इस बार मुरादाबाद का कौन होगा मेयर….

मुरादाबाद नगर निगम पर पिछले दो दशक से भाजापा के कबजे मे हैं और महानगर को स्मार्ट सिटी बना दिये जाने का दावा भी हो रहा है! यह अजीब विडबना है, महापौर की कुर्सी पर एक ही परिवार का प्रतिनिधित्व भाजपा की ओर से चला आ रहा है. सूत्रों से पता लगा है विनोद अग्रवाल के साथ साथ राजेश रस्तोगी भी भाजपा में मेयर की दावेदारी कर रहे हैं, अब क्या होता हैं हम भी देखेंगे, वैसे इस बार सैनी समाज को भाजापा आगे ला सकती है देखते हैं ओबीसी पर कितना विशवास करती है भाजपा ?….

कांग्रेस से कई नाम महापौर के लिये जनता मे चरचा मे है मगर यह जानते हुऐ की मुरादाबाद कभी कांग्रेसी नही रहा, हां कुछ हालात मे यहा कांग्रेस नही, व्यक्तियों की जीत ज़रूर हुई है!
यूँ तो कई नाम सामने है मगर असलम खुरशीद, अजय सारस्वत सोनी,*की दावेदारी महत्वपूर्ण है, ये लोग पार्टी के पूराने तजुरबेकार सिपाही भी है!

अब आता है नंबर समाजवादी का, तो यह पार्टी दिन प्रतिदिन मुसलमानों मे अपना जनाघार खोती जा रही हैं अब हालत यह है कि इसके पदाधिकारी भी अखिलेश की नितियो से असंतुष्ट दिखते हैं मगर महानगर मे इसके नेताओ को यकीन है, “मुसलमान जाऐगा कहाँ ” ?
मेयर के लिये हाजी यूसुफ अंसारी,या फिर शुऐब पाशा ही मुस्लिम उमीदवार हो सकते हैं! यदि समाजवादी किसी हिन्दू उम्मीदवार को लाती है तो मुकाबला रोचक हो सकता है, क्योंकि राजकुमार प्रजापति और डी पी यादव भी दावेदारी कर सकते हैं।

अब बात कर लें 1957 मे बनी मजलिस इतिहादुल मुस्लेमीन यानी ओवैसी की मजलिस की, तो अभी तक यह पार्टी महानगर की जनता के दिल मे उतरने के बाद भी वोट का रुप नही ले पाई हैं इसके भी कई कारण समझ मे आते हैं विधान सभा के चुनाव मे मुसलमानों के साथ जो खेल हुआ वह चुनाव के बाद खुलकर सामने आ गया।

भाजपा को हराने के लिए मुसलमानों को एक बार फिर ठगा गया था और समाजवादी फिर हार गई, जबकि मजलिस के हाजी वकी रशीद नगर से व मोहिद फरगनी देहात से चुनावी समर उतरे थे, दोनो ही एडवोकेट थे ओर हौसले हिम्मत से लडे, मगर वोटरो को यकीन दिला दिया गया था कि अखिलेश, योगी जी को चित कर देगा, मुसलमान फिर ठगा गया!

अब देखना यह है कि मजलिस मेयर का चुनाव लडती है कि नही, वैसे मजलिस ने मुरादाबाद महानगर मे सभासद तो उतारे है मगर महापौर नही, मगर इस बार मजलिस की तैयारी से लगता है जीतने के यकीन से लडेगी और शायद पतंग फिर उड़ेगी, अब देखना है की मजलिस अपने कैडर हाजी वकी रशीद को आगे बढ़ाती है या किसी और चेहरे पर दांव खेलती है, ऐसा लगता है मजलिस इस बार बहुत सोच समझ कर टिकट देगी क्योंकि ओवैसी नही चाहते जो बिहार में मजलिस के विधायकों ने किया वो उत्तर प्रदेश में भी हो।