17 अतिपिछड़ी जातियाँ योगी सरकार के गलत निर्णय से आरक्षण से हो रहीं वंचित

उच्च न्यायालय इलाहाबाद खण्ड पीठ द्वारा 21/22 दिसम्बर, 2016 को 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति परिभाषित करने व मझवार जाति को जाति प्रमाण-पत्र निर्गत करने के लिए जारी शासनादेश को 5 जुलाई, 2019 को न्यायालय द्वारा वैध ठहराते हुए मझवार (मल्लाह) का प्रमाण-पत्र जारी करने का आदेश दिया। राज्य सरकार अनुसूचित जातियों की सूची का क्लीयरीफिकेशन कर सकती है, स्पेशीफिकेशन नहीं। शासनादेश संख्या-1442/छब्बीस-818-1957 ,दिनांक- 22 मई, 1997 का आंशिक संशोधन करते हुए भारत सरकार द्वारा पारित अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां आदेश (संशोधन) अधिनियम 1976 दिनांक 27 जुलाई, 1977 को प्रभावी कर दिया गया। उत्तर प्रदेश शासन द्वारा 29 अगस्त, 1977 को जारी शासनादेश संख्या-6744/छब्बीस-77-17(21)-74 के आधार पर अनुसूचित जाति की सूची के क्रमांक 36 पर गोड़, क्रमांक-53 मझवार, 59 पर पासी, तड़माली, 65 पर शिल्पकार व 66 तुरैहा जाति अंकित है। 17 अतिपिछड़ी जातियों में 13 उपजातियां मझवार, गोड़, तुरैहा की पर्यायवाची व वंशानुगत नाम है।
सेन्सस ऑफ इण्डिया-1961 अपेंडाईसेस टू सेन्सस मैनुअल पार्ट-1 फाॅर उत्तर प्रदेश की अपेंडिक्स-एफ लिस्ट-1 के अनुसार क्रमांक-51 पर अनुसूचित जाति मझवार की पर्यायवाची या जेनरिक नेम्स मांझी, मुजाबिर, राजगोड़, मल्लाह, केवट, गोड़ मझवार को माना गया है। इसी सूची के क्रमांक 24 पर धुसिया, झुसिया या जाटव जाति की पर्यायवाची व वंशानुगत नाम गहरवार, अहिरवार, जटीवा, कुरील, रैदास, दोहर, रविदास, चमकाता, भगत, चर्मकार, जैसवार, रैया, दोहरा, धौंसियार, पिपैल, कर्दम, नीम, दौबरे, मोची, उतरहा, दखिनहा का उल्लेख है। इन सभी को चमार या जाटव का प्रमाण-पत्र निर्वाध रूप से जारी किया जाता है। लेकिन दूसरी तरफ जब मझवार का प्रमाण-पत्र मांगा जाता है तो तहसील कर्मियों द्वारा मल्लाह, मांझी, केवट, गोड़िया,धीवर आदि बताकर आवेदन पत्र निरस्त कर दिया जाता है। इसी समस्या को ध्यान म
में रखते हुए अखिलेश यादव की सरकार ने 21/22 दिसम्बर, 2016 को शासनादेश जारी किया था। 31 दिसम्बर, 2016 को शासनादेश संख्या-234/216/297 सी.एम./26-3-2016-3 (15)/2007 के अनुक्रम में कार्मिक अनुभाग-2 संख्या-4 (1)/2002-का-2 के आधार पर अपर मुख्य सचिव ने अधिसूचना जारी करते हुए उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों , अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम-1994 उ.प्र. अधिनियम संख्या-4 सन् 1994 की धारा-13 के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए किया था। उपरोक्त आदेश में स्पष्ट किया गया था कि उक्त जातियों को परिभाषित किया गया है, न कि विशिष्टता के उद्देश्य से भारतीय संविधान के 341 से छेड़ छाड़ किया गया है।
