एमडीआर दवाएं स्टॉक में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध, दबा की किल्लत नहीं: डा सूर्यकांत

 

लखनऊ। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पल्मोनरी एंड रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डा सूर्यकांत ने बताया की प्रदेश में सभी 84 सेंटर के लिए साइक्लोसिरिन दवा स्टॉक में पहुंच गई है। यह दवा ड्रग रेजिस्टेंट टीबी यानी डी वी आर के उन्मूलन में प्रयोग की जाती है। प्रदेश के सभी 16 हजार डी वी आर मरीजों के लिए यह राहत भरी खबर है।

नार्थ जोन टीबी टास्क फ़ोर्स के चेयरमैन व केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त ने समाचार सेवा से बातचीत में कहा जल्द ही प्रदेश के सभी डीआर टीबी सेंटर तक दवा पहुंच जाएगी। प्रदेश में इस समय डीआर टीबी का इलाज ले रहे करीब 16 हजार मरीजों के लिए यह राहत की खबर है। डीआर टीबी मरीजों का इलाज प्रदेश के 86 केन्द्रों पर उपलब्ध है, जिसके लिए केजीएमयू को सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस बनाया गया है। इनमें 24 नोडल ड्रग रेसिस्टेंट टीबी सेंटर और 62 ड्रग रेसिस्टेंट टीबी सेंटर शामिल हैं । देश में सर्वाधिक डीआर टीबी सेंटर वाला राज्य यूपी है ।

क्या है डी आर टीबी

डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि सामान्य टीबी यानि फेफड़े की टीबी की दवा बीच में छोड़ देने या सही तरीके से दवा का सेवन न करने से वह ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (डीआर टीबी) में बदल जाती है। ऐसे में मरीज का इलाज जटिल होने के साथ ही लम्बा चलता है। उन्होंने कहा कि डीआर टीबी मरीजों को सात प्रकार की दवाएं दी जाती हैं उनमें साइक्लोसिरिन एक सहायक दवा है जो एमडीआर टीबी के बैक्टीरिया को समाप्त करने वाली मुख्य दवा के सहयोग के लिए दी जाती है। ऐसे में डीआर टीबी के जो मरीज बीच में इस दवा से वंचित रहे हैं उन्हें चिंतित होने की कतई जरूरत नहीं है क्योंकि इस दवा को छोड़कर जो अन्य दवाएं दी जा रहीं थीं वह बीमारी से मुक्ति दिलाने में पूरी तरह कारगर हैं। इसलिए केंद्र से मिलने वाली दवाओं का सेवन नियमित रूप से अवश्य करें क्योंकि ऐसा न करने से बीमारी गंभीर रूप ले सकती है। दवाओं के साथ खानपान का भी पूरा ख्याल रखें ताकि दवाएं जल्दी असर दिखा सकें। राज्य क्षय रोग अधिकारी डॉ. शैलेन्द्र भटनागर का कहना है कि साइक्लोसिरिन दवा की आपूर्ति लखनऊ के स्टोर में हो चुकी है। जल्द से जल्द यह दवा टीबी यूनिट तक पहुँच जायेगी।

सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस है के जी एम यू का रेस्परेटरी मेडिसिन डिपार्टमेंट

डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि देश में ड्रग रेसिस्टेंस टीबी केन्द्रों के तकनीकी सहयोग के लिए भारत सरकार और इंटरनेशनल यूनियन अंगेस्ट टीबी एंड लंग डिजीज द्वारा कुल पांच सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस बनाये गए हैं । इनमें दिल्ली में दो, मुम्बई में एक, चेन्नई में एक और यूपी में एक सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस शामिल हैं। यूपी के सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस के रूप में केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन डिपार्टमेंट को चुना गया है।

प्रदेश में टीबी मरीजों को चिन्हित करने में उप्र पहले स्थान पर

उत्तर प्रदेश में चलाए जा रहे भारत सरकार की ओर से टीबी उन्मूलन अभियान “नि क्षय” के अंतर्गत मरीजों को खोज कर चिन्हित किया जा रहा है। प्रदेश में अभी तक 19 लाख टीबी मरीज चिन्हित किए गए हैं। इन्हे निशुल्क दवाएं और पांच सौ रुपए पोषण भत्ता भी दिया जा रहा हैं।

उत्तर प्रदेश टीबी उन्मूलन अभियान के उप प्रमुख डा ऋषि सक्सेना ने बताया कि इस अभियान के अंतर्गत सभी टीबी रोगियों का संपूर्ण डाटा पोर्टल पर उपलब्ध है। उनसे रेंडम कॉल करके बात भी की जाती है। दवा उपलब्धता की जानकारी ली जाती है। उन्होंने बताया कि नि क्षय अभियान एक अप्रैल 2018 से भारत सरकार द्वारा आरंभ किया गया है। इस अभियान में अभी तक प्रदेश में 457 करोड़ रुपए डी बी टी के माध्यम से मरीजों को पोषण भत्ता के रूप में ट्रांसफर किए गए हैं।

री हेविलेशन सेंटर से लाभान्वित हो रहे टी बी रोगी*

के जी एम यू के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में एक दवा कंपनी के सी एस आर फंड से री हेविलेशन सेंटर स्थापित किया गया है। आज इस सेंटर का स्थलीय निरीक्षण वरिष्ठ पत्रकार सर्वेश कुमार सिंह ने डा सूर्यकांत और डा ऋषि सक्सेना और who के डा वालिया के साथ किया। सेंटर पर सभी उपयोगी यंत्र ट्रेडमिल, साइकिल, ऑक्सीजन आदि उपलब्ध हैं। यहां स्टाफ का वेतन भी संबंधित कंपनी सी एस आर फंड से देती है। इस सेंटर पर इलाज करा चुके मरीज अपने फेफड़े की कार्य क्षमता की जांच चिकित्सकों की देखरेख में करते हैं।