जन्म-दिवसः सरल व सहज चन्द्रिका प्रसाद

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का काम मनुष्यों को जोड़कर, उनकी क्षमता का उपयोग देश, धर्म और समाज के काम में करना है। इस काम में तरह-तरह के स्वभाव और प्रवृत्ति के लोग जुड़ते हैं। सबकी पारिवारिक, शैक्षिक और वैचारिक पृष्ठभूमि भी अलग-अलग होती है। यद्यपि संघ के कार्यक्रमों की रगड़ाई और अनुशासन के कारण व्यक्ति अपने आप को काफी बदलता है, फिर भी उनके स्वभाव की विविधताएं प्रकट होती ही रहती हैं। चंद्रिका प्रसाद जी भी एक ऐसे ही प्रचारक थे। उनके स्वभाव की सरलता, सादगी और सहजता उनके आचरण और व्यवहार से जीवन भर परिलक्षित होती रही।

चंद्रिका प्रसाद जी का जन्म सात जुलाई, 1947 को उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के एक गांव अखईपुर में हुआ था। श्री खरभान प्रजापति उनके पिताजी एवं श्रीमती नागेश्वरी देवी माताजी थीं। कुछ समय बाद उनका परिवार वहां से 20 कि.मी. दूर ग्राम हनुआडीह में बस गया। चार भाई-बहिन वाले घर में चंद्रिका जी दूसरे नंबर पर थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा मुफ्तीगंज में हुई। इसके बाद उन्होंने राज काॅलेज, जौनपुर से इंटर तथा कर्रा काॅलिज, डोभी से बी.एस-सी. की उपाधि प्राप्त की।

भारत के कई भागों में छोटी आयु में ही विवाह हो जाते हैं। चंद्रिका जी का विवाह भी छात्र जीवन में ही श्रीमती मालती देवी से हुआ। बी.एस-सी. में पढ़ते समय वे तत्कालीन प्रचारक ठाकुर राजनीति सिंह के सम्पर्क में आकर स्वयंसेवक बने। धीरे-धीरे संघ का विचार उनके मन में गहराई से बैठ गया और उन्होंने प्रचारक बनने का संकल्प ले लिया। श्री राजनीति सिंह स्वयं भी गृहस्थ प्रचारक थे। उन्होंने चंद्रिका जी का उत्साह बढ़ाया। इस प्रकार घर और संघ कार्य में संतुलन रखते हुए चंद्रिका जी प्रचारक बन गये।

चंद्रिका प्रसाद जी के प्रचारक जीवन की यात्रा 1972 में बस्ती जिले में बांसगांव के तहसील प्रचारक के नाते प्रारम्भ हुई। इसके बाद वे गोरखपुर और बस्ती में जिला प्रचारक, गोरखपुर में सहविभाग प्रचारक तथा फिर फतेहपुर में विभाग प्रचारक रहे। आपातकाल में वे पुलिस को छकाते हुए भूमिगत रहकर ही काम करते रहे। सर्वाधिक लम्बा समय उन्होंने साकेत में बिताया, जहां वे दस वर्ष तक विभाग प्रचारक रहे। पूर्वी उत्तर प्रदेश को संघ कार्य के लिए पहले दो और फिर चार प्रांतों में बांटा गया। चंद्रिका जी पर कई वर्ष तक अवध प्रांत के सम्पर्क प्रमुख की जिम्मेदारी रही। इस नाते उन्होंने पूरे प्रांत का प्रवास किया।

लखनऊ में ‘विश्व संवाद केन्द्र’ से मीडिया सम्बन्धी गतिविधियां चलती हैं। उसकी देखरेख के लिए एक वरिष्ठ कार्यकर्ता की आवश्यकता अनुभव हो रही थी। अतः चंद्रिका प्रसाद जी को उसकी जिम्मेदारी दे दी गयी; पर वहां रहते हुए उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और 2005 में उन्हें मस्तिष्काघात (बे्रन हेमरेज) हुआ। यद्यपि समय पर चिकित्सा होने से वे काफी ठीक हो गये; पर पहले जैसी स्थिति नहीं हो सकी। उनकी स्मृति और आवाज पर इसका दुष्प्रभाव हुआ। अतः सक्रिय कार्य से मुक्त होकर वे लखनऊ में ‘भारती भवन’ कार्यालय पर रहने लगे। वहां पर उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उसकी पूर्ण चिकित्सा के लिए उन्हें काशी हिन्दू वि.वि. के अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान वहां पर ही पांच अगस्त 2014 को हुए दूसरे हृदयाघात से उनका निधन हुआ।

चंद्रिका जी स्वभाव से बहुत सरल, सहज तथा विनम्र व्यक्ति थे। वे सदा खुश रहते थे तथा आसपास वालों को भी खुश रखते थे। वे किसी काम को छोटा नहीं समझते थे। गंदगी देखकर वे निःसंकोच झाड़ू उठा लेते थे। मितव्ययी होने के कारण उनके निजी खर्चे भी बहुत कम थे। वे जहां भी रहे, वहां के कार्यकर्ता उनकी सरलता तथा सादगी को आज भी याद करते हैं।