदि उपस्थित रहे थे। तत्कालीन भारत सरकार का रुख ‘नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट इंडिया’ (एन.यू.जे.आई) के प्रति बहुत नकारात्मक रहा था।संघठन को केन्द्रीय मान्यता भी नहीं दी गई थी। दूसरी तरफ ‘इंडियन फेडरेशन आफ वर्किग जर्नलिस्ट’ (आई. एफ. डब्ल्यू. जे), जो वामपंथी विचारधारा के पत्रकारों के चंगुल में थी। उसे ही केंद्र सरकार की का सहयोग मिला था। देश में जब 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने देश में ‘आपातकाल’ एवं ‘प्रेस सेंसरशिप’ की घोषणा कर दी। जिसके चलते समाचार पत्रों में उस समय सरकार के खिलाफ कोई भी समाचार नहीं छाप सकता था जिसने कुछ लिखा या प्रयत्न किया अथवा संपादकीय स्थान को विरोध स्वरूप खाली छोड़ा उन्हें जेल में डाल दिया गया। इनमें प्रमुख पत्रकार कुलदीप नैयर, बी. एन. सिन्हा, श्याम खोसला, नरेन्द्र मोहन गुप्ता, यादवराव देशमुख, गौर किशोर घोष, रमेश चन्द्र एवं कई अन्य पत्रकार जेल में डाल दिये गये। जो कुछ पत्रकार भूमिगत हो गये थे उनके गिरफ्तारी वारंट निकालकर बाद में जेल में डाला गया। जिसमें पीयूष कांति राय भी शामिल थे। भारत सरकार ने एन. यू. जे. आई. के अध्यक्ष रहे पृथ्वीश चक्रवर्ती को बुलाकर प्रेस सेंसरशिप का समर्थन करने की अपील की। पर पृथ्वीश चक्रवर्ती समर्थन ने इससे इंकार कर दिया था। देश में जनजागरण के चलते प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी वर्ष 1977 में चुनाव कराने के लिए राजी हुईं। प्रेस सेंसरशिप के कारण श्रीमती इन्दिरा गांधी तक सही समाचार नहीं पहुंच पा रहे थे जिसके फलस्वरूप पूरे उत्तर भारत में चुनावों में कांग्रेस का सफाया हो गया। यहां तक वह स्वयं रायबरेली से एवम् उनके पुत्र संजय गांधी भी अमेठी से लोकसभा चुनाव हार गये। बाद में जनता पार्टी की सरकार बनीं जिसमें श्री एल. के. अडवाणी ने एन. यू. जे. आई. को मान्यता दिलवाई। एन. यू. जे. आई से जुड़े कपिल वर्मा, बलवीर पुंज एवं राजनाथ सिंह ‘सूर्य’ भी समय समय पर राज्यसभा सांसद रहे। तब एन. यू. जे. आई. को भी प्रेस कौंसिल आफ इंडिया एवं पत्रकारों के वेतन बोर्ड, केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों के मान्यता समितियों को भी प्रतिनिधित्व मिला। इन सब समितियों में पहले वेतन बार्ड में मीनाक्षी सुन्दरम् ने सार्थक सुझाव देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में पत्रकारों के वेतन बोर्ड में अरूण वागची, श्याम खोसला, नंद किशोर त्रिखा, लक्ष्मण उपाला इसके सदस्य रहे। एन. यू. जे. आई के द्वारा वेतन बोर्डों के सामने प्रस्तुत किये गये प्रतिवेदनों को बहुत सराहा गया। प्रतिवेदनों में क्योंकि अधिकांश वेतन बोर्ड के प्रतिवेदन एन. यू. जे. आई के द्वारा दिये गये तथ्यों से प्रभावित थे। इमरजेंसी के दौरान लागू की गयी प्रेस-मीडिया सेंसरशिप भी अन्तिम कुप्रयास नहीं थी। 1988 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने एक ‘बिहार प्रेस बिल’ को  लाने का दुस्साहस किया।  एन. यू. जे.