मानव शरीर ही जन्म-मृत्यु के चक्र से निकालकर बैकुण्ठ तक पहुंचाता है: अर्द्धमौनी
मुरादाबाद। श्रीशिव हरि मन्दिर, रामगंगा विहार समिति द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय श्रीराम कथा में द्वितीय दिवस कथा व्यास श्रद्धेय धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि श्रेष्ठ व्यक्ति बहुधा वाचाल नहीं होते हैं। पर निम्न श्रेणी के व्यक्ति बहुत वाचाल होते हैं। उसी प्रकार जैसे स्वर्ण प्रहार किये जाने पर वैसी ध्वनि नहीं करता जैसी कम मूल्यवान पीतल या कांसे पर प्रहार करने से होती है।
जैसे पृथ्वी पर कभी बाढ़ आती है, कभी आग लगती है, कभी सुखदायी परिस्थिति आती है, कभी दु:खदायी परिस्थिति आती है, तरह-तरह की परिस्थितियां आती है। पर्वत पर खड़े हुए मनुष्य के पास उनमें से कोई भी परिस्थिति नहीं पहुंचती। वह केवल देखता है, सुखी- दु:खी नहीं होता। इसको सुख-दु:ख से ऊंचा उठना कहते हैं और ऐसी स्थिति आपकी, हमारी सबकी हो सकती है।
बुद्धिमान् मनुष्यों की बुद्धि तथा चतुर मनुष्यों की चतुराई धन इकट्ठा करने में नहीं है, वैभव प्राप्त करने में नहीं है तथा भोग-पदार्थ संग्रह करके उनको भोगने में नहीं है, बल्कि इस विनाशशील और क्षणभंगुर शरीर से अविनाशी भगवान् श्री कृष्ण को प्राप्त कर लेने में है।
मनुष्य-जीवन की चरितार्थता ईश्वर की प्राप्ति कर लेने में ही है। विषयभोग तो सब शरीरों में बिना परिश्रम के ही प्राप्त हुआ करते हैं। अधिकारी को भगवत-प्राप्ति अति सुलभ है और अनधिकारी को वह दुर्लभ ही नहीं, असाध्य है। अधिकार के बिना संसार की सामान्य वस्तु भी नहीं मिलती, फिर ऐसी अमूल्य निधि तो कैसे मिलेगी।
जो योगी अपने मन को अन्यत्र कहीं नहीं जाने देता, जो सदैव भगवान में ही मन लगाये रखता है। उस भक्त को भगवान सहज प्राप्त होते हैं।
सुरत–स्मरणरूपी तार में राम-नाम के हीरे को पिरो लो अर्थात् व्यवहार में जो-जो आचरण करो, उसको भगवत्स्मरणपूर्वक करते रहोगे तो सहज ही संसार में तर जाओगे। फिर, भगवान् की प्राप्ति जैसे सुलभ है, वैसे ही उस प्राप्ति का साधन भी सुलभ है। उसमें किसी प्रकार के बलिदान की या कष्ट-सहन की अथवा पैसा खर्च करने की आवश्यकता नहीं है।
भगवान् का नाम बिना मूल्य सर्वसाधारण को प्राप्त है और भगवान् का नाम लेने में कोई विशेष परिश्रम भी नहीं करना पड़ता, क्योंकि जीभ तो मुँह में है ही और वह मनुष्य की आज्ञा के अनुसार चलती है। केवल उसको आज्ञा देनेभर की देर है। इतनी अधिक सुगमता भगवान ने कर रखी है, इसपर भी मनुष्य भगवत-प्राप्ति न करके प्रतिदिन नरक में जाता हुआ दीखता है। इससे बढ़कर अधिक आश्चर्यजनक बात क्या हो सकती है।
कथा में कथा में लीना अग्रवाल, रजनी अरोड़ा, रेनू चावला, प्रभा बब्बर, पायल मग्गू, गिरधर गोपाल पाण्डेय, एस के सक्सैना, नवीन विश्नोई, तिलक राज शर्मा, राजेश गुप्ता, पंकज कालरा, अनिल अरोरा, अनिल वर्मा, ब्रह्म प्रकाश, अल्पना सिन्हा, राज मदान, सुधीर मिश्रा, सपना चौधरी, सुधा शर्मा, कुसुम उत्तरेजा, पं० नारायण जोशी आदि उपस्थित रहे।