शासनादेश को डाॅ.बी.आर. अम्बेडकर ग्रन्थालय एवं जनकल्याण समिति की याचिका 2129/2017 के अनुरोध पर न्यायालय ने 24 जनवरी, 2017 को स्टे कर दिया था। राष्ट्रीय निषाद संघ के अधिवक्ता सुनील कुमार तिवारी की दलील पर 29 मार्च, 2017 को स्टे हटा लिया गया था। पटियाली तहसील के बृजेन्द्र कश्यप ने 21/22 दिसम्बर, 2016 के शासनादेशानुसार मझवार (मल्लाह) का प्रमाण पत्र बनाने के लिए आवेदन किया जिसे तहसीलदार ने मना कर दिया। कश्यप ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका संख्या 194037/219 दायर कर जाति प्रमाण-पत्र बनाने का आदेश निर्गत करने की अपील किया। माननीय मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने 11 फरवरी, 2019 को आदेश किया कि 6 सप्ताह के अंदर न्यायालय के आदेश का अनुपालन किया जाय अन्यथा न्यायालय की अवमानना का दोषी माना जायेगा। इसके बाद भी तहसीलदार पटियाली ने अनुपालन नहीं किया। इसके बाद याची नेे याचिका संख्या-14560/2019 दायर किया, जिसपर 3 जुलाई, 2019 को स्वीकृति प्रदान किया गया। न्यायालय ने 2 जुलाई 2019 को आदेश दिया कि तहसीलदार सावधानी के साथ 4 सप्ताह के अंदर आदेश का अनुपालन करें।
17 अतिपिछड़ी जातियों-मल्लाह, केवट, निषाद, धीवर, धीमर, रायकवार, कहार, बाथम, गोड़िया, तुरहा, बिन्द, भर, राजभर, कुम्हार, प्रजापति जातियों के नाम से जाति प्रमाण-पत्र जारी किया जायेगा, के संदर्भ में मझवार को परिभाषित करने व 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल मूल जाति के नाम से प्रमाण-पत्र जारी किये जाने की मांग को लेकर आंदोलन करते आ रहे राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ. लौटन राम निषाद ने स्पष्ट तौर पर कहा कि कोई भी राज्य सरकार संविधान के अनुच्छेद -341 व 342 में किसी भी प्रकार का संशोधन नहीं कर सकती। राज्य सरकार अनुसूचित जातियों के संबंध में क्लीयरिफिकेशन कर मूल जाति नाम से प्रमाण-पत्र जारी करा सकती है। नई जातियों को अनुसूचित जाति या जनजाति में शामिल करने के लिए राज्य सरकार केन्द्र को अनुशंसा भेज सकती है। समाजवादी पार्टी की सरकार ने 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल नहीं किया था बल्कि अनुसूचित जाति में क्लीयरीफाई/परिभाषित किया था। वर्तमान भाजपा सरकार ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण से 24 जून, 2019 को जो शासनादेश जारी कराया है वह बिल्कुल इसके उलट है। ऐसा करने के लिए राज्य सरकार को संस्तुति भेजकर केन्द्र सरकार से स्वीकृति दिलानी पड़ेगी।
श्री आर.बी. रसेल व हीरा लाल द्वारा 1916 में लिखित पुस्तक ”दि ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स ऑफ सेन्ट्रल प्रोविन्सेज” के वाल्यूम-1 के अंतिम भाग में ग्लोसरी नाम से जातियों का जो शब्दकोश दिया गया है, उसके पृष्ठ 388 पर मांझी को केवट की पर्यायवाची व मजवार को केवट तथा बोटमैन में सम्मिलित दर्शाया गया है। मजवार शब्द मझवार का अपभ्रंश है। यूनाइटेड प्रोविन्सेज ऑफ आगरा एण्ड अवध पार्ट-1 रिपोर्ट सेन्सस ऑफ इण्डिया 1931 के लिस्ट (ए) अनटचेबल एण्ड डिप्रेस्ड कास्ट्स की सूची के क्रमांक 8 पर मझवार (मांझी) अंकित है। मा.उच्च न्यायालय इलाहाबाद खण्ड पीठ लखनऊ द्वारा याचिका संख्या-9312/1988 ओम प्रकाश बनाम उ0प्र0 सरकार के निर्णय में मांझी को मझवार का पर्यायवाची बताया गया है। दि ट्राइबल रिसर्च एण्ड ट्रेनिंग इन्स्टीट्यूट छिंदवाड़ा ट्राइबल वेलफेयर डिपार्टमेन्ट मध्य प्रदेश शासन के अध्ययन प्रतिवेदन -1961 ”दि ट्राइब्स ऑफ मध्य प्रदेश” के पृष्ठ-52, 53 पर मझवार नाम से दिये गये आलेख में मझवार, मांझी व मझिया बताया गया है। इन्हे बोटमैन, फिशरमेन व फेरीमैन भी कहा गया है।
