खूब चर्चित था “ऊपर अल्लाह नीचे मल्लाह” वाला नारा, भाजपा हिंदुत्व की पिच पर खेल रही तो सपा को खुलकर सामाजिक न्याय की पिच पर खेलना होगा
लखनऊ। सबको पता है कि भाजपा कभी पिछड़े-वंचित,दलित-आदिवासी वर्ग की हितैषी नहीं हो सकती,खासकर पिछड़ों- मुसलमानों की तो कत्तई नहीं।मण्डल कमीशन विरोधी भाजपा से सामाजिक न्याय की अपेक्षा करना घोर नादानी है।जब जब पिछड़े वर्ग के सम्बंध में किसी निर्णय की बारी आई,भाजपा ने टाँग अड़ाने का ही काम किया।भाजपा का नारा-“सबका साथ सबका विश्वास सबका विकास” तो धरातल पर उतरता नहीं दिखा।एक बात जरूर है कि भाजपा शिकार करने में बहुत ही माहिर शिकारी है।वह पिछडों,दलितों,अदिवादियों को शतरंज का गोट समझती है।भाजपा से सांसद,विधायक,मंत्री आदि बनना बहुत ही आसान है,पर कोई सोचे कि वो अपने जाति, वर्ग व समुदाय का वकील बन जाये तो बिल्कुल मुश्किल है।भाजपा में जो भी पिछड़े-दलित नेता हैं,उनका ज़मीर गिरवी हो चुका है।निजस्वार्थ में पिछड़े वर्ग के नेता गूँगे-बहरे व मूकदर्शक बन अपना स्वार्थ “अपना भला भला जगमाही” की तर्ज पर सिद्ध करने में जुटे हुए हैं।भाजपा संगठन से लेकर मन्त्रिमण्डल तक सोशल इंजीनियरिंग तो फ़ीट करने में माहिर है,पर सोशल जस्टिस नहीं।केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में 26 ओबीसी मंत्रियों में एकमात्र धर्मेन्द्र प्रधान(कुर्मी) कैबिनेट के हिस्सा हैं। 12 दलित व 8 आदिवासी मंत्री हैं,जो सिर्फ मुखौटा ही हैं,किसी एक में भी वर्गीय सोच नहीं है।सबके सब वीरगाथा काल के भाट बन अपने हित के लिए परेशान है।भला हो अपना,समाज जाए चूल्हा भाड़ में।
उत्तर प्रदेश में भाजपा से 90 ओबीसी,66 एससी व 1 एसटी विधायक हैं। 4 कुर्मी,3-3 लोधी,निषाद, जाटव,2-2 जाट,मौर्य/सैनी,जायसवाल,1-1 प्रजापति,राजभर,पाल,कोरी,गोंड़,धानुक,साहू,यादव,गूजर,धोबी आदि मंत्री हैं,पर सबके सब समाज के लिए चुपमंत्री हैं।दिनेश कुमार वाल्मीकि का स्वाभिमान जाग गया,सो मन्त्रिमण्डल से इस्तीफा दे दिए।दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है।उत्तर प्रदेश में भाजपा को रोकने में सपा ही सक्षम है।समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को नई ऊर्जा से भरे हुए नेताओं को आगे कर मजबूत व संघर्षशील संगठन तैयार करने की जरूरत है।भाजपा को आंतरिक तौर पर अगले लोकसभा चुनाव में कमजोर स्थिति का पता चल गया है।इसलिए ये तोड़फोड़ व सौदेबाजी की राजनीति में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर सपा गठबंधन से अलग कराने के पीछे भाजपा की यही रणनीति है।ओमप्रकाश राजभर का एक लक्ष्य है निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद की तरह अपने दोनों बेटों में एक को एमएलसी व एक को किसी आयोग,निगम में समायोजित कराना।
भाजपा हिन्दुत्व की पिच पर खुलकर खेल रही है,ऐसे में समाजवादी पार्टी को सामाजिक न्याय की पिच पर खुलकर बैटिंग करने को तैयार होना पड़ेगा।संगठन को माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग के तहत गठित कर सेक्टर व बूथ को मजबूत करना होगा।समाजवादी पार्टी को , वंचितों,किसान,मजदूरों व अकलियतों की पार्टी समझा जाता था,परन्तु अखिलेश यादव द्वारा साफ्ट हिन्दुत्व की छवि निर्मित करने से सामाजिक न्याय की छवि आशंकाओं के घेरे में आ जाती है।
समाजवादी पार्टी में पिछड़ावर्ग प्रकोष्ठ भी है जो इसके गथन काल से ही है।जिसके प्रदेश अध्यक्ष राम आसरे विश्वकर्मा, दयाराम प्रजापति व नरेश उत्तम आदि रहे,पर इसे असली पहचान 2022 में जब लौटनराम निषाद प्रदेश अध्यक्ष बनाये गए तब मिली।अपनी कार्यशैली,हाजिरजवाबी, बोलचाल व माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग के आधार पर संगठन खड़ा कर प्रदेश में खास पहचान बना लिए।उनका “ऊपर अल्लाह व नीचे मल्लाह” का नारा खूब चर्चा में रह और आज भी लोग याद करते हैं।जब इन्हें पद से हटाया गया तो सोशल मीडिया प्लेटफार्म बहुत चर्चा हुई और इनके समर्थन में जितनी आवाज़ उठी,बहुत कम लोगों के पक्ष में वैसी उठती है।सपा के बहुत से नेता कहते मिले कि लौटनराम के हटाने से पार्टी का काफी नुकसान हुआ।अगर वे पार्टी में अपने पद पर रहे होते तो सपा की सरकार बन सकती थी।पिछड़ी जाति में ये ऐसे नेता रहे जिन्हें पूरे प्रदेश के पिछड़ों, दलितों व मुसलमानों स्थान बना लिए थे और आज भी सपा के ओबीसी,एससी कार्यकर्ता लौटनराम निषाद की चर्चा करते हैं।तमाम लोग कहते मिले कि लौटनराम को ससम्मान वापसी कराकर पार्टी में संगठन की खास जिम्मेदारी देनी चाहिए।सपा में अगर लौटनराम निषाद के पुनर्वापसी व संगठन की जिम्मेदारी के सम्बंध में पूछा जाएगा तो दहाई में भी इनके विरोध में ओबीसी,एससी नहीं मिलेंगे।यह बात सपा के दर्जनों यादव नेताओं ने यह बात बताई…