राजस्थान चुनाव में रिवाज बरकरार रखने के लिए कांग्रेस ने झोंकी पूरी ताकत
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राजस्थान में रिवाज बदलने और रिवाज बरकरार रखने की लड़ाई तेज हो गई है। कांग्रेस रिवाज बदलने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। वहीं, भाजपा हर पांच वर्ष में सरकार बदलने के रिवाज को बरकरार रखने के लिए पूरा दमखम दिखा रही है। दोनों पार्टियां जातीय समीकरण साधते हुए आक्रामक प्रचार कर रही हैं। प्रदेश के चुनावी समीकरण में जातियां-अहम भूमिका निभाती रही हैं। प्रदेश में यूं तो लगभग हर जाति वर्ग के लोग रहते हैं, पर चुनावी हार- जीत में जाट, राजपूत, गुर्जर और मीणा अहम भूमिका निभाते रहे हैं। इन चारों जातियों के करीब 27 फीसदी मतदाता हैं, पर वह विधानसभा की 100 से ज्यादा सीट पर असर डालते हैं। प्रदेश में 59 सीट आरक्षित हैं। करीब 9 फीसदी की आबादी वाले जाट समुदाय शेखावाटी और मारवाड़ सहित प्रदेश की 37 सीट पर असर डालते हैं। राजपूत करीब छह फीसदी हैं। उनका 17 सीटों पर असर है। करीब सात फीसदी गुर्जर समाज का 30 से अधिक सीट पर दबदबा है। वहीं, मीणा मतदाता भी 40 सीट पर असर डालते हैं। इसके साथ सियासी क्षत्रपों का भी अपना असर है। इनमें जाट समुदाय अमूमन भाजपा का समर्थक रहा है। हालांकि, कांग्रेस ने गोविंद सिंह डोटासरा के जरिए जाटों में सेंध लगाने की कोशिश की है।