छठ पूजा की सम्पूर्ण पूजा विधि, छठी मैया की जय!

बिहार और पूर्वी भारत का महापर्व कहलाने वाली छठ पूजा! इस पूजा से जुड़ा कोई भी अनुष्ठान मंदिरों में नहीं किया जाता है। सभी अनुष्ठान खुले आकाश में नदियों, जलाशयों के किनारे घाट पर किए जाते हैं।
इस पर्व के दौरान अर्थात चतुर्थी से लेकर सप्तमी तक घर की साफ-सफाई भी नहीं की जाती है।

1. प्रथम दिन – नहाय खाय
छठ पर्व के प्रथम दिन को नहाय खाय के नाम से जाना जाता है। चूँकि आने वाले चार दिनों तक घर में किसी भी तरह की साफ सफाई नहीं की जाती है, इसीलिए इस दिन प्रातः काल में घर की साफ सफाई की जाती है। इस पर्व में व्रत रखने वाले व्रती षष्ठी से दो दिन पूर्व चतुर्थी पर स्नानादि से निवृत्त होकर भोजन ग्रहण करते हैं।

2. दूसरा दिन – खरना
पंचमी जो छठ पर्व का दूसरा दिन होता है, खरना कहलाता है। इस दिन प्रातः काल स्वच्छ होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद पूरे दिन निर्जला उपवास किया जाता है। संध्या के समय घर के बाकि सदस्यों के साथ गुड़ से खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का सेवन किया जाता है।

3. तीसरा दिन – छठ, संध्या अर्घ्य
इस पर्व के तीसरे दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन प्रात:काल स्नानादि के बाद संकल्प लिया जाता है। संकल्प लेते समय इन मंत्रों का उच्चारण करें।

ॐ अद्य अमुक गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।

शाम को बाँस की टोकरी में पूजा की सम्पूर्ण सामग्री को लेकर घाट पर जाते हैं, इसके बाद अर्घ्य का सूप सजाया जाता है। घाट पर पहुंचने के बाद व्रत करने वाली महिलाऐं अपने परिवार के साथ सूर्य को अर्घ्य देती हैं। अर्घ्य के समय सूर्य देव को जल और दूध चढ़ाया जाता है और प्रसाद से भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। सूर्य देव की उपासना के बाद रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है।

4. चौथा दिन – उषा अर्घ्य
छठ पर्व के अंतिम दिन सप्तमी की प्रातः काल में सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर कमर तक पानी खड़ा रहा जाता है। इस दौरान उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। इसके बाद छठ माता से अपनी संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का आशीर्वाद मांगा जाता है।

इस पूजा के बाद व्रत करने वाली महिलाऐं कच्चे दूध का शरबत और थोड़ा प्रसाद ग्रहण करके व्रत को पूरा करती हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है।

अर्घ्य देने की विधि

एक बांस के सूप में केला एवं अन्य फल, प्रसाद, ईख आदि रखकर उसे पीले वस्त्र से ढंक दें।

तत्पश्चात दीप जलाकर सूप में रखें और सूप को दोनों हाथों में लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार अस्त होते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दें।

ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पया मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर:॥

इसके साथ ही छठ घाट की तरफ जाती हुए महिलाएं रास्ते में छठ मैय्या के गीत गाती हैं।
इनके हाथों में अगरबत्ती, दीप, जलपात्र होता है। घाट पर पहुंचकर व्रती कमर तक जल में प्रवेश करके सूर्य देव का ध्यान करते हैं।
संध्या काल में जब सूर्यदेव अस्त होने लगते हैं, तब अलग-अलग बांस और पीतल के बर्तनों में रखे प्रसाद को तीन बार सूर्य की दिशा में दिखाते हुए जल से स्पर्श कराते हैं।
ठीक इसी तरह अगले दिन सुबह उगते सूर्य की दिशा में प्रसाद को दिखाते हुए तीन बार जल से प्रसाद के बर्तन को स्पर्श करवाते हैं।
अन्य परिवार के लोग प्रसाद पर लोटे से कच्चा दूध अर्पित करते हैं।
हमारी तरफ से आपको छठ पूजा की हार्दिक शुभ कामनाएं।

हम प्रार्थना करते हैं की छठी मइयां और सूर्य भगवान की कृपा आप पर बनी रहे और आपको सभी प्रकार के सुख और वैभव प्राप्त हों।