देश भर में 35 वर्ष पूर्व गूंज थी ग्वालियर के शाही विवाह की

निर्भय सक्सेना, बरेली। अपने जीवन काल में कई फाइव स्टार होटल से लेकर रिसोर्ट तक की शादियों में शामिल होने का सौभाग्य मिला है। पर लगभग 35 वर्ष पूर्व वर्ष 1987 की ग्वालियर का वह शाही विवाह ऐसा था जिसमे निमंत्रण, वी वी आई पी पास मिलने के साथ यह भी बताया गया था कि विवाह में आने पर आपको पानी भी नहीं मिलेगा। विवाह में आने वाले मेहमानों को जहां ठहराया जाएगा उसके हर तरह के भोजन, विवाह स्थल तक लाने एवम ले जाने के लिए महल के वर्दीधारी शोफर सहित कार भी उपलब्ध रहेगी। और हुआ भी ऐसा ही। पूरे देश में होने वाली इस शाही विवाह की गूंज पहले से ही थी।

12 दिसंबर वर्ष 1987 में यह विवाह होना था केंद्रीय रेल मंत्री, ग्वालियर के महाराजा माधव राव सिंधिया की बेटी चित्रांगदा एवम जम्मू के महाराज कर्ण सिंह के बेटे विक्रमादित्य का। इस विवाह के लिए पूरे ग्वालियर को सजाया संवारा गया था। रेलमंत्री माधव राव सिंधिया ने मुझे भी महल में विवाह से पूर्व ही बुलाकर बता दिया था की विवाह में बाहर से आने वाली मीडिया की रुकने खाने पीने, महल लाने ले जाने को वाहन आपको उपलब्ध रहेंगे। आप जहां भी रुकेंगे वहीं भोजन आदि मिलेगा। महल में शादी में आपको पानी भी नहीं मिलेगा। साथ ही मुझसे यह भी अनुरोध किया की बाहर से आने वाले पत्रकारों को आप ही महल की और से विवाह संबंधी हर जानकारी भी शेयर कर हमारा सहयोग करेंगे। विवाह वाले दिन दोपहर में ट्रेन से ग्वालियर स्टेशन पर 99 बाराती कश्मीर से आए। जिनके लिए पोर्टिको में 99 सफेद मारुति कार का काफिला वर्दी धारी शोफर सहित तैयार था। स्वागत के बाद राजा कर्ण सिंह सहित सभी लोग कार से गंतव्य महल की और रवाना हुए। स्थानीय पत्रकारों ने पूरे कार्यक्रम की कवरेज की। देर शाम सभी पत्रकार भी महल पहुंच गए। रंगीन रोशनी में महल की छटा अदभुत थी। मेटल डिटेक्टटर से हर आने वालों की जांच की जा रही थी। बैठने के लिए बनाए गए स्थल भी अलग अलग थे। जहां देश के समाप्त हो चुके राजघरानों के राजा रजवाड़े अपनी अपनी पारंपरिक ड्रेस में सोने के बटन, हीरे मोतियों की माला से लकदक नजर आ रहे थे। उनकी छडी की मूठ में भी हीरे मोती नजर आ रहे थे। नुस्ली वाडिया सहित कई उद्योगपति भी थे। पर मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह नदारद थे। दिन भर जनसंघ की कर्मठ नेता एवम माधव राव सिंधिया की मां राजमाता विजय राजे सिंधिया के आने नही आने की अटकलों का दौर चलता रहा। पर देर रात विवाह में राजमाता विजय राजे सिंधिया ने अपनी पोत्री चित्रांगदा एवम विक्रमादित्य को आकर आशीर्वाद भी दिया। कुछ देर रुक कर राजमाता अपने महल में चली गई थी। मेने नुस्ली वाडिया सहित कई लोगो का वहां साक्षात्कार किया। विवाह की दैनिक रिपोर्ट दैनिक जागरण में 10 दिसंबर 1987 से लेकर 15 दिसंबर तक निरंतर प्रकाशित भी हुई। देश के नामी फोटोग्राफर रघु राय, रविवार के संपादक उद्दयन शर्मा, इंडियन एक्सप्रेस की ऋतु सरीन, राजीव शुक्ला सहित कई नामी पत्रकारों से भी भेंट हुई। पूर्व परिचित संपादक उद्दयन शर्मा से भी महल के काफी कुछ टिप्स मिले जो मेरी रिपोर्टिंग में अलग से काम आए। अलग अलग। बाड़ों में दूर से ही ग्वालियर की जनता ने भी इस विवाह का अवलोकन किया। अगले दिन 13 दिसंबर 1987 को वर वधु के बग्घी से मंदिर जाते समय शाही सवारी देखने को सड़क के दोनो और शहर में जनसमुदाय उमड़ा था। मेने साथी पत्रकार मुनींद्र चतुर्वेदी के साथ कई एंगिल से इस शाही विवाह की रिपोर्टिंग की थी। पूरे देश में ग्वालियर में हुई इस शाही विवाह की महीनो तक चर्चा रही थी।