अपने को शारीरिक ज्ञान से ऊपर उठाकर आत्मिक स्वरूप को पहचानें: अर्द्धमौनी

मुरादाबाद। हरे कृष्ण चौक, नवीन नगर में आयोजित हरिकथा संकीर्तन में कथा व्यास एवं मठ-मन्दिर विभाग प्रमुख श्रद्धेय धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि सबसे अधिक महत्त्व की वस्तु समय है। मोहवश उसका दुरुपयोग न करो। यदि वेदना से प्रीति है, तो परम प्रेमास्पद के लिये क्यों नहीं व्याकुल होती? जो तुम्हारा नित्य साथी हैं। संसार की वस्तुएँ चाहे किसी स्वरूप में क्यों न हों, वे तुम्हारी साथी नहीं है। वे तो इस क्षणभंगुर विकारयुक्त शरीर की साथी है।

तुम शरीर नहीं हो। शरीर रूपी यन्त्र तो तुमको केवल प्रेमपात्र के नाते, विश्व-सेवा के लिये मिला है। यदि तुम उस शरीर को मोह रूपी अग्नि में जलाओगी, तो फिर प्रेमपात्र की आज्ञा का पालन किसके द्वारा करोगी।

हम शरीरधारिओं को जो, जो खेल मिला है, उस लीलामय की प्रसन्नता के लिये वह, वह खेल खेलो। खेल ‘खेल’ है, जीवन नहीं। प्राणी का जीवन केवल ‘उनकी’ प्रीति है। देखो! संतान के द्वारा भला, किसे चैन मिला है? महाराज दशरथ को प्राण देना पड़ा। नंद-यशोदा को मीन की भाँति व्याकुलता सहनी पड़ी। तो हम साधारण प्राणियों की बात ही क्या है।

जो हो चुका है, उसके लिये चिन्ता न करो। जो समय व्यर्थ चिन्ता में बिताती हो, वह समय ‘उनके’ चिन्तन में बिताओ। सुख-दुःख मन का धर्म है। जो मन ‘उनके’ श्री चरणों में लग जाता है, वह मन सदा के लिये सुख-दुःख से छूट जाता है।

प्रमाद को त्याग, सावधान हो जाओ और प्रत्येक स्वाँस का सदुपयोग करो। जब तक आपका हृदय दुःखी है, क्या आपका यह बालक प्रसन्न हो सकता है।

विद्या मनुष्य की अनुपम कीर्ति है, भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, विद्या कामधेनु है, विरह में रति समान है, विद्या ही तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल की महिमा है, बिना रत्न का आभूषण है; इस लिए अन्य सब विषयों को छोड़कर विद्यावान् बनना चाहिये।

सत्संग में सुमित अग्रवाल, सारिका अग्रवाल, देवांश अग्रवाल, शिवांश अग्रवाल, उमा अग्रवाल, सोनाली सरोज, शोभा अग्रवाल, नीलम कौशिक, कुसुम उत्तरेजा, सुधा शर्मा, सपना चौधरी, किरन सिंह, आयुष गौड़, आशा भूटानी, साक्षी नागपाल, पायल मग्गू, प्रभा बब्बर आदि रहे।