30 मई/ इतिहास-स्मृति: राजशाही का क्रूर दमनचक्र तिलाड़ी कांड

15 अगस्त, 1947 को विदेशी और विधर्मी अंग्रेज अपना बोरिया बिस्तर समेट कर वापस चले गये; पर अनेक रियायतों ने तब तक भारत में विलय नहीं किया था। उत्तराखंड में टिहरी गढ़वाल भी ऐसी ही रियासत थी, जिसका विलय 1949 में हुआ। वहां के राजा को बुलांदा बदरी (बोलता हुआ बदरीनाथ) कहा जाता था। चूंकि बदरीनाथ मंदिर के कपाट खुलने की तिथि औपचारिक रूप से वही घोषित करता था। गढ़वाल के सभी मंदिर उसकी देखरेख में रहते थे।

एक ओर इसके कारण लोग राजा के प्रति श्रद्धा रखते थे, तो दूसरी ओर जनता करों के बोझ से दबी थी। औताली, गयाली, मुयाली, नजराना, दाखिल खारिज, दरबार के मंगल कार्यों पर देवखेण, आढ़त, पौणटोटी, निर्यातकर, भूमि कर, आबकारी, भांग-सुलफा और अफीम पर चिलमकर, दास-दासियों का विक्रय कर, डोमकर, प्रधानचारी दस्तूर, बरा-बिसली, छूट, तूलीपाथा, पाला, बिसाऊ, जारी, चंद्रायण आदि अनेक प्रकार के कर लगाये गये थे।

इसके साथ ही हर परिवार को दरबार के पशुओं के लिए एक बोझ घास, कुछ चावल, गेहूं, दाल, घी तथा एक बकरा भी प्रतिवर्ष देना पड़ता था। राजा, उसके परिजन या अतिथि जिस क्षेत्र में जाते थे, वहां के युवकों को बेगार के रूप में उनका बोझ लेकर चलना पड़ता था। गांव वालों को उनके भोजन, आवास आदि का भी प्रबंध करना पड़ता था। इससे भी लोग नाराज थे।

1930 में राजा ने वन में पशुओं के घास चरने पर भी कर लगा दिया। इससे लोगों के मन में विद्रोह की आग सुलगने लगी। वर्तमान यमुनोत्री जिले में यमुना से हिमाचल प्रदेश की ओर का क्षेत्र रवांई और जौनपुर कहलाता है। यहां के लोग सभा और पंचायतों द्वारा इस अन्याय का विरोध करने लगे।

यह जानकर राजा ने अपने एक मंत्री हरिकृष्ण को लोगों से वार्ता करने भेजा। दूसरी ओर पुलिस भेजकर 20 मई, 1930 को आंदोलन के नेता जमात सिंह, दयाराम, रुद्रसिंह एवं रामप्रसाद को गिरफ्तार करवा लिया। गिरफ्तार लोगों को टिहरी के न्यायालय में ले जाते समय मार्ग में पुलिस एवं ग्रामीणों में झड़प हुई। इससे दो किसान मारे गये तथा एक अधिकारी घायल हो गया।

इससे दोनों पक्षों में तनाव बढ़ गया। आंदोलन के कुछ नेता राजा के इस अत्याचार की बात वायसराय को बताने के लिए शिमला चले गये। शेष लोगों ने तिलाड़ी गांव के मैदान में 30 मई, 1930 को एक बड़ी पंचायत करने का निश्चय किया। इस मैदान के तीन ओर पहाड़ तथा चैथी ओर यमुना थी। राजा के दीवान चक्रधर जुयाल ने लोगों को डराने के लिए वहां सेना भेज दी।

फिर भी निर्धारित समय पर पंचायत प्रारम्भ हो गयी। इस पर दीवान ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। इससे वहां भगदड़ मच गयी। अनेक लोग मारे गये। कई लोगों ने पेड़ों पर चढ़कर जान बचाई। सैकड़ों लोग यमुना में कूद गये। उसमें से कई नदी के तेज प्रवाह में बह गये। इस प्रकार उस दिन कुल 17 आंदोलनकारी अपने प्राणों से हाथ धो बैठे।

इसके बाद सैनिकों ने गांवों में जाकर उन लोगों को पकड़ लिया, जो पंचायत में गये थे। उन पर टिहरी में मुकदमा चलाया गया। इनमें से 68 लोगों को एक से 20 वर्ष तक के कारावास का दंड दिया गया। इनमें से 15 की जेल में ही मृत्यु हो गयी।

इन 32 वीरों के बलिदान से स्वाधीनता की आग पूरी रियासत में फैल गयी। इनकी स्मृति में प्रतिवर्ष 30 मई को तिलाड़ी में मेला होता है।

(संदर्भ : अभिप्रेरणा पाक्षिक, देहरादून, 30.5.2006)