सदाचारी, राष्ट्रवादी एवं भक्तिरत ही दीर्घायु, यशस्वी, बलशाली होते हैं -अर्द्धमौनी

मुरादाबाद । द्वारिकाधीश मन्दिर, काशीराम नगर में आयोजित भजन सन्ध्या एवं हरिनाम संकीर्तन में कथा व्यास श्रद्धेय धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि जो व्यक्ति सुशील और विनम्र होते हैं, बड़ों का अभिवादन व सम्मान करने वाले होते हैं तथा अपने बुजुर्गों की सेवा करने वाले होते हैं। उनकी आयु, विद्या, कीर्ति और बल इन चारों में वृद्धि होती है। गीता में भगवान् ने अहंता-ममता अर्थात् मैं और मेरेपन से रहित होने की बात कही है। इससे सिद्ध होता है कि अहंता-ममता का त्याग हो सकता है। अगर यह बात सम्भव न होती तो भगवान् यह बात न कहते। भगवान् ने कहा है तो इसका अर्थ है कि इनका त्याग अवश्य हो सकता है।

त्याग उसी का हो सकता है जो वास्तव में नहीं होता। वास्तविक का त्याग नहीं होता। जैसे यदि अग्नि से उष्णता या प्रकाश का त्याग करावें, तो कैसे त्याग करे, सूर्य अपने प्रकाश या गर्मी का त्याग कैसे करें। अहंता-ममता हमने बनायी है। इसको सन्तों ने माया कहा है। भगवान् राम ने भी पंचवटी में यही कहा है। मैं और मेरा यह माया है। इस माया में ही संसार फँसा हुआ है। माया का त्याग किया जा सकता है।

जिस प्रकार मुट्ठी में भरी रेत धीरे-धीरे सरकती जाती है, ठीक उसी प्रकार समय भी हमारे हाथों से धीरे-धीरे सरकता जाता है। यहाँ प्रत्येक वस्तु, पदार्थ और व्यक्ति एक ना एक दिन सबको जीर्ण-शीर्ण अवस्था को प्राप्त करना है। जरा किसी को भी नहीं छोड़ती।

लेकिन तृष्णा कभी वृद्धा नहीं होती है। वह सदैव जवान बनी रहती है और ना ही मानव मन से इसका कभी नाश होता है। घर बन जाये यह आवश्यकता है, अच्छा घर बने यह इच्छा है और एक से क्या होगा, दो तीन घर होने चाहियें , बस इसी का नाम तृष्णा है।

स्वयं से ना मिटे तृष्णा तो कृष्ण से प्रार्थना करो। उनका आश्रय ही तृष्णा को मिटा सकता है। जिस जीवन में प्रभु को स्थान नहीं होता फिर वही जीवन तृष्णा से ग्रसित भी हो जाता है।

भजनोत्सव में डा० फूल सिंह सैनी, डा० कौशल्या देवी, पारुल सैनी, चेतना सैनी, केशव सैनी, मोना अग्रवाल, अनुराधा खुराना, नीतू सिंह, श्वेता सिंह, सुधा शर्मा, अंकुश सिंह, देवांश अग्रवाल, कुसुम उत्तरेजा, सपना चौधरी, किरन सिंह आदि उपस्थित रहे।