आई. ने इस विषय पर न केवल बिहार बल्कि समस्त देश भर में इसके खिलाफ आन्दोलन चला दिया। परिणाम स्वरूप बिहार सरकार को मजबूरन बाध्य होकर उक्त ‘बिहार प्रेस बिल’ वापस लेना पड़ा। इसके अतिरिक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा भी इसी से मिलता जुलता ‘मानहानि विधेयक’ लाकर एक कुप्रयास और किया गया। परंतु एन. यू. जे. आई. द्वारा संचालित देशव्यापी आंदोलन के चलते सरकार का यह कुप्रयास भी असफल रहा जिसमें एन. यू. जे. आई. की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पत्रकारों के संगठनों में नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट इंडिया के अलावा अन्य संस्थायें जैसे इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (आई. एफ. डव्ल्यू.जे) एवं इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन (आई जे.यू) आते हैं। परन्तु अन्य संस्थाओं में कभी चुनाव नहीं होते थे। अर्थात् फर्जी तरीके से चुनाव कराये जाते हैं। परिणामस्वरूप आई. एफ. डब्ल्यू. जे. से अलग हुए पत्रकारों ने आई. जे. यू इण्डियन जर्नलिस्ट यूनियन बनाया, परंतु वहां उस संस्था में भी चुनाव फर्जी तरीके से ही होते हैं। एन. यू. जे. आई. के संविधान में प्राविधान रखा गया है कि अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय महामंत्री लगातार अपने पदों पर एक बार से अधिक लगातार नहीं रह सकते हैं। इसी स्थिति का प्राविधान एनयूजेआई से संबंधित राज्य ईकाइयों पर भी है। इसके अलावा पत्रकारों में नैतिक मानदण्ड बनाये रखने के लिए एन. यू. जे. आई प्रयासरत रहा है। इसी क्रम में 1981 में आगरा अधिवेशन में एक ‘आगरा डिक्लेयरेशन’ के नाम से पत्रकारों ने नैतिक मानदण्ड की घोषणा भी जा चुकी है। कुछ साल पूर्व उस घोषणा के संदर्भ में उपजा के द्वारा समय समय पर परिचर्चा कराई गई एवं पत्रकारों को व्यावसायिक प्रशिक्षण भी  पत्रकारों को दिया गया। इसी तरह अन्य राज्यों में समय समय पर प्रशिक्षण का कार्यक्रम किया किया जाता रहता है। एवं पत्रकार उत्पीड़न के खिलाफ आन्दोलन चलाये जाते हैं । एन. यू. जे. आई. का संबंध अन्तर्राष्ट्रीय पत्रकार संगठन (इण्टरनेशल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स) आई. एफ. जे, जो कि विश्व का सबसे बड़ा पत्रकार संगठन है, से है जिसका केन्द्रीय कार्यालय यूरोप के ब्रुसेल्स में है। सन् 1988 में हालैण्ड के मसरिक्ट में अट्ठारहवीं वर्ल्ड कांग्रेस में एन.यू.जे. आई को एफीलियेशन यानी जोड़ने की स्वीकृति दी गयी। उक्त बैठक में श्री पी.के. राय तत्कालीन एन. यू. जे. आई. उपाध्यक्ष, अच्युतानंद मिश्र, श्याम खोसला, राजेन्द्र प्रभु तथा के.एन. गुप्ता ने भी भागीदारी की थी। अब आई. एफ. जे तमाम कई कार्यक्रम एन यू जे आई के सहयोग से होते रहते हैं। कुछ वर्ष पूर्व आई. एफ. जे. के स्पेन मे अर्न्तराष्ट्रीय अधिवेशन मे एन. यू. जे. आई. के तत्कालीन अध्यक्ष पी.के.राय ने इसमें  भाग लिया था। स्मरण रहे कि आई. एफ. डब्ल्यू. जे. को एन. यू. जे. आई. के विरोध के परिणामस्वरूप आई. एफ. जे. में शामिल नहीं किया गया था।  प्रतिवर्ष काठमांडू में भारत एवं उसके समीपवर्ती देश जैसे बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं श्रीलंका आदि के पत्रकार प्रतिनिधि भारत सहित त्रि-दिवसीय बैठक मे हिस्सेदारी लेकर दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में  मीडिया एवं प्रेस की आजादी के संबंध में हिस्सेदारी लेकर दक्षिण पूर्व एशिया के देशों मे मीडिया एवं प्रेस की आजादी के संबंध में विचार विनिमय करते हैं।

