मंडल कमीशन का छाता जो पिछड़ों के लिए घनी छांव लेकर आया

समानता केवल समान लोगों के बीच होती है।असमान को समान के बराबर रखना असमानता को मजबूती प्रदान करना है। 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने की घटना ने आजादी के बाद की राजनीति को दो हिस्सों में बांट दिया। एक मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू होने से पहले की राजनीति और दूसरी उसके बाद की। इसे भारतीय सामाजिक इतिहास में ‘वाटरशेड मोमेंट’ भी कह सकते हैं।अंग्रेज़ी के इस मुहावरे का मतलब है- वह क्षण जहां से कोई बड़ा परिवर्तन शुरू होता है। 1989 के आम चुनावों के परिणामों के बाद जनता दल के गठबंधन की सरकार के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी बने।यह दूसरा मौका था जब भारत में ग़ैर कांग्रेसी दल या गठबंधन सत्ता के केंद्र में आया था। वीपी सिंह ने सबको चौंकाते हुए सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को 27 फीसदी आरक्षण की मंडल आयोग की सिफ़ारिश को 7 अगस्त,1990 को लागू कर दिए।। यह बोतल से एक जिन्न के बाहर आने के जैसा था। आखिर ऐसा क्या था मंडल कमीशन में जिसे बनने के बरसों बाद तक लागू न किया जा सका और लागू होने के बाद ऐसा भूचाल आया जिसके झटके अब तक महसूस हो रहे हैं।जनता दल ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में सरकार बनने पर मण्डल कमीशन की सिफारिश को लागू करने का वादा किया। दिसम्बर,1989 में वाममोर्चा व भाजपा के बाहरी समर्थन से विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बन गए।उन्होंने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 26 जनवरी,1990 को साफतौर पर अपने सम्बोधन में कहा कि-हमारी सरकार मण्डल कमीशन की सिफारिश को लागू कर अन्य पिछड़ावर्ग को नौकरियों में आरक्षण देगी।वीपी सिंह इब्सा को आरक्षण देने के लिए संकल्पित थे,जबकि इन्ही के दल के चंद्रशेखर इसके कट्टर विरोधी थे।चंद्रशेखर को धुर समाजवादी कहा जाता है,पर यह बिल्कुल उलट है।चंद्रशेखर समाजवाद की आड़ में बहुत बड़े जातिवादी व सामंतवादी भावना के थे।वीपी सिंह की एक आदत थी कि वे जो कह दिए,उस पर अडिग रहते थे। उन्होंने तमाम विरोधों को झेलते हुए भी सरकार रहेगी कि चली जायेगी,13 अगस्त,1990 को मण्डल कमीशन की सिफारिश सम्बंधित अधिसूचना जारी करा दिए।

मंडल कमीशन की कहानी
इंदिरा गांधी की लगाई इमरजेंसी के 21 महीने झेलने के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर पिछड़े वर्ग के कई नेता चुनाव जीतकर संसद में पहुँचे। गुजराती ब्राह्मण मोरार जी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी।फिर देसाई सरकार ने कांग्रेसी सरकारों को भंग कर विधानसभाओं के चुनाव करवाए।इसमें भी जनता पार्टी जीती।बिहार में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में सरकार बनी और कर्पूरी ने अगले ही बरस बिहार की सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्ग के लिए 20 फीसदी आरक्षण का कानून बना दिया।इसके बाद केन्द्रीय सेवाओं में भी पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण के प्रावधान की मांग उठने लगी।

मोराजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व काल में मंडल कमीशन की रखी गई नींव
पिछड़े वर्ग के आरक्षण का मामला प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय भी आया था।1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने पिछड़े वर्गों के लिए काका कालेलकर आयोग बनाया था।लेकिन इसकी सिफारिशें लागू नहीं की गई थीं।कालेलकर आयोग की रिपोर्ट में एक खामी यह थी कि उसमें सिर्फ हिन्दुओं में ही पिछड़ेपन की पहचान की गई थी, बाकी धर्म छूट गए थे।इन्हीं सब परिस्थितियों को देखते हुए 20 दिसंबर 1978 को मोरारजी देसाई की सरकार ने बिहार के मधेपुरा से सांसद बीपी मंडल की अध्यक्षता में द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की अधिसूचना जारी की,जिसे इनके नाम के आधार पर मंडल आयोग कहा गया।

