उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में कुछ नया करेगी कांग्रेस?

उदयपुर चिन्तन शिविर के संकल्प को धरातल पर उतारे बिना आगे नहीं बढ़ पाएगी कांग्रेस

उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे बड़े राज्यों में आज भी नरेंद्र मोदी को कोई खा़स चुनौती नहीं है। केंद्र सरकार की विफलताओं को जहां एक तरफ दूसरे राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टियां भुनाने में बहुत हद तक कामयाब हो गई हैं, वहीं इन 4 राज्यों में संगठनात्मक कमियों व आपसी खींचतान की वजह से कोई भी विपक्षी पार्टी भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने में आगे निकलती नहीं दिख रही है।राजस्थान में अहम व साख की टकराव में राहुल गांधी जी की मेहनत पर पानी फेर दिया।वहाँ जो भी घटनाक्रम हुआ,वह पार्टी की सेहत के लिए उचित नहीं ठहराया जा सकता।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व उनकी टीम ने जो हरकत की,उससे बनता है माहौल कुछ समय के लिए ठप्प सा हो गया।अशोक गहलोत जी सोनिया गांधी व राहुल गांधी के बेशक विश्वस्त रहे हों,पर उनके द्वारा जिस तरह का माहौल पैदा किया गया,उससे उनकी विश्वसनीयता पर तो प्रश्न चिन्ह खड़ा हो ही गया है और गाँधी परिवार के लिए भी राजस्थान का टकराव चिन्ता की लकीरें खींच दिया।अशोक गहलोत के द्वारा जिस तरह की स्थिति पैदा की गई,ऐसी स्थिति में उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना बिल्कुल उचित नहीं रहेगा।

उत्तर प्रदेश में जहां एक तरफ़ अखिलेश यादव सामाजिक न्याय के मुद्दे पर सड़क पर उतरने को तैयार नहीं हैं और गै़र यादव पिछड़ों व दलितों को पार्टी और सरकार के अंदर कोई स्पष्ट हिस्सेदारी देने की बात नहीं करते हुए दिखते हैं। वहीं राजस्थान में कांग्रेस की आपसी सिर फुटव्वल के बाद ऐसा कोई माहौल नहीं बन पा रहा है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कोई अच्छी कामयाबी मिल सके।राहुल गांधी जी के द्वारा जो भारत जोड़ो यात्रा चल रही है,उससे उनकी छवि व पार्टी की सेहत में निश्चित रूप से सुधार होता दिख रहा है।

अगर गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को कोई कामयाबी हाथ लगती है तो वह फिर राजस्थान में भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट काटने की स्थिति में पहुंच जाएगी, जिसका दोहरा नुकसान गुजरात और राजस्थान दोनों राज्यों में कांग्रेस को उठाना पड़ेगा और इसका सीधा सीधा फा़यदा 2024 में भाजपा को होगा।गुजरात मे आम आदमी पार्टी की सक्रियता से कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा का ज्यादा नुकसान दिख रहा है।गुजरात में कांग्रेस पार्टी के अंदर काफी गुटबाजी है।पिछली बार राहुल गांधी की सक्रियता से पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में आ गयी थी,लेकिन स्थानीय व क्षेत्रीय नेताओं की गुटबाजी ने किए कराए पर पानी फेर दिया।

उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात के मुकाबले मध्यप्रदेश में शायद इस बार भाजपा को इतनी बड़ी कामयाबी नहीं मिले क्योंकि दिग्विजय सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद शायद कांग्रेस को कुछ कामयाबी मध्यप्रदेश में मिल जाएगी लेकिन यहां भी किसी बहुत बड़ी कामयाबी की उम्मीद नहीं है।फिर भी भाजपा साफ नहीं तो हाफ तो हो ही जाएगी।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना तय हो गया था।लेकिन उन्होंने सचिन पायलट के विरोध में रणनीति बनाकर गाँधी परिवार के बीच उनकी जो विश्वनीयता थी,उस पर उन्होंने पानी फेरकर अपने पाँव में कुल्हाड़ी मार लिए है।वे सोनिया गांधी के काफी विश्वासपात्र रहे हैं,लेकिन इस हफ्ते जो राजनीतिक घटनाक्रम हुआ है उससे गहलोत की साख पर बट्टा लग गया है।स्वम्भू बनने के अहम में पार्टी के लिए दूर तक गलत संदेश गया है।ऐसी स्थिति में पार्टी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को आगे कर सकती है और यहीं पार्टी के लिए उचित निर्णय रहेगा। 23 सितम्बर के एक ऑनलाइन सर्वे में राहुल गाँधी को 46.67%,अशोक गहलोत को 18.74%,दिग्विजय सिंह को 20.84%,के सी वेणुगोपाल को 6.80% लोगों ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पसंद किया था।वही 28 सितम्बर के सर्वे में स्थिति काफी बदल गयी।राहुल गांधी को 38.32%,दिग्विजय सिंह को 34.85%,छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को 14.08%,अशोक गहलोत को मात्र 5.32%,के सी वेणुगोपाल को 4.07% लोगों ने अपना समर्थन दिया।लोगों की राय थी कि दिग्विजय सिंह व भूपेश बघेल के बातचीत करने,मिलने-जुलने व मिलनसारिता अशोक गहलोत से बहुत बेहतर है।

