Tuesday, July 15, 2025
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सिक्किम से तबाही का दिल दहलाने वाला मंजर, ग्लेशियल लेक के ऊपर बादल फटे

 

सिक्किम (Sikkim) में जो अचानक बाढ़ (Flash Flood) आई है, उसकी कहानी 2013 में केदारनाथ (Kedarnath) में आई आपदा जैसी ही है. उत्तरी सिक्किम में जिला है मंगन (Mangan). मंगन का ऊंचाई वाला इलाका है चुंगथांग (Chungthang). चुंगथांग के हिमालय में बना है साउथ ल्होनक लेक (South Lhonak Lake). यह एक झील है जो ल्होनक ग्लेशियर पर बनी है. यानी यह एक ग्लेशियल लेक है. इसी ग्लेशियल लेक के ऊपर बादल फटे. तेज गति से पानी गिरा. तेज बहाव और दबाव से लेक की दीवारें टूट गईं. ऊंचाई पर होने की वजह से पानी तेजी से निचले इलाकों में बहकर गया. तीस्ता नदी उफान पर आ गई. यह ग्लेशियर 17,100 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है. करीब 260 फीट गहरी. 1.98 किलोमीटर लंबी और आधा किलोमीटर चौड़ी.

 

कुल मिलाकर यह 1.26 वर्ग किलोमीटर में फैली है. आप सोचिए इस झील से जब पानी नीचे आया होगा, तब वो अपने साथ ढेर सारा मलबा और पत्थर लेकर नीचे आया. हरे रंग में दिखने वाली तीस्ता नदी पीले और मटमैले रंग में बहने लगी. साउथ ल्होनक झील सिक्किम के हिमालय क्षेत्र के उन 14 ग्लेशियल लेक्स में से एक है, जिनके फटने का खतरा पहले से था.

 

किसी भी ग्लेशियर के पिघलने के पीछे कई वजहें हो सकती है. जैसे- जलवायु परिवर्तन, कम बर्फबारी, बढ़ता तापमान, लगातार बारिश आदि. गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने का हिस्सा काफी ज्यादा अनस्टेबल है. ग्लेशियर किसी न किसी छोर से तो पिघलेगा ही. अगर लगातार बारिश होती है तो ग्लेशियर पिघलता है. डाउनस्ट्रीम में पानी का बहाव तेज हो गया था. बारिश में हिमालयी इलाकों की स्टेबिलिटी कम रहती है. ग्लेशियर पिघलने की दर बढ़ जाती है.

 

फिलहाल दो दर्जन ग्लेशियरों पर वैज्ञानिक नजर रख पा रहे हैं. इनमें गंगोत्री, चोराबारी, दुनागिरी, डोकरियानी और पिंडारी मुख्य है. यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के वैज्ञानिकों ने हिमालय के 14,798 ग्लेशियरों की स्टडी की. उन्होंने बताया कि छोटे हिमयुग यानी 400 से 700 साल पहले हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की दर बहुत कम थी. पिछले कुछ दशकों में ये 10 गुना ज्यादा गति से पिघले हैं.   

स्टडी में बताया गया है कि हिमालय के इन ग्लेशियरों ने अपना 40% हिस्सा खो दिया है. ये 28 हजार वर्ग KM से घटकर 19,600 वर्ग KM पर आ गए हैं. इस दौरान इन ग्लेशियरों ने 390 क्यूबिक KM से 590 क्यूबिक KM बर्फ खोया है. इनके पिघलने से जो पानी निकला, उससे समुद्री जलस्तर में 0.92 से 1.38 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हुई है.