जनवरी 1979 में मंडल आयोग ने अपना काम शुरू किया।कुछ ही महीनों के बाद जुलाई 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार गिरा दी गई। इसके बाद जनता पार्टी टूट गई।नई बनी जनता पार्टी (सेक्युलर) ने सत्ता संभाली, पीएम बने चौधरी चरण सिंह।लेकिन कुछ ही महीनों में यह सरकार भी चली गयी। फिर मध्यावधि चुनाव हुए। इस मध्यावधि चुनाव में बीपी मंडल एक बार फिर जनता पार्टी (चरण सिंह-राजनारायण गुट वाली नहीं बल्कि चंद्रशेखर और जगजीवन राम वाली) के उम्मीदवार बने। लेकिन इस बार वे तीसरे स्थान पर खिसक गए। उन्हें हराया कांग्रेस (उर्स) के राजेन्द्र प्रसाद यादव ने।वही राजेन्द्र प्रसाद यादव जिन्होंने उन्हें 1971 में भी हराया था।

वीपी सिंह और ‘सामाजिक न्याय’ की रपट
साल 1980 के चुनाव में इन्दिरा गांधी की सत्ता में वापसी हो गई थी।दिसंबर 1980 में मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को सौंपी। इस रिपोर्ट में सभी धर्मों के पिछड़े वर्ग की साढ़े तीन हजार से भी ज्यादा जातियों की पहचान की गई।कमीशन ने 52 फीसदी ओबीसी को सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की।मंडल की रिपोर्ट इंदिरा और राजीव गांधी के राज में धूल फांकती रही। 2 दिसंबर 1989 को वीपी सिंह का राज शुरू हुआ। 1990 में वीपी सिंह ने मंडल आयोग की फाइल की धूल झाड़ कर उसे निकाला। अब वक्त आ गया था भारत की राजनीति में एक नए सामाजिक न्याय के मसीहा के उदय का। 7 अगस्त 1990 को मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने की घोषणा के साथ ही पूरे देश में आरक्षण के विरोध की आग भड़क उठी।विश्वनाथ प्रताप सिंह वह प्रधानमंत्री थे जिन्होंने सन 1990 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू किया।

मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद क्या हुआ?
मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद देश भर के सवर्ण छात्रों का ही नहीं, बल्कि सरकार के भीतर भी विरोध देखने को मिला।वीपी सिंह सरकार के भीतर मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने को लेकर नेता अलग-अलग मत पहले ही जाहिर कर चुके थे।जब वीपी सिंह ने कैबिनेट की मीटिंग में खड़े होकर अपने मैनिफेस्टो में कहे मुताबिक मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने की बात कही। तब इसे सुन कई मंत्री चुप्पी साध गए थे।लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव और रामविलास पासवान ने इसका खुलकर समर्थन किया।आगरा के जाट नेता और तत्कालीन रेल राज्यमंत्री अजय सिंह ने एक अलहदा सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि इसी में थोड़ा-बहुत इधर उधर करके जनरल कैटगिरी (जिनमें जाट भी शामिल थे) के गरीब लोगों के लिए भी कुछ स्पेस बना दिया जाए, तो कोई बवाल नहीं होगा अन्यथा इसका विरोध हो सकता है। किसी ने अजय सिंह की नहीं सुनीं और फैसले पर मुहर लगा दी गई।

इसके दो दिन बाद यानी 9 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने को लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह और उप प्रधानमंत्री देवीलाल में मतभेद पैदा हो गए। मतभेद इतने बढ़े कि उप-प्रधानमंत्री देवीलाल ने इस्तीफ़ा दे दिया।सरकार मण्डल कमीशन की सिफारिश लागू कर ओबीसी को आरक्षण देने के लिए अड़ी रही। 10 अगस्त 1990 को आयोग की सिफारिशों के तहत सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था करने के खि़लाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। सरकार पर कोई असर नहीं हुआ, 13 अगस्त 1990 को सरकार ने आनन-फानन में मंडल आयोग की सिफारिश लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी।

मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने पर लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह तो वीपी सिंह के साथ खड़े दिखे लेकिन चंद्रशेखर ने इसे लागू करने के तरीके पर सवाल खड़े कर दिए।वीपी सरकार के विरोध में जब ओडिशा में प्रदर्शनकारी पुलिस फायरिंग की जद में आए, तो उड़ीसा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के विरोधी स्वर सबसे पहले बाहर आए। बीजू पटनायक जनता दल की ही सरकार चला रहे थे और उन्होंने अपनी ही पार्टी के प्रधानमंत्री के फैसले का विरोध करते हुए उन पर जातीय हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप मढ़ दिया।बीजू पटनायक के अलावा वीपी सिंह के करीबियों में यशवंत सिन्हा और हरमोहन धवन ने भी उनके फैसले की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की। वीपी सिंह से खार खाए बैठे चंद्रशेखर ने कहा था कि सरकार का इसे लागू करने का तरीका गलत है।वीपी सिंह सरकार के मंत्री अरुण नेहरू और आरिफ मोहम्मद खां भी असंतुष्ट नेताओं की कतार में खड़े नजर आए।

देश भर में आरक्षण के विरोध में आंदोलन तेज हो गया था।इस बीच आरक्षण विरोधी आंदोलन की एक तस्वीर ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था।दिल्ली यूनिवर्सिटी के देशबंधु कॉलेज के थर्ड ईयर के छात्र राजीव गोस्वामी ने खुद को आग लगा ली। उसे गंभीर हालात में एम्स में भर्ती कराया गया।वीपी सिंह की सरकार को बाहर से सशर्त समर्थन देने वाली बीजेपी के अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी राजीव गोस्वामी से मिलने एम्स अस्पताल पहुंचे। इस दौरान उन्हें अगड़ी जाति के नौजवानों के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा।आडवाणी ने वक्त की नजाकत को भांपा और उसके बाद मंडल के जवाब में कमंडल की राजनीति तेज कर दी।उस वक्त छपी इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी ने वीपी सिंह सरकार को फैसले पर पुनर्विचार नहीं करने पर समर्थन वापसी का भी दबाव बनाया।

हालांकि बीजेपी इस मसले पर कोई स्पष्ट स्टैंड नहीं ले पाई। लेफ्ट पार्टियों की स्थिति भी बीजेपी जैसी ही रही।सीपीआई ने आरक्षण का समर्थन किया, लेकिन सीपीएम को इस मसले पर स्टैंड लेते-लेते काफी वक्त लग गया। सरकार पर लगातार दबाव बढ़ने लगा।नवंबर आते-आते बीजेपी ने वीपी सिंह की नेशनल फ्रंट की सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी। वीपी सिंह ने 7 नवंबर 1990 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

मंडल आयोग ने पिछड़ों के हालात देख क्या सिफारिशें कीं?
मंडल आयोग ने पाया कि अन्य पिछड़ा वर्ग भले ही आर्थिक तौर पर मज़बूत रहा हो, लेकिन सरकारी नौकरियों में उसकी भागीदारी बहुत ही कम है।इस वर्ग के तहत कुल 3743 जातियां चिन्हित की गईं।यह भी पाया गया कि केंद्रीय सरकारी नौकरियों में ओबीसी 12.55 फीसदी हैं। केंद्र सरकार की और क्लास 1 (प्रशासनिक) यानी आईएएस-आईपीएस जैसी नौकरियों में इनकी भागीदारी सिर्फ़ 4.83 फीसदी ही है। अब अगला कदम यह जानना था कि इनकी कुल जनसंख्या में कितनी हिस्सेदारी है। 1931 के बाद जातिगत गणना नहीं हुई थी, लिहाज़ा इन आंकड़ों को अनुमान ही माना गया। सटीक नहीं, हालांकि मोटे तौर पर इससे अलग-अलग जातियों की हिस्सेदारी का अंदाज़ा लग जाता है।

मण्डल कमीशन के हिसाब से आंकड़े में सवर्ण-16.1 फीसदी,हिन्दू ओबीसी-43.7 फीसदी,अनुसूचित जाति-16.6 फीसदी, अनुसूचित जनजाति – 8.6 फीसदी और ग़ैर-हिंदू अल्पसंख्यक – 17.6 फीसदी हैं।सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात है कि सिर्फ़ मंडल आयोग ही हमारे पास वह स्रोत है जिसके आधार पर यह तय किया गया कि हिंदू ओबीसी समूची आबादी में 43.7 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं।मंडल आयोग के चेयरमैन बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने रिपोर्ट में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का सुझाव दिया।इसकी वजह समझाते हुए उन्होंने लिखा,”सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करने की जंग को पिछड़ी जातियों के ज़हन में जीतना ज़रूरी है। भारत में सरकारी नौकरी पाना सम्मान की बात है।ओबीसी वर्ग की नौकरियों में भागीदारी बढ़ने से उन्हें यकीन होगा कि वे सरकार में भागीदार हैं।पिछड़ी जाति का व्यक्ति अगर कलेक्टर या पुलिस अधीक्षक बनता है, तो ज़ाहिर तौर पर उसके परिवार के अलावा किसी और को लाभ नहीं होगा, पर वह जिस समाज से आता है, उन लोगों में गर्व की भावना आएगी, उनका सिर ऊंचा होगा कि उन्हीं में से कोई व्यक्ति ‘सत्ता के गलियारों’ में है।”

