जो समस्याओं से संघर्ष करते हैं, वे जीत जाते हैं…

“किसके जीवन में समस्याएं नहीं आती? सबके जीवन में आती हैं। और उन समस्याओं से संघर्ष भी करना पड़ता है। जो लोग समस्याओं से संघर्ष करते हैं, वे जीत जाते हैं, समस्याओं को दूर कर लेते हैं, और सुख पूर्वक जीवन जीते हैं।”

“परंतु जो लोग समस्याओं पर विचार ही नहीं करते, और अंधाधुंध बस काम करते जाते हैं, दूरदर्शिता का प्रयोग नहीं करते, वे अपने जीवन में असफल हो जाते हैं। वे समस्याओं को दूर नहीं कर पाते, बल्कि समस्याओं में और अधिक घिरते जाते हैं।”

“इसी प्रकार से कुछ दूसरे आलसी लोग भी होते हैं, जो समस्याओं को देखते हैं, उन पर चिंतन विचार करते हैं, और बस विचार ही करते रहते हैं। उन्हें दूर करने का प्रयत्न कुछ नहीं करते। अपनी समस्याएं दूसरों को सुना सुना कर, दूसरों का भी तनाव बढ़ाते हैं।” “इसको समस्या सुनाई, उसको सुनाई, इतना करके वे समझते हैं, कि हमने अपनी समस्या दूसरे को सुना दी, और हमारा काम पूरा हो गया। अब उसे दूर वह व्यक्ति करेगा। आपकी समस्या को वह क्यों दूर करेगा?” “जब तक आप स्वयं पुरुषार्थ नहीं करेंगे, कोई व्यक्ति आपकी सहायता नहीं करेगा।” इस सिद्धांत को समझें।

“कुछ लोग अपना तनाव कम करने के लिए दूसरे लोगों को अपनी समस्याएं सुनाते रहते हैं, और उनका तनाव बढ़ाते रहते हैं। जबकि वे जानते हैं, कि जिस व्यक्ति को मैं अपनी समस्या सुना रहा हूं, वह व्यक्ति मेरी समस्या को सुलझाने में कुछ भी सहयोग नहीं कर सकता। उसका मेरी समस्या से कोई संबंध नहीं है। उसका यह क्षेत्र ही नहीं है। फिर भी ऐसे लोगों को, वे अपनी समस्याएं सुनाते रहते हैं, और व्यर्थ में ही उनका तनाव बढ़ाते रहते हैं। यह उनका अत्यंत अनुचित कार्य है।” “इसलिए अपनी समस्याएं सबको न सुनाएं। सबको सुना सुनाकर उनका तनाव न बढ़ाएं।”

“सबके पास अपनी अपनी समस्याएं हैं। वे सब उनसे जूझ रहे हैं, संघर्ष कर रहे हैं। फिर वे आपकी समस्या ओर ध्यान क्यों देंगे?” “हां, यदि आप अपनी समस्या को दूर करने के लिए पूरा पुरुषार्थ करें, तो कुछ लोग आपकी सहायता भी कर सकते हैं।” परन्तु वे तभी करेंगे, जब आप स्वयं पुरुषार्थी हों। “आलसियों को कोई सहयोग नहीं देता। ईश्वर भी नहीं, और समाज के बुद्धिमान लोग भी नहीं।”

“इसलिए अपनी समस्याएं सबके आगे न कहें। केवल उन्हीं को सुनाएं, जिनसे कुछ सहयोग मिलने की आशा हो। जिनका वह क्षेत्र हो।” “जैसे यदि किसी व्यक्ति का कोर्ट में कोई केस चल रहा हो, और वह सुलझ न रहा हो। तो उस समस्या को किसी वैरागी संन्यासी, किसी दर्ज़ी, सुनार या कपड़े के व्यापारी को सुनाने से क्या लाभ? उस क्षेत्र में वह आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता। तो ऐसी समस्याएं, ऐसे लोगों को नहीं सुनानी चाहिएं।” “जो लोग कोर्ट की व्यवस्था से परिचित हों, वहां कुछ संपर्क रखते हों, कुछ जानकारी और अधिकार भी रखते हों, वकील आदि हों, तो ऐसे लोगों को इस प्रकार की समस्याएं सुनानी चाहिएं।” “परंतु अपनी समस्या सुनाने से पहले, उनको दूर करने के लिए अपनी ओर से पूरा पुरुषार्थ भी अवश्य करें, तभी दूसरों को अपनी समस्याएं सुनाएं। तभी दूसरे लोग आपको सहयोग करेंगे और समस्याओं को दूर करने में आपको सफलता मिलेगी।”

– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।