टीएमयू में सितार, सारंगी और तबले का अद्भुत संगम

मुरादाबाद। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के ऑडिटोरियम की यह शाम संगीत प्रेमियों के लिए अविस्मरणीय रहेगी। करीब एक घंटे के वाद्ययंत्र- सितार, सारंगी और तबला के अद्भुत संगम पर ऑडी में मौजूद सैकड़ों मेहमान और मेजबान वाह उस्ताद, वाह उस्ताद कहने को विवश हो गए। राग भीम प्लासी, तीन ताल और एक ताल की प्रस्तुतियों पर ऑडी तालियों की गड़बड़ाहट से गूंज उठा। अंत में मिश्र खमाज़ ने संगीत की गहराइयों में उतार दिया। तुम्हारे संग मैं भी चलूंगी पिया, जैसे पतंग संग डोर… डगर बिच कैसे चलूं पग रोकें कैसे चलूं कन्हैया के पीछे…सरीखे लोकगीत को जैसे ही खेमटा ताल में पिरोया टीएमयू का ऑडी झूम उठा। इससे पूर्व कुलाधिपति श्री सुरेश जैन, जीवीसी श्री मनीष जैन, एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन, कुलपति प्रो. रघुवीर सिंह, रजिस्ट्रार डॉ. आदित्य शर्मा, एसोसिएट डीन प्रो. मंजुला जैन, डीन स्टुडेंट वेलफेयर प्रो. एमपी सिंह ने संयुक्त रूप से मां सरस्वती के सम़क्ष दीप प्रज्ज्वलित करके परम्परा-02 का शंखनाद किया। अंत में कुलाधिपति श्री सुरेश जैन ने सितार वादक पंडित शुभेन्द्र राव, कुलपति प्रो. रघुवीर सिंह ने सारंगी वादक उस्ताद मुराद अली ख़ां और एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन ने तबला वादक उस्ताद अकरम ख़ां को स्मृति चिन्ह देकर और शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। कुलाधिपति की सुपौत्री सुश्री नंदनी जैन ने भी इस संगीत सांझ का लुत्फ उठाया। संचालन फैकल्टी श्री विपिन चौहान और श्रीमती सुगंधा जैन ने किया। उल्लेखनीय है, सारंगी वादक उस्ताद मुराद अली ख़ां मुरादाबाद घराने, जबकि तबला वादक उस्ताद अकरम ख़ां मेरठ घराने से ताल्लुक रखते हैं।

राग भीम प्लासी से संगीत की इस संध्या का श्रीगणेश हुआ। जैसे ही पंडित शुभेन्द्र राव ने अपनी अंगुलियों से सितार के सुरों को छेड़ा वैसे पिन ड्राप साइलेंट ऑडी में सुरों की वर्षा होने लगी। बगल में बैठे उस्ताद मुराद अली अपनी सारंगी से जुगलबंदी करने लगे। इस जुगलबंदी ने श्रोताओं के दिलों के तारों को झंकृत कर दिया। दस मिनट तक अलाप और जोड़ अलाप से श्रोता संगीत की इस महफिल में डुबकी लगाते नज़र आए। मध्यलय तीन ताल निबध्य गत में राग भीम प्लासी की गत बजाई। द्रुत लय एक ताल में गत बजाई। जैसे ही अनुदु्रत लय तक बजाया पूरा ऑडी झाले से झूम उठा। अंत में मिश्र खमाज़ धुन की मनमोहनी प्रस्तुति हुई। तुम्हारे संग मैं भी चलूंगी पिया, जैसे पतंग संग डोर… डगर बिच कैसे चलूं पग रोकें कैसे चलूं कन्हैया के पीछे… सरीखे लोकगीतों पर सितार, सारंगी और तबले की जुगलबंदी से पूरा ऑडी तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

परम्परा-02 में ब्रीथिंग आर्ट्स के फाउंडर श्री अनुराग चौहान, आर्टिस्टस कॉर्डिनेटर सुश्री चारू सरन, निदेशक टिमिट प्रो. विपिन जैन, निदेशक एचआर श्री मनोज जैन, ज्वांइट रजिस्ट्रार टिमिट डॉ. अलका अग्रवाल, डॉ. विनोद जैन, लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो. सुशील कुमार सिंह, फॉर्मेसी के प्रिंसिपल प्रो. अनुराग वर्मा, एफओईसीएस के एचओडी प्रो. आशेन्द्र कुमार सक्सेना, डेंटल कॉलेज की एडमिनिस्ट्रेटर डॉ. नीलिमा जैन आदि की भी गरिमामयी मौजूदगी रही। संगीत समारोह का आगाज़ होते ही सभी अतिथियों को बुके देकर गर्मजाशी से स्वागत किया गया। अंत में लॉ कॉलेज के डीन प्रो. हरबंश दीक्षित ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा, किसी राष्ट्र की उन्नति सिर्फ वहां के विकास से नहीं होती है, अपितु वहां के लोगों की संगीत और संस्कृति के प्रति समर्पण की भावना से होता है।

पं.शुभेन्द्र राव बोले, सुर और साज हमारी धरोहर

सितार वादक पंडित शुभेन्द्र राव ने मिश्र खमाज़ से पहले सारंगी वादक उस्ताद मुराद अली ख़ां की पीठ थपथपाते हुए श्रोताओं से कहा, आपने हमें संजीदगी से सुना, आपका शुक्रिया, लेकिन सारंगी को बजाना बहुत मुश्किल काम है। शायद आपको मालूम नहीं होगा, सारंगी बजाने में नाखूनों की बड़ी भूमिका होती है। साथ ही बोले, सितार सुनने भी भले ही सुरीला हो, लेकिन इसे भी बजाना कोई आसान नहीं है। कभी-कभी पोरों में ब्लीडिंग हो जाती है। सितार वादक श्री राव तबला वादक उस्ताद अकरम की भी हौसलाफजाई करने से नहीं चूके। बोले, सालों-साल की तपस्या के बाद एक अकरम सरीखा मिलता है। सितार वादक पंडित शुभेन्द्र राव बोले, सुर और साज हमारी धरोहर हैं, लेकिन संगीत को शांति की दरकार है। उन्होंने उदाहरण दिया, किसी भी चित्रकार को उकेरने के लिए सफेद कागज और रंग की जरूरत होती है वैसे ही किसी कलाकार को पिन ड्राप साइलेंट सरीखा माहौल चाहिए।