नारी उत्थान को समर्पित : दुर्गाबाई देशमुख

आंध्र प्रदेश से स्वाधीनता समर में सर्वप्रथम कूदने वाली महिला दुर्गाबाई का जन्म 15 जुलाई, 1909 को राजमुंदरी जिले के काकीनाडा नामक स्थान पर हुआ था। इनकी माता श्रीमती कृष्णवेनम्मा तथा पिता श्री रामाराव थे। पिताजी का देहांत तो जल्दी ही हो गया था; पर माता जी की कांग्रेस में सक्रियता से दुर्गाबाई के मन पर बचपन से ही देशप्रेम एवं समाजसेवा के संस्कार पड़े।

उन दिनों गांधी जी के आग्रह के कारण दक्षिण भारत में हिन्दी का प्रचार हो रहा था। दुर्गाबाई ने पड़ोस के एक अध्यापक से हिन्दी सीखकर महिलाओं के लिए एक पाठशाला खोल दी। इसमें उनकी मां भी पढ़ने आती थीं। इससे लगभग 500 महिलाओं ने हिन्दी सीखी। इसे देखकर गांधी जी ने दुर्गाबाई को स्वर्ण पदक दिया। गांधी जी के सामने दुर्गाबाई ने विदेशी वस्त्रों की होली भी जलाई। इसके बाद वे अपनी मां के साथ खादी के प्रचार में जुट गयीं।

नमक सत्याग्रह में श्री टी.प्रकाशम के साथ सत्याग्रह कर वे एक वर्ष तक जेल में रहीं। बाहर आकर वे फिर आंदोलन में सक्रिय हो गयीं। इससे उन्हें फिर तीन वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया। कारावास का उपयोग उन्होंने अंग्रेजी का ज्ञान बढ़ाने में किया।

दुर्गाबाई बहुत अनुशासनप्रिय थीं। 1923 में काकीनाड़ा में हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में वे स्वयंसेविका के नाते कार्यरत थी। वहां खादी वस्त्रों की प्रदर्शनी में उन्होंने नेहरू जी को भी बिना टिकट नहीं घुसने दिया। आयोजक नाराज हुए; पर अंततः उन्हें टिकट खरीदना ही पड़ा।

जेल से आकर उन्होंने बनारस मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा आंध्र विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में बी.ए किया। मद्रास वि. वि. से एम.ए की परीक्षा में उन्हें पांच पदक मिले। इसके बाद इंग्लैंड जाकर उन्होंने अर्थशास्त्र तथा कानून की पढ़ाई की। इंग्लैंड में वकालत कर उन्होंने पर्याप्त धन भी कमाया। स्वाधीनता के बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में वकालत की।

1946 में दुर्गाबाई लोकसभा और संविधान सभा की सदस्य निर्वाचित हुईं। 1953 में ही उन्होंने भारत के प्रथम वित्तमंत्री श्री चिन्तामणि देशमुख से नेहरू जी की उपस्थिति में न्यायालय में विवाह किया। इसी वर्ष नेहरू जी ने इन्हें केन्द्रीय समाज कल्याण विभाग का अध्यक्ष बनाया। इसके अन्तर्गत उन्होंने महिला एवं बाल कल्याण के अनेक उपयोगी कार्यक्रम प्रारम्भ किये। इन विषयों के अध्ययन एवं अनुभव के लिए उन्होंने इंग्लैंड, अमरीका, सोवियत रूस, चीन, जापान आदि देशों की यात्रा भी की।

दुर्गाबाई देशमुख ने आन्ध्र महिला सभा, विश्वविद्यालय महिला संघ, नारी निकेतन जैसी कई संस्थाओं के माध्यम से महिलाओं के उत्थान के लिए अथक प्रयत्न किये। योजना आयोग द्वारा प्रकाशित ‘भारत में समाज सेवा का विश्वकोश’ उन्हीं के निर्देशन में तैयार हुआ। आंध्र के गांवों में शिक्षा के प्रसार हेतु उन्हें नेहरू साक्षरता पुरस्कार दिया गया। उन्होंने अनेक विद्यालय, चिकित्सालय, नर्सिंग विद्यालय तथा तकनीकी विद्यालय स्थापित किये। उन्होंने नेत्रहीनों के लिए भी विद्यालय, छात्रावास तथा तकनीकी प्रशिक्षण केन्द्र खोले।

दुर्गाबाई देशमुख का जीवन देश और समाज के लिए समर्पित था। लम्बी बीमारी के बाद नौ मई, 1981 को उनका देहांत हुआ। उनके द्वारा स्थापित अनेक संस्थाएं आज भी आंध्र और तमिलनाडु में सेवा कार्यों में संलग्न हैं।
(संदर्भ : राष्ट्रधर्म दिसम्बर 2010 तथा अतंरजाल सेवा)