श्रीराम कथा से जीवन में मर्यादा एवं सुसंस्कार आते हैं-अर्द्धमौनी

मुरादाबाद।  श्रीशिव मन्दिर, नवीन नगर हरे कृष्ण चौक में आयोजित श्रीराम कथा का शुभारम्भ कलशयात्रा एवं वृन्दावन धाम से आये आचार्यवृन्दों ने विधिवत पूजन कराया। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम चरित की अमृत वर्षा करते हुए कथा व्यास श्रद्धेय धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि भगवान राम की कथा हमारे जीवन में सदाचार, मर्यादा, संस्कार एवं माता पिता की सेवा के गुणों का समावेश करती है।

दान देने की आदत, प्रिय बोलना, धीरज तथा उचित ज्ञान ये चार व्यक्ति के सहज गुण हैं । जो अभ्यास से नहीं आते। इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन उसका अज्ञान या मूर्खता नहीं, बल्कि उसके सर्वज्ञानी होने का भ्रम है।  आपको जो भी अच्छी बात मिले, उसको ग्रहण करते जाओ तो आप भी सन्त हो जाओगे।

गोस्वामीजी ने एक सूत्र दिया कि दर्पण का लाभ क्या है। दशरथजी के जीवन में इससे तीन बातें आयीं और वे बड़े महत्व की हैं। दर्पण देखने पर कभी-कभी अभिमान भी होता हैं। कोई व्यक्ति अगर खड़ा होकर बार-बार अपने को शीशे में देखे और मन ही मन खुश हो कि वाह, मैं कितना सुंदर हूँ। तो दर्पण ने तो उसके अभिमान को और भी बढ़ा दिया। दर्पण अभिमान घटाने के लिए होना चाहिए बढ़ाने के लिए नहीं। अभिप्राय यह है कि आत्मनिरीक्षण का हम सदुपयोग कर रहे हैं या दुरूपयोग। यह इसी बात पर निर्भर करता है कि आत्मनिरीक्षण से हमारा अभिमान बढ़ रहा है या घट रहा है। यदि हम आत्मनिरीक्षण करके इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हम तो बहुत अच्छे हैं, हममें सारी विशेषताएँ हैं, तो हमने सही अर्थो में आत्मनिरीक्षण नहीं किया, बल्कि अपने अन्तःकरण में आत्मप्रशंसा की एक वृत्ति पाल ली, लेकिन दशरथजी की दृष्टि कहां थी,

 

जब उन्होंने सुना कि दशरथ के समान कोई नहीं है, तो उन्होंने दर्पण उठा लिया और अपने आपको देखा। लोग कह रहे हैं कि दशरथ में सारे गुण हैं, पर दशरथजी ने दर्पण में देखा कि मुकुट टेढ़ा है और यह दोष है। लोगों की दृष्टि भले ही न गयी हो, पर दशरथजी की दृष्टि अपने दोष पर गयी। मैं सभा में बैठा हूँ, राजसिंहासन पर बैठा हूँ और मेरा मुकुट एक ओर झुक गया है, असंतुलित हो गया है। राजा को समत्व में स्थिर रहना चाहिए। मुकुट राजसत्ता का चिह्न है। इसलिए उनके मन में पहली प्रेरणा उत्पन्न हुई कि वे अपने मुकुट को सीधा करें। साधक वह है जो आत्म निरीक्षण करके अपने मन के असंतुलन को देख सके और उसे समत्व की प्रेरणा प्राप्त हो। दशरथजी के जीवन में पहली प्रेरणा प्राप्त हुई, उन्होंने तुरन्त अपना मुकुट सीधा किया।

 

कथा में पवन अग्रवाल, मन्जू अग्रवाल, वैभव अग्रवाल, शिवानी अग्रवाल, काव्या, प्रस्तुति बंसल, पुलकित बंसल, रिंकी अग्रवाल, विनीत अग्रवाल, नीतू गोयल, मोहित गोयल, पं० प्रेम किशोर शास्त्री, वृन्दावन, रजनी अरोड़ा, पं० मुकुल शास्त्री, पं० राजकिशोर शास्त्री, आशीष अग्रवाल, अतुल अग्रवाल, राजीव अग्रवाल, राजेश अग्रवाल आदि मौजूद रहे।