मण्डल कमीशन की कितनी सिफारिशें अब तक लागू हुईं?

मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट के अध्याय 13 में कुल 40 प्वाइंट में सिफारिशें की हैं। हैरानी की बात है कि इनमें बहुत कम सिफारिशें ही लागू हो सकीं हैं।अगर मोटे तौर पर कहा जाए तो सिर्फ 2 बड़ी सिफारिशों पर ही अमल हो सका। रिपोर्ट के पहले प्वाइंट में ही कहा गया है कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ापन और गरीबी, जाति आधारित बाधाओं की वजह से है। यह बाधाएं हमारे सामाजिक ढांचे से जुड़ी हुई हैं। इन्हें खत्म करने के लिए ढांचागत बदलाव की जरूरत होगी। देश के शासक वर्ग के लिए ओबीसी की समस्याओं की अनुभूति में बदलाव कम महत्वपूर्ण नहीं होगा। *अभी तक मण्डल कमीशन की 2 सिफारिशें-सरकारी सेवाओं में आरक्षण व उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण को ही लागू किया जा सका है।एक को विश्वनाथ प्रताप सिंह ने लागू किया तो दूसरे को अर्जुन सिंह जी ने।*

मंडल कमीशन की सिफारिशें

1.खुली प्रतिस्पर्धा में मेरिट के आधार पर चुने गए ओबीसी अभ्यर्थी को उनके लिए निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण कोटे में समायोजित न किया जाए।
2.ओबीसी रिजर्वेशन सभी स्तरों पर प्रमोशन कोटा में भी लागू किया जाए।
3.हर श्रेणी की पोस्ट के लिए रोस्टर व्यवस्था उसी तरह से लागू की जानी चाहिए, जैसा कि एससी और एसटी के अभ्यर्थियों के मामले में है। मतलब ऐसा न हो किसी खास पोस्ट पर रिजर्वेशन पाने वाला पहुंच ही न सके।
4.सरकार से किसी भी तरीके से वित्तीय सहायता पाने वाली प्राइवेट सेक्टर की सभी कंपनियों को आरक्षण लागू करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।
5.इन सिफारिशों को असरदार बनाने के लिए पर्याप्त वैधानिक प्रावधान सरकार द्वारा किए जाएं, जिसमें मौजूदा अधिनियमों, कानूनों, प्रक्रिया आदि में संशोधन शामिल है।इस तरह से आरक्षण को सख्ती से लागू करवाया जा सकेगा।
6.अन्य पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने में सुविधा देने के लिए अलग से पैसों का प्रावधान किया जाना चाहिए।जिससे अलग से योजना चलाकर गंभीर और जरूरतमंद स्टूडेंट्स को प्रोत्साहित किया जा सके और उनके लिए उचित माहौल बनाया जा सके।
7. पिछड़े वर्ग के बच्चों की स्कूल छोड़ने की दर बहुत ज्यादा है।इसे देखते हुए ओबीसी की घनी आबादी वाली जगहों पर प्रौढ़ शिक्षा के लिए एक व्यापक और समयबद्ध कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए। पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों के लिए ऐसे स्कूल खोले जाएं, जिनमें रहने की व्यवस्था हो।इससे उन्हें गंभीरता से पढ़ने का माहौल मिल सकेगा। इन स्कूलों में रहने खाने जैसी सभी सुविधाएं, मुफ्त मुहैया कराई जानी चाहिए। इससे गरीब और पिछड़े घरों के बच्चे इनकी ओर आकर्षित होगें।
9.ओबीसी विद्यार्थियों के लिए अलग से सरकारी हॉस्टलों की व्यवस्था की जानी चाहिए, जिनमें खाने, रहने की मुफ्त सुविधाएं हों।
10.ओबीसी शिक्षा बहुत ज्यादा व्यावसायिक प्रशिक्षण की ओर झुकी हुई हो।कुल मिलाकर सेवाओं में आरक्षण से शिक्षित ओबीसी का एक बहुत छोटा हिस्सा ही नौकरियों में जा सकता है। शेष को व्यावसायिक कौशल की जरूरत है, जिसका वह फायदा उठा सकें।
11.ओबीसी स्टूडेंट्स के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे सभी वैज्ञानिक, तकनीकी और प्रोफेशनल इंस्टीट्यूशंस में 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की जाए।
12.आरक्षण से प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों को तकनीकी और प्रोफेशनल इंस्टीट्यूशंस में विशेष कोचिंग की सुविधा प्रदान की जाए।
13.गांवों में बर्तन बनाने वालों, तेल निकालने वालों, लोहार, बढ़ई जैसे वर्ग के लोगों को ट्रनिंग दी जाए।उन्हें उचित संस्थागत वित्तीय और तकनीकी सहायता के साथ प्रोफेशनल ट्रेनिंगई दिलाई जाए। जिससे वे अपने दम पर छोटे उद्योगों की स्थापना कर सकें।इसी तरह की सहायता उन ओबीसी अभ्यर्थियों को भी मुहैया कराई जानी चाहिए, जिन्होंने कोई स्पेशल स्किल कोर्स किया है।
14.छोटे और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए बनी विभिन्न फाइनेंशियल और टेक्निकल एजेंसियों का फायदा सिर्फ प्रभावशाली तबके के सदस्य ही उठा पाते हैं। इसे देखते हुए यह बहुत जरूरी है कि पिछड़े वर्ग की अलग से फाइनेंशियल और टेक्निकल एजेंसियों की व्यवस्था की जाए।
मंडल कमीशन में छोटे और मझोले उद्योगों से जुड़े पिछड़े लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए अलग से संस्थाएं बनाने को कहा गया है।

