पत्नी को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण दिया जा सकता है, भले ही अधिकारों की बहाली का आदेश उसके खिलाफ पारित किया गया होः हाईकोर्ट

 

एक महत्वपूर्ण अवलोकन में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक पत्नी को भरण-पोषण देने के लिए कोई रोक नहीं है,भले ही उसके खिलाफ वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक डिक्री पारित की गई हो। जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने आगे जोर देकर कहा कि पति के पक्ष में पारित वैवाहिक अधिकारों की बहाली की एक डिक्री के आधार पर भरण-पोषण से इनकार करना बहुत कठोर होगा। पीठ एक महिला (किरण सिंह) की तरफ से दायर एक क्रिमनल रिवीजन पिटीशन पर विचार कर रही थी। जिसने यह याचिका सीआरपीसी की धारा 125 के तहत प्रधान न्यायाधीश,फैमिली कोर्ट, सुल्तानपुर द्वारा पारित भरण-पोषण के आदेश के खिलाफ दायर की थी।

संक्षेप में मामला

संशोधनवादी (पत्नी) ने फरवरी 2007 में प्रतिवादी नंबर 2 (पति) से शादी की थी। उनकी शादी के बाद, पति और उसके परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर उसे दहेज के लिए परेशान करना शुरू कर दिया। उसके बाद पति ने अक्टूबर 2021 में उसे छोड़ दिया और तब से वह अपने माता-पिता के साथ रह रही है। इसलिए उसने निचली