भारत सरकार के इन्थ्रोपोलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया के पूर्व डायरेक्टर जनरल एवं आईएएस अधिकारी डाॅ.के.एस. सिहं द्वारा कराये गये वृहद सर्वेक्षण/अध्ययन के आधार पर लिखित पुस्तक ”पीपुल ऑफ इण्डिया” नेशनल सीरीज वाल्यूम-3, दि शिड्यूल्ड ट्राइब्स के पृष्ठ 710 पर ”मांझी आलेख में मांझी का अर्थ बोटमैन तथा मांझी को मल्लाह, केवट, नाविक का पर्यायवाची माना गया है। विभिन्न शब्दकोषों में मांझी का अर्थ केवट, मल्लाह, धीवर, धीमर, नाविक आदि का ही उल्लेख मिलता है। इन्थ्रोपोलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया के पूर्व डायरेक्टर जनरल के.एस. सिंह द्वारा “दी शेड्यूल्ड कास्ट्स” के अनुसार मझवार व मांझी को परस्पर पर्यायवाची माना गया है। राधेमोहन बनाम दिल्ली परिवहन निगम के रिट पिटीशन सं0-2493/85 के निर्णय दिनांक 8 जनवरी, 1986 के अनुसार मल्लाह की पर्यायवाची केवट, मांझी, झीमर, धीवर आदि को माना गया है।
10 वर्षीय मत्स्य पालन पट्टा के लिए उ.प्र. सरकार द्वारा जारी शासनादेश में मछुवा समुदाय के अन्तर्गत मछुवा, केवट, मल्लाह, बिन्द, धीवर, धीमर, बाथम, रायकवार, मांझी, गोड़िया, कहार, तुरैहा या तुराहा जाति का उल्लेख किया गया है। रिट पीटीशन सं.-1278 के संदर्भ में 25 फरवरी 2005 के निर्णय के अनुसार तुरैहा समुदाय को धीमर जाति के रूप में निर्णित किया गया है। गोड़ जाति को अनुसूचित जाति से अनुसूचित जनजाति के रूप में उ.प्र. के पूर्वांचल के 13 जनपदों में स्थानान्तरित करते हुए भारत सरकार के 15.06.2001 के मिनट्स ट्वेंटिथ मिटिंग ऑफ नेशनल कमीशन फाॅर एससी एण्ड एसटी के अनुसार धुरिया, पठारी, राजगौड़, कहार, गोड़िया, धीमर, रायकवार आदि को गोड़ की पर्यायवाची माना गया है। भूमि प्रबंधक समिति नियम संग्रह (गांव समाज मैनुअल) के अनुसार मल्लाह का तात्पर्य मल्लाही का काम करने वाले समुदाय के अन्तर्गत आने वाली केवट, मल्लाह, कहार, गोड़िया, तुराहे, बिन्द, चांई, सुरैहा, मांझी, बाथम, भोई, धुरिया, धीवर, रायकवार और मझवार से है। हरियाणा की कामन लिस्ट में क्रमांक 19 पर धीवर, मल्लाह, कश्यप, कहार, झीमर, धीमर एवं पंजाब की काॅमन लिस्ट के क्रमांक-35 पर धीमर, मल्लाह, कश्यप व महाराष्ट्र की काॅमन लिस्ट के क्रमांक 211 पर केवट, धीवर, मांझी, धीमर, मछुआ, गोड़िया कहार, धुरिया कहार, भोई वर्तमान में 2013 से निषाद, मल्लाह, नाविक को भी शामिल कर लिया गया है। मध्य प्रदेश की काॅमन लिस्ट के क्रमांक 11 पर धीमर, भोई, कहार, धीवर, रायकवार, मल्लाह, तुरैहा और दिल्ली की सूची में मल्लाह के साथ निषाद, मांझी, केवट, धीवर, कश्यप, झीमर, कहार व राजस्थान की अन्य पिछड़े वर्ग की सूची के क्रमांक 14 पर धीवर, कहार, भोई, कीर, मेहरा, मल्लाह, निषाद, मछुआरा आदि, छत्तीसगढ़ की पिछड़े वर्ग की सूची के क्रमांक 18 पर धीमर, कहार, भोई, धीवर, मल्लाह, तुरहा, केवट, कैवर्त, रायकवार, कीर, सोन्धिया आदि जातियों को सूचीबद्ध किया गया है।
मल्लाह, मांझी, निषाद, केवट, धीवर, बिन्द, तुरहा, धीमर, कहार, कश्यप, गोड़िया, रायकवार, धुरिया, तुरैहा आदि जातियां किसी न किसी रूप में मझवार/मांझी की ही पर्यायवाची जातियां हैं। सेन्सस-1961 के क्रमांक 59 पर पासी, तड़माली की पर्यायवाची भर, क्रमांक 65 पर शिल्पकार की पर्यायवाची कुम्हार को माना गया है। निषाद ने इस संदर्भ में कहा कि 17 अतिपिछड़ी जातियों के पास पोलिटिकल गाड फादर व पोलिटिकल साउण्ड न होने के कारण उक्त जातियां संविधान प्रदत्त संवैधानिक अधिकारों से वंचित की जाती रही है। 1978 में जनता पार्टी सरकार द्वारा अन्य पिछड़े वर्ग की सूची में मल्लाह, केवट, कहार, धीवर, बिन्द, कुम्हार, भर/राजभर को शामिल कर लिये जाने के कारण इन जातियों को मझवार, तुरैहा, गोड़, पासी, तड़माली, शिल्पकार आदि नाम से अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र निर्गत करने में तहसील कर्मियों व राजस्व अधिकारिों द्वारा अड़चन पैदा की जाने लगी।
संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार राज्य सरकार अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जनजाति की सूची में कोई फेर बदल नहीं कर सकती। जब मल्लाह, मांझी, केवट आदि को रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इण्डिया/सेन्सस कमीशनर द्वारा 1961 में ही मझवार जाति की पर्यायवाची या वंशानुगत नाम मान लिया गया तो राज्य सरकार मल्लाह, केवट आदि को अन्य पिछड़े वर्ग में परिवर्तन कैसे कर दिया? लौटन राम निषाद ने इस संदर्भ में कहा कि ऐसा किया जाना संविधान के अनुच्छेद 341 का स्पष्ट तौर पर उल्लघंन है।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में परिभाषित करने सम्बन्धी शासनादेश को चुनौती देने वाली याचिका के संदर्भ में मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने 29 मार्च,2018 को स्टे वैकेट करते हुए राज्य सरकार से इन जातियों को प्रमाण पत्र जारी करने का निर्णय दिया।योगी के नेतृत्व वाली सरकार ने मा.उच्च न्यायालय के निर्णय का अनुपालन न करते हुए नया शासनादेश जारी कर दिया।भाजपा के ही एक कार्यकर्ता गोरख प्रसाद ने न्यायालय में स्टे आर्डर के लिए याचिका योजित कर दिया और न्यायालय से स्टे कर दिया।न्यायालय ने सरकार से शासनादेश के पक्ष में काउंटर एफिडेविट फ़ाइल करने का आदेश दिया,लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार आज तक काउन्टर एफिडेविट दाखिल नहीं किया। 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए 20 दिसम्बर 2021 को मझवार की पर्यायवाची जातियों के संदर्भ में जानकारी के लिए आरजीआई को उत्तर प्रदेश सरकार ने पत्र लिखकर भेजा।लेकिन अभी यह उजागर नहीं हुआ कि आरजीआई ने जवाब भेजा कि नहीं और भेजा तो क्या भेज?