जनता के आदमी थे हरिदेव शौरी

कवि दुष्यन्त कुमार ने कहा है – कौन कहता है आसमाँ में छेद नहीं हो सकता; एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।।

अवकाश प्राप्त आई.सी.एस अधिकारी हरिदेव शौरी ने अपने बलबूते पर कवि की इन पंक्तियों को सत्य सिद्ध कर दिखाया। विभिन्न न्यायालयों में जनहित याचिकाएँ दायर कर उन्होंने अन्धे और बहरे शासन को झुकने को मजबूर किया था। वृद्धावस्था में उनकी लगन देखकर अनेक लोग उनके साथ जुड़ गये। इसी में से 1980 में ‘कॉमन कॉज’ नामक संस्था का जन्म हुआ।

हरिदेव शौरी ने उन दिनों जनहित याचिकाओं को एक सबल शस्त्र के रूप में प्रयोग किया, जब नागरिक अधिकारों और उपभोक्ता हितों के बारे में कोई चर्चा भी नहीं करता था। लोग यह कहकर कि सरकार से लड़ना आसान नहीं है, उन्हें हतोत्साहित ही करते थे; पर एक पेंशन मामले में सरकार के फैसले के विरुद्ध उन्होंने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उसमें उन्हें सफलता मिली। फिर तो उन्हें जनसेवा का चस्का ही लग गया।

यद्यपि पैसे और प्रतिष्ठा से परिपूर्ण प्रशासनिक अधिकारी की नौकरी से अवकाश के बाद वे आराम का जीवन जी सकते थे। उनके बच्चे भी प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत थे। उनके पुत्र अरुण शौरी इण्डियन एक्सप्रेस के सम्पादक और फिर अटल बिहारी वाजपेयी के शासन में केन्द्रीय मन्त्री रहे। उनके दूसरे पुत्र दीपक तथा पुत्री नलिनी सिंह भी पत्र जगत से जुड़े हैं।

अपनी अवस्था की चिन्ता किये बिना श्री शौरी स्वयं जनहित याचिकाएँ तैयार कर वकीलों के पास भेजते थे। उन्होंने स्वयं कानून की पढ़ाई नहीं की थी; पर उनके तर्कों को न्यायालयों में बहुत ध्यान से सुना जाता था। उन्होंने आम जनता के हित में नीचे से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक 75 जनहित याचिकाएँ दायर कीं। इसके फलस्वरूप ही आज जिला स्तर पर उपभोक्ता न्यायालय कार्यरत हैं। इसी प्रकार अतिक्रमण, अवैध निर्माण, जल और बिजली संकट जैसे विषयों पर व्यवस्था से लड़ने के कारण वे सामान्य व्यक्ति की आवाज और उनकी आशाओं के केन्द्र बन गये थे।

राजनीतिक दलों को भी अपने आय-व्यय का का हिसाब देना चाहिए,इसके लिए वे सर्वोच्च न्यायालय तक गये और सफलता पायी। कांग्रेस शासन में पैट्रोल पम्प देने के नाम पर जो भ्रष्टाचार हुआ था, उसके विरुद्ध दायर जनहित याचिका के कारण सभी आवण्टन निरस्त कर तत्कालीन तेल मन्त्री सतीश शर्मा पर न्यायालय ने 50 लाख रु. का जुर्माना किया। यह शीर्ष पर फैले भ्रष्टाचार को उजागर करने की उनकी प्रतिबद्धता का अद्भुत उदाहरण है।

राजधानी दिल्ली में बिजली संकट को देखकर उनकी जनहित याचिका के आधार पर शासन को मजबूर होकर बिजली वितरण का काम निजी कम्पनी को देना पड़ा। जनता को सूचना का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने लम्बी लड़ाई लड़ी। उसी से इस बारे में कानून बन सका।

यद्यपि भ्रष्टाचार के विरुद्ध उनके युद्ध से भ्रष्टाचार मिटा नहीं; पर उन्होंनेे सिद्ध कर दिया कि यदि किसी उचित विषय को लेकर लड़ाई को अन्त तक लड़ा जाये, तो परिणाम सदा अच्छे ही निकलते हैं। समाज सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को देखकर केन्द्र शासन ने उन्हें ‘पद्म विभूषण’देकर सम्मानित किया।

1911 में लाहौर में जन्मे तथा आम जनता के हित में शान्त भाव से सदा संघर्षरत रहने वाले इस योद्धा का 28 जून, 2005 को देहान्त हो गया।