जन्म-दिवस पर जाने अधिवक्ता लक्ष्मणराव इनामदार को

गुजरात में वकील साहब के नाम से लोकप्रिय श्री लक्ष्मण माधवराव इनामदार का जन्म 21 सितम्बर, 1917 (भाद्रपद शुदी 5, ऋषि पंचमी) को ग्राम खटाव (जिला सतारा, महाराष्ट्र) में हुआ था। इनके पूर्वज श्रीकृष्णराव खटावदार ने शिवाजी के काल में स्वराज की बहुत सेवा की थी, अतः शिवाजी के पौत्र छत्रपति शाहूजी महाराज ने उन्हें इनाम में कुछ भूमि और ‘सरदार’ की उपाधि दी। तबसे यह परिवार ‘इनामदार’ कहलाने लगा।

वकील साहब एक बड़े कुटुंब के सदस्य थे। सात भाई और दो बहिन, चार विधवा बुआ तथा उनके बच्चे सब साथ रहते थे। आर्थिक कठिनाई के बाद भी उनके पिता तथा दादाजी ने इन सबको निभाया। इससे वकील साहब के मन में सबको साथ लेकर चलने का संस्कार निर्माण हुआ। उनकी शिक्षा ग्राम दुधोंडी, खटाव तथा सतारा में हुई। 1939 में सतारा में एल.एल.बी. करते समय हैदराबाद निजाम के विरुद्ध आंदोलन जोरों पर था। लक्ष्मणराव ने शिक्षा अधूरी छोड़कर 150 महाविद्यालयीन छात्रों के साथ आंदोलन में भाग लिया।

1943 में महाराष्ट्र के अनेक युवक एक वर्ष के लिए प्रचारक बने। उनमें से एक वकील साहब को गुजरात में नवसारी नामक स्थान पर भेजा गया; पर वह एक वर्ष जीवन की अंतिम सांस तक चलता रहा। 1952 में वे गुजरात के प्रांत प्रचारक बने। उनके परिश्रम से अगले चार साल में वहां 150 शाखाएं हो गयीं। वे स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए आसन, व्यायाम, ध्यान, प्राणायाम तथा साप्ताहिक उपवास आदि का निष्ठा से पालन करते थे।

सबसे सम्पर्क बनाकर रखना उनकी एक बड़ी विशेषता थी। पूर्व प्रचारक या जो कार्यकर्ता किसी कारणवश कार्य से अलग हो गये, अपने प्रवास में ऐसे लोगों से वे अवश्य मिलते थे। छोटे से छोटे कार्यकर्ता की चिंता करना उनका स्वभाव था। संघ कार्य के कारण कार्यकर्ता के जीवनयापन या परिवार में कोई व्यवधान उत्पन्न न हो, यह भी वे ध्यान रखते थे।

1973 में क्षेत्र प्रचारक का दायित्व मिलने पर गुजरात के साथ महाराष्ट्र, विदर्भ तथा नागपुर में भी उनका प्रवास होने लगा। अखिल भारतीय व्यवस्था प्रमुख बनने पर उनके अनुभव का लाभ पूरे देश को मिलने लगा। स्वयंसेवक का मन और संस्कार ठीक बना रहे, इसका वे बहुत ध्यान रखते थे।

1982-83 में उनका स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया। एक सम्पन्न स्वयंसेवक ने उन्हें इलाज के लिए कुछ राशि देनी चाही; पर वकील साहब ने वह राशि निर्धनों के लिए चल रहे चिकित्सा केन्द्र को दिलवा दी। एक स्वयंसेवक ने संघ कार्यालय के लिए एक पंखा भेंट करना चाहा। वकील साहब ने उसे यह राशि श्री गुरुदक्षिणा में ही समर्पित करने को कहा।

प्रचारक बाहर का निवासी होने पर भी जिस क्षेत्र में काम करता है, उसके साथ एकरूप हो जाता है। वकील साहब भाषा, बोली या वेशभूषा से सौराष्ट्र के एक सामान्य गुजराती लगते थे। देश का विभाजन, 1948 और 1975 का प्रतिबंध, सोमनाथ मंदिर का निर्माण, गोहत्या बंदी सत्याग्रह, चीन और पाकिस्तान के आक्रमण, विवेकानंद जन्मशती, गुजरात में बार-बार आने वाले अकाल, बाढ़ व भूकम्प, मीनाक्षीपुरम् कांड … आदि जो भी चुनौतियां उनके कार्यकाल में संघ कार्य या देश के लिए आयीं, सबका उन्होंने डटकर सामना किया।

गुजरात में संघ कार्य के शिल्पी श्री लक्ष्मणराव इनामदार ने 15 जुलाई, 1985 को पुणे में अपना शरीर छोड़ा। गुजरात में न केवल संघ, अपितु संघ प्रेरित हर कार्य में आज भी उनके विचारों की सुगंध व्याप्त है।

(संदर्भ : ज्योतिपुंज, लेखक नरेन्द्र मोदी)