1. कांग्रेस नेतृत्व को इन चार राज्यों पर विशेष ध्यान देना होगा जो कि अभी तक नहीं दिया जा रहा है।प्रदेश के संगठनों पर कुछ विशेष वर्गों का ही दबदबा है।सामाजिक समूहों का जो सबसे बड़ा वर्ग है,वह उपेक्षित की स्थिति में है।
2.वर्तमान में पिछड़ा दलित वर्ग अपने अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।भाजपा प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से ओबीसी,एससी, एसटी के हितों पर चोट कफ रही है।राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण को लेकर आंदोलन चल रहे हैं।गुजरात पंचायत चुनाव व दिल्ली नगर निगम में ओबीसी आरक्षण खत्म कर दिया गया है।इन संवेदनशील मुद्दों को लेकर कांग्रेस को मुखर होना पड़ेगा।
3.कांग्रेस ने उदयपुर चिंतन शिविर में जो संकल्प लिया था,उसे सही तरीके से धरातल पर उतरना होगा।हर स्तर पर संगठन में ओबीसी को विशेष स्थान देने का कदम उठाना होगा।
4. जन आंदोलनों के द्वारा किए जाने वाले प्रयासों को इन 4 राज्यों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। जैसे आम लोगों के बीच किसानी ,महंगाई जैसे मुद्दों पर ,पिछड़ों, वंचितों के बीच सामाजिक न्याय के मुद्दे पर और युवाओं के बीच बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर माहौल बनाने की जरूरत है।
5.युवाओं के अंदर बेरोजगारी और दूसरे सवालों पर जन आंदोलनों और राजनीतिक पार्टियों के द्वारा आंदोलन खड़े करने और माहौल बनाने की जरूरत है।
युवाओं पर विशेष काम करने की जरूरत है क्योंकि सड़क पर वही आएगा और आंदोलन के द्वारा माहौल को वही बदलेगा।

वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दलों के प्रयासों और जन आंदोलनों के प्रयासों के बीच सामंजस्य बैठाने की ज़रूरत है, जो अब तक बैठता हुआ नहीं दिख रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जन आंदोलनों में ज्यादातर समाजवादी और प्रोग्रेसिव विचारधारा के लोग हैं जबकि कांग्रेस इन चारों राज्यों में से तीन में मुख्य विपक्ष है और कभी भी कांग्रेस को लेकर समाजवादी और प्रोग्रेसिव विचारधारा के जन आंदोलनों के विचार बहुत अच्छे नहीं रहे हैं लेकिन इस दूरी को कैसे पाटा जाए यह देखने की जरूरत है।

एक तरफ जहां महाराष्ट्र जैसे राज्य में जहां कांग्रेस विपक्षी दलों के बीच भी तीसरे नंबर की पार्टी बन चुकी है, कांग्रेस नेतृत्व सहज तौर पर जन आंदोलनों से बातचीत कर रहा है, वहीं इन चार राज्यों में कांग्रेस नेतृत्व जनआंदोलन से बात करता हुआ बहुत ज्यादा नहीं दिख रहा है।हो सकता है कि दिग्विजय सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद इस तरफ़ कुछ पॉजिटिव प्रोग्रेस हो।

उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां कांग्रेस जन-आंदोलनों से बातचीत रखती है ,वहां कांग्रेस के पास बहुत ज्यादा पॉलिटिकल स्पेस नहीं बचा है और जिसके पास पॉलिटिकल स्पेस है, यानी अखिलेश यादव, वह जन-आंदोलनों से बातचीत करते हुए नहीं दिखते हैं।उनकी विचारधारा अस्पष्ट है।एक तरफ संविधान-लोकतंत्र-सामाजिक न्याय तो दूसरी तरफ फरसा नहीं चल सकता।सपा मुखिया मण्डल व परशुराम को साथ लेकर चलने की कोशिश कफ्ट रहे हैं,जो बिल्कुल विपरीत विधारधारा के नायक है।अखिलेश यादव की ढुलमुल नीति से अब यादव वर्ग भी कांग्रेस में अपना भविष्य देख रहा है।

हालांकि उत्तर प्रदेश में भी राष्ट्रीय मुद्दों के अलावा स्थानीय मुद्दे भरे पड़े हैं। प्रधानमंत्री के क्षेत्र वाराणसी की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है।वहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बेतहाशा शुल्क वृद्धि को लेकर छात्र लगातार आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन इन मुद्दों को जनता के बीच लेकर जाने वाला कोई नहीं है।पूरा मैदान खाली पड़ा है और भाजपा अकेले ही दंगल मार रही है।