समस्त वस्तुओं का उद्गम भगवान श्री कृष्ण से ही है: धीरशान्त दास अर्द्धमौनी

 

     मुरादाबाद।  गांधी जी का मन्दिर, अगवानपुर बस्ती में आयोजित श्रीराधा रानी बधाई महोत्सव में कथा व्यास एवं मठ-मन्दिर विभाग प्रमुख श्रद्धेय धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि धर्म का पालन करने वाले मनुष्य वास्तव में दु:खी नहीं होते और भोगी मनुष्य सुखी नहीं होते। भोग और संग्रह की इच्छा वाले मनुष्य पतन में जा रहे हैं। आजकल हरेक बात सुखभोग को दृष्टि में रखकर कही जाती है, यह दृष्टि राक्षसों की है।  सुखभोग की दृष्टि से ही परिवार-नियोजन, विधवा-विवाह आदि की बात कही जाती है।

आजकल हरेक बात सुखभोग को दृष्टि में रखकर कही जाती है, यह दृष्टि राक्षसों की है।  सुखभोग की दृष्टि से ही परिवार-नियोजन, विधवा-विवाह आदि की बात कही जाती है।

 

गीध बहुत ऊँचा उड़ता है, उसकी दृष्टि बड़ी तेज होती है, पर जमीन पर सड़ा-गला मांस देखते ही उसकी उड़ान बन्द हो जाती है और वह वहीं गिर जाता है !  ऐसे ही लोग शास्त्रों की बातें जानते हैं, व्याख्यान में बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं, पर कनक-कामिनी अर्थात रुपए और स्त्री देखते ही वहीं गिर जाते हैं।

श्रीकृष्ण ही समस्त लोकों के निर्माता हैं। सब लोकों की रक्षा करने वाले तथा सम्पूर्ण लोकों का संहारकर्ता भी है। वह ही सर्वात्मा और सनातन है। वह महेश्वर समस्त वस्तुओं के अन्तर्यामी है। मध्य में और अन्त में, सब कुछ श्रीकृष्ण में स्थित है।

जो भगवान का परम अद्भुत स्वरूप देखता है। भगवान की ही उपमा माया है जिसे भगवान ने प्रदर्शित किया है एवं सब पदार्थों के भीतर समवस्थित है और सम्पूर्ण जगत् को प्रेरित किया करता है-यही भगवान की क्रियाशक्ति है। उनके द्वारा ही यह विश्व चेष्टावान है और भाव का अनुवर्ती है। वही काल इस कलात्मक संपूर्ण जगत को प्रेरित करता रहता है। श्रीकृष्ण अपने एक अंश से इस सम्पूर्ण जगत को बनाते हैं और अन्य एक रूप से इसका संहार करते हैं।

श्रीकृष्ण ही आदि और मध्य से निर्मुक्त तथा मायातत्त्व के प्रवर्तक हैं। सर्ग के प्रारंभ में इन प्रधान और पुरुष दोनों को शोभित करते हैं। उन दोनों के परस्पर संयुक्त होने पर यह विश्व समुत्पन्न होता है। महदादि के क्रम से भगवान का ही तेज विजम्भित हुआ करता है।

जो इस समस्त जगत का साक्षी और कालचक्र का प्रवर्तक यह हिरण्यगर्भ मार्तण्ड है, वह भी मेरे ही देह से उत्पन्न है। उसके लिये भगवान अपना दिव्य ऐश्वर्य, सनातन ज्ञानयोग और आत्मस्वरूप चार वेदों को कल्प के आदि में प्रदान करते हैं।

व्यवस्था में पर्वतमुनी दास, सुगीता वाणी देवी दासी, पंकज गांधी, अजय गांधी, प्रदीप गांधी, निकेत गांधी, शिवम गोयल, सुरभि गोयल, प्रदीप कुमार गुप्ता, नवनीत गुप्ता, डा० मनोज गुप्ता, सोनाली सरोज, अंशुल गुप्ता, खुशी गांधी, अनादि मिश्र आदि ने सहयोग दिया।