भगवान श्रीराम की बाल-लीलाओं श्रवण एवं वामन पूजन परमकल्याणकारी है: धीरशान्त
मुरादाबाद। श्रीशिव मन्दिर, गायत्री नगर, लाइनपार में आयोजित “श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह” के तृतीय दिवस कथा व्यास आचार्य धीरशान्त दास’अर्द्धमौनी’ ने बताया कि भगवान श्रीराम की बाल लीलाओं एवं वामन जयंती परम कल्याणकारी होती है जिनके श्रवण से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। भगवान जीवों की प्रसन्नता के लिए लीलामृत का आस्वादन कराते हैं। संसार में फँसे हुए व्यक्ति को जन्म-मरण से रहित करने के लिये भगवान की कथा ही एकमात्र मार्ग है। गीता, रामायण, भागवत आदि ग्रन्थों को एवं उनके भावों को सरल भाषा में छपवाकर सस्ते दामों में लोगों को देना अथवा कोई समझना चाहें तो उसको समझाना जिससे उसका कल्याण हो जाय। ऐसे दान से भगवान् बहुत प्रसन्न होते हैं।
क्योंकि भगवान् ही सबमें परिपूर्ण हैं। अत: जितने अधिक जीवों का कल्याण होता है, उतने ही अधिक भगवान् प्रसन्न होते हैं।यह सर्वश्रेष्ठ अभयदान है।
भगवान पर हमेशा विश्वास रखना चाहिए, तो भगवान हमारी हर पल रक्षा करते हैं। जिसे विश्वास नहीं होता, वो सदा दु:ख व तकलीफों से घिरा रहता है।
सच्चे मन से आंसू बहाने वाले मनुष्य के सभी पाप मिट जाते हैं, इसलिए अगर गलती से भी कोई पाप हो गया हो तो सच्चे मन से उसका पश्चाताप करो तो वह पाप नष्ट हो जाएंगे।
हमे मृत्यु हमेशा याद रखनी चाहिए, क्योंकि जब मृत्यु याद रहेगी तो हमे भगवान भी याद रहेंगे। अगर मृत्यु का भय ही समाप्त हो गया तो भगवान याद नहीं रहेगें, श्रवण, कीर्तन और मनन प्रभु प्राप्ति के महा साधन हैं। कलियुग में परमात्मा को पाने के तीन यही साधन हैं। पहला कानों के द्वारा भगवान के गुणों और लीलाओं का श्रवण करना, दूसरा वाणी द्वारा सदा प्रभु नाम का जाप करना और तीसरा मन के द्वारा उन्हीं के स्वरूप का मनन करना। यदि हम सदा यह तीन साधन करते रहे तो हमे शीघ्र ही परम तत्व का बोध हो सकता है।
संसार के सब कार्य एक ओर रखकर सर्वप्रथम भगवान का भजन करना आवश्यक है। यदि तुमने विश्व में समस्त कार्य किये, किंतु भगवान का भजन नहीं किया, तो मानव-शरीर पाकर क्या लाभ प्राप्त किया।
परमात्मा श्रीकृष्ण सर्वत्र परिपूर्ण हैं, कण-कण में व्याप्त हैं। ऐसा निश्चय करके फिर कुछ भी चिन्तन न करे। न आत्मा का, न परमात्मा का और न संसार का कुछ भी चिन्तन न हो। चिन्तन हो भी जाय, तो न उससे राग करे, न द्वेष करे; न उसे अपनेमें माने। चिन्तन स्वयं में नहीं है, यह आया भी है तो मन, बुद्धि, अन्तःकरण में ही आया है।
व्यवस्था में कामिनी सैनी, ध्यान सिंह सैनी, ममता सैनी, राजकुमार सैनी, राम सिंह, वीर सिंह, सरजीत सैनी, रामचन्द्र सिंह, श्रीमती उषा देवी, राधारानी, जानकी देवी, ईशा सैनी, किरन सैनी, ओमप्रकाश शर्मा, चैतन आनन्द, अजय गुप्ता, सुशील वर्मा, देवांश अग्रवाल, सपना चौधरी, सुधा शर्मा, देव कुमार, वंश खोटियान, गंगा सिंह, तनिषा कपूर आदि ने सहयोग दिया।