एन. यू. जे. आई. ने पत्रकारों एवं मीडिया कर्मियों के कल्याणार्थ दो अन्यसंस्थाओं की स्थापना भी की है। इनमें एक है जर्नलिस्ट्स वेलफेयर फाउण्डेशन, जिसके पूर्व अध्यक्ष पी. के.  राय रहे थे। ध्यान रहे कि स्वर्गीय दादा पीयूष कांति राय के कार्यकाल में ही फाउण्डेशन में पत्रकारों के हितार्थ सर्वाधिक धन संग्रह किया गया जो कि पचास लाख से भी ऊपर है जिसे बैंकों में एफडी के रूप में रखा गया था। जिसके ब्याज से गंभीर रूप से अस्वस्थ अथवा बड़ी दुर्घटनाओं के शिकार हुए एन. यू. जे.आई. के सदस्यों को अधिकततम तीस हजार तक की आर्थिक सहायता दी जाती है। साथ ही सामूहिक बीमा एवं मीडिया कर्मियों के संतानों को जो पत्रकारिता में स्नातकोत्तर शिक्षा अच्छी संस्थाओं में प्राप्त करते है, उन्हें प्रतिमाह सात सौ रूपये की छात्रवृत्ति भी दी जाती है।
इसके अलावा ‘एन. यू. जे. आई. स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एवं मास कम्यूनिकेशन’ (एन.यू.जे.आई. स्कूल) नाम की एक शाखा प्रारंभ हुई जहां पत्रकारिता की उच्च शिक्षा एवं पत्रकार प्रशिक्षण दे रही संस्थाओं को उचित दिशा निर्देश देने का कार्य भी सम्पादित होता है। वर्ष 2014 में अब स्कूल की गवर्निंगवाडी में उपजा के श्री निर्भय सक्सेना (बरेली) सदस्य/उपाध्यक्ष भी रहे थे।

एन. यू. जे. आई के 1972से 19740
तक एल मीनाक्षी सुंदरम अध्यक्ष। = एस के राव महामंत्री, 1974 से 1977 तक एच के गौर अध्यक्ष = पृथ्वीश चक्रवर्ती महामंत्री, 1977से 1979 तक एल मीनाक्षी सुंदरम अध्यक्ष = कपिल वर्मा महामंत्री, 1979 से 1981एल मीनाक्षी सुंदरम अध्यक्ष = राजेंद्र प्रभु महामंत्री, 1981 से 1983 कपिल वर्मा अध्यक्ष = के एन मालिक, नंद किशोर त्रिखा महामंत्री, 1983 से 1985 प्रथवीश चक्रवर्ती अध्यक्ष = नंद किशोर त्रिखा महामंत्री, 1985 से 1988 तक अरुण बागची अध्यक्ष = जितेंद्र कुमार गुप्ता महामंत्री, 1988 से 1990 तक राजेंद्र प्रभु अध्यक्ष = के एन गुप्ता महामंत्री, 1990 से 1993 तक बी के ढल, ए एन मिश्रा अध्यक्ष = महामंत्री, 1993 से 1996 तक नीतीश चक्रवर्ती अध्यक्ष = बलबीर कुमार पुंज महामंत्री, 1996 से 1998 तक राजेंद्र प्रभु अध्यक्ष = असीम कुमार मित्रा महामंत्री, 1998 से 2000 तक एन के त्रिखा अध्यक्ष = गुलाब बत्रा महामंत्री, 2000 से 2003 तक श्याम खोसला अध्यक्ष = पी के राय महामंत्री, 2003 से 2006 तक ए एन मिश्रा अध्यक्ष = महेश्वर दयाल गंगवार महामंत्री, 2006 से 2008 तक नंद किशोर त्रिखा अध्यक्ष = प्रज्ञा नंद चौधरी महामंत्री, 2008 से 2010 तक पीयूष कांति राय अध्यक्ष = आत्मदीप महामंत्री, 2010 से 2013 तक प्रज्ञा नंद चौधरी अध्यक्ष = रास बिहारी महामंत्री, 2013 से 2015 तक उप्पला लक्ष्मण अध्यक्ष = प्रसना मोहंती महामंत्री, रास बिहारी अध्यक्ष = रतन दीक्षित महामंत्री रहे थे। एन. यू. जे. आई. का राष्ट्रीय अधिवेशन 2 = 3 जून 1979 को भुवनेrशवर उड़ीसा, 7 = 8 फरवरी आगरा, 22 जनवरी 1983 को इच्छापुर, कोलकाता, 5 = 7 अप्रैल 1985 को बनारस, हरिद्वार में, 27 = 29 जून 1993 लुधियाना, पंजाब, 26 = 28 जून 2010 मानेसर हरियाणा, 15 = 16 जून 2013 अलीगढ़, 12 = 14 सितंबर 2015 कोटा, राजस्थान में हुआ। विभाजन के बाद विजयवाड़ा, एवम रोहतक में भी सम्मेलन हुए। अब एन यू जे आई भी दो गुटो में बंट गई है। जिसको दोनो गुट असली बता रहे हैं। इसी के चलते प्रेस काउंसिल में दोनो गुटों से कोई भी प्रतिनिधि अपना दावा सिद्ध नहीं कर पाया और बाहर हो गया। आपसी खींचतान में संघठन कोविड काल के बाद आजकल भी अस्तित्व विहीन ही बना हुआ है।