मल्लाह,केवट…. को एससी में शामिल करने की नहीं,परिभाषित करने की जरूरत, सवर्ण व ओबीसी नहीं हैं 18 ओबीसी जातियों के आरक्षण के विरोधी बल्कि एससी की जातियाँ हैं-लौटनराम निषाद

लखनऊ। राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटनराम निषाद ने 18 जातियों के एससी आरक्षण कोटे के मुद्दे पर कहा कि इन जातियों को नए सिरे से एससी में शामिल करने की जरूरत नहीं है।उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा जारी कराई गई 10 अगस्त,1950 की अधिसूचना में उत्तर प्रदेश की एससी की अनुसूची में शामिल मझवार,तुरैहा,गोंड़, शिल्पकार,पासी,तड़माली को परिभाषित भर करना है।उन्होंने कहा कि 18 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का आरक्षण देने का विरोध सवर्ण व पिछड़ी जातियाँ नहीं बल्कि अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ लेकर बनी नवसवर्ण दलित जातियाँ ही विरोधी हैं।उन्होंने कहा कि 1931 की उत्तर प्रदेश की अनटचेबल व डिप्रेस्ड जातियों की सूची के क्रमांक-8 पर मझवार(माँझी) का उल्लेख है।माँझी को जनसामान्य नाव चलाने व मछली मारने,बेचने वाला यानी मल्लाह,केवट,माझी समझता है।उन्होंने कहा कि भारत के रजिस्ट्रार जनरल व सेन्सस कमिश्नर न 1961 की जनगणना में माँझी, मल्लाह,केवट,राजगौड़, मुजाबिर, गोंड़ मझवार को मझवार की पर्यायवाची व वंशानुगत जाति नाम मान चुके हैं,तो आज इन जातियों को मझवार का प्रमाण पत्र देने में आनाकानी व रुकावट क्यों?उन्होंने बताया कि 1950 की अधिसूचना में निषाद मछुआ समुदाय की मझवार,गोंड़,तुरैहा,खैरहा,खोरोट,पनिका,बेलदार आदि जातियाँ एससी में सूचीबद्ध हैं।1901 व आज़ादी से पूर्व के तमाम दस्तावेजों में मल्लाह,माँझी,केवट,धीवर आदि को मझवार में समाविष्ट माना गया है और मल्लाह,केवट,बिन्द, धीमर,धीवर, माँझी, तुरहा, चाई, तियर,गोड़िया,रायकवार,बाथम आदि को एक माना गया है,तो आज अलग अलग क्यों मानी जा रही हैं?

निषाद ने बताया कि 1961 के सेन्सस में अनुसूचित जाति की सूची के क्रमांक-24 पर अंकित चमार,जाटव,झुसिया,धुसिया की पर्यायवाची जाटवी,अहिरवार,जैसवार,भगत,चमकाता,निम, पिपैल,कर्दम, कबीरपंथी, उत्तरहा,दखिनहा, रैदासी,शिवदसिया,दोहरा,दोहरे,दौबरे,दबकर,कुरील,रैया, रमदसिया,शिवदसिया आदि को माना गया है।कहा कि इन सभी को निर्बाध रूप से चमार या जाटव का जाति प्रमाण पत्र दिया जाता है।जिन 18 ओबीसी जातियों को एससी आरक्षण का मामला है,वह सभी अनुसूचित जाति में शामिल मझवार,तुरैहा,गोंड़, बेलदार,शिल्पकार, पासी की ही पर्यायवाची उपजातियाँ हैं।अस्पृश्यता के सवाल पफ निषाद ने कहा है कि घृणित पेशे को अपनाने वाली जातियों के साथ छुआछूत का भेदभाव माना जाता रहा है।अगर अनुसूचित जाति में शामिल करने का मानक अस्पृश्यता/छुआछूत का भेदभाव रहा है तो मझवार,तुरैहा,ग्वाल,खैरहा,खोरोट,बेलदार,पनिका,भुइयां,भुइयार,बनवासी,कापड़िया,बंगाली,धनगर,कोरी,बाँसफोर, धरकार,कोल आदि अस्पृश्य/अछूत कैसे?

निषाद ने कहा कि जूता बनाना,पालिश करना(मोची),कपड़ा बुनना(कोरी),कपड़ा धोना,प्रेस करना(धोबी),भेड़,बकरी पालना(धनगर),चिड़ियों का शिकार व पकड़कर बेचना(बहेलिया),पत्तल बनाना,चूहा पकड़ना(मुसहर),तेंदू पत्ता व जंगली लकड़ी इकट्ठा करना(कोल),पत्थर तोड़ना,सिलबट्टा आदि बनाना(पत्थरकट),मीट बेचना(खटिक),ताड़ी उतारना,सुअर पालना(पासी),चौकीदारी व सुअर पालना(दुसाध),जंगली पक्षियों का शिकार,जड़ी बूटी इकट्ठा करना(भुइयां,भुइयार,पनिका) अपवित्र,घृणित व नापाक पेशा है,तो मल्लाह,केवट,धीवर, धीमर,रैकवार,बाथम,माँझी,गोड़िया, बिन्द,तुरहा आदि का पुश्तैनी पेशा-मछली मारना,मछली काटकर बेचना,जलजीवों का शिकार करना,नौकाओं द्वारा अंत्येष्टि व शव प्रवाह कराना,डूबे व्यक्ति के शव को गोताखोरी कर निकालना पवित्र,सछूत व सम्मानजनक पेशा कैसे?उन्होंने कहा कि अस्पृश्यता(अपराध) उन्मूलन अधिनियम-1955 बनने व अनुच्छेद-17 द्वारा अस्पृश्यता/छुआछूत को संज्ञेय अपराध घोषित करने के बाद निषाद, मामलाः,केवट,बिन्द, धीवर,कहार,माँझी, रैकवार,कुम्हार,राजभर,भर में छुआछूत का लक्षण ढूढ़ना कितना उचित,यह तो अपने आप मे अपराध है।