15.देश के बिजनेस और एंटरप्रेन्योर में ओबीसी की हिस्सेदारी नगण्य है।फाइनेंशियल और टेक्निकल इंस्टीट्यूशंस का अलग नेटवर्क तैयार किया जाए, जो ओबीसी वर्ग में कारोबारी और औद्योगिक इंटरप्राइजेज को गति देने में सहायक हो।
16.सभी राज्य सरकारों को प्रगतिशील भूमि सुधार कानून लागू करना चाहिए।इससे देश भर के मौजूदा उत्पादन संबंधों में ढांचागत एवं प्रभावी बदलाव लाया जा सकेगा।
17.इस समय अतिरिक्त भूमि का आवंटन एससी और एसटी को किया जाता है। भूमि सीलिंग कानून आदि लागू किए जाने के बाद से मिली अतिरिक्त जमीनों को ओबीसी भूमिहीन श्रमिकों को भी आवंटित की जानी चाहिए।
18.कुछ पेशेगत समुदाय जैसे मछुआरों,बंजारा,बांसफोड़,खाटवास आदि के कुछ वर्ग अभी भी देश के कुछ हिस्सों में अछूत होने के दंश से पीड़ित हैं। उन्हें आयोग ने ओबीसी के रूप में सूचीबद्ध किया है, लेकिन सरकार द्वारा उन्हें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने पर विचार करना चाहिए।
19.पिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगमों की स्थापना की जानी चाहिए। यह केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर किया जाना चाहिए, जो पिछड़े वर्ग की उन्नति के लिए विभिन्न सामाजिक-शैक्षणिक और आर्थिक कदम उठा सकें।
20.केंद्र व राज्य स्तर पर पिछड़े वर्ग के लिए एक अलग मंत्रालय/विभाग बनाया जाना चाहिए, जो उनके हितों की रक्षा का काम करे।
21.पूरी योजना को 20 साल के लिए लागू किया जाना चाहिए और उसके बाद इसकी समीक्षा की जानी चाहिए।
मंडल आयोग की सिफारिशों को देखें तो इसके सिर्फ दो बड़े बिंदुओं पर ही कुछ हद तक काम हुआ है। पहला है केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण और दूसरा केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रवेश में ओबीसी का 27 फीसदी आरक्षण।बाकी सिफारिशें अब भी धूल फांक रही हैं।

चौ.लौटनराम निषाद
(लेखक मंडलवादी सामाजिक न्याय चिन्तक व भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।)