भगवान श्रीकृष्ण ही परम सत्य, परमानन्द स्वरूप हैं -अर्द्धमौनी
हंसा भवन, सिविल लाइंस मुरादाबाद में आयोजित एक वर्ष पर्यन्त श्रीमद्भागवत कथा के नवम् सत्र में कथा व्यास श्रद्धेय धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि जिसके चित्त में कभी भी किसी के प्रति अहितकारी विचार न हों, जिसके वचन किसी को भी कष्ट पहुँचाने वाले न हों, जो सभी पापकर्मों से सदा मुक्त हो, उसे कभी किसी का कोई भय नहीं होता। सच्चे अर्थों में उसे ही सन्यासी, साधु या महापुरुष कहा जाता है।
परमात्मा श्रीकृष्ण ही सत्य है, अन्य सब असत्य वस्तु है, इसलिये सत्य स्वरूप परमात्मा श्रीकृष्ण में ही प्रेम करना चाहिये। भगवान् के रहते हुए कोई मनुष्य दूसरे संकट निवारण करने के लिये कहे तो मूर्खता ही है। भगवान् का प्यारा बनना चाहिये, भगवान् को भजने वाला पुरुष भगवान् को प्यारा लगता है। भगवान् का जप ध्यान निरन्तर करना चाहिये। निरन्तर जप ध्यान करने से भगवान् में जो गुण हैं, वे सब के सब उसमें आ जाते हैं। यह नाम का प्रभाव है कि पापों की ढेरीको जलाकर भस्म कर देता है।
हमें तो केवल परमात्माकी तरफ ही चलना है। तो भगवद्भजन में दृढ़ता आ जाती है। हमारे और कुछ करना ही नहीं है। न धन कमाना है, न मकान बनाना है, न मान-प्रतिष्ठा पाना है, न सुख-भोग करना है। हमें तो बस अब भगवान् की तरफ ही चलना है। श्रेष्ठ, न्याययुक्त, परम हितकर, सब तरहसे लाभदायक, ऐसे भगवत्प्राप्ति का ही एक उद्देश्य बन जाय। अब आदर-निरादर कुछ भी हो, हमें तो बस इसीमें लगना है। मूल में अपना खुद का भगवत्प्राप्ति का उद्देश्य हो जाने पर भगवान्, गुरु, सन्त-महात्मा सभी कृपा कर देते हैं।
कथा में हंसा मेहता, सिद्धार्थ मेहता, अनुभा गुप्ता, नीलम कोठीवाल, लेखा कोठीवाल, अनिता गुप्ता (प्रकाश कम्बल), डा० रीता खन्ना, अनिता गुप्ता आर्किटेक्ट, शारदा सहगल, विजया कत्याल, डा० मधु शेखर, सुधा अग्रवाल, मधु वैश्य, मधु गुप्ता, चेतन आनंद आदि ने सहयोग दिया।