लापता बच्चों की समस्या को लेकर सहज…!
देश भर में गुम हो जाने वाले बच्चों को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जा रही है। अमूमन हर साल गायब हुए बच्चों के आंकड़े सामने आते हैं! इस समस्या के अलग अलग पहलुओं पर चर्चा होती है और फिर कुछ समय बाद इस मसले पर एक विचित्र शांति छा जाती है! ऐसा लगता है कि शासन से लेकर समाज तक लापता बच्चों की समस्या को लेकर सहज हो जाता है!जबकि जिस घर से कोई बच्चा गुम हो जाता है उसमें पसरे दुख का बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है! गायब हो गए बच्चों को किन त्रासद हालात से गुजरना पड़ता है इसकी कल्पना भी किसी भी संवेदनशील इंसान को दहला देगी! इस समस्या को लेकर सरकार और संबंधित महकमों के रुख और उनकी कार्यशैली कैसी रही है इसे समझना बहुत मुश्किल नहीं हैं। हर अगले साल लापता होने वाले बच्चों के आंकड़ों में इजाफा बताता है कि इस त्रासदी के प्रति सरकारों और प्रशासन ने एक तरह से अनदेखी की मुद्रा अख्तियार कर रखी है!जबकि सरकारों की ओर से हर अगले साल यह दावा किया जाता है कि वह कानून व्यवस्था में सुधार और आम लोगों की सुरक्षा के मोर्चे पर आधुनिक तकनीकों के माध्यम से पहले के मुकाबले ज्यादा शिद्दत से काम कर रही है लेकिन हकीकत इसके उलट दिखती है। यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि लापता हो गए बच्चों को किस त्रासदी का सामना करना पड़ता है! मानव तस्करी के दायरे में कैसी की वीभत्सताएं पलती हैं और उसमें गायब करके लाए गए बच्चों को किस तरह झोंका जाता है इसकी सच्चाई भी अक्सर सामने आती रही है। यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि मानव तस्करों के जाल में फंसाई गई बच्चियों को कैसे देह व्यापार की आग में झोंक दिया जाता है! ज्यादातर बच्चे भीख मांगने घरेलू नौकर के रूप में काम करने और अन्य जगहों पर बाल मजदूरी करने से लेकर दूसरे अमानवीय हालात में फंस जाते हैं! उन्हें यौन शोषण के अड्डों या अंगों के कारोबारियों को भी बेच दिया जाता है जबकि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकारों को कई मौकों पर फटकारा है और इस समस्या पर काबू पाने के लिए तंत्र बनाने का निर्देश दिया है। लेकिन ऐसा लगता है कि सरकारों की प्राथमिकता सूची में यह समस्या कोई महत्त्व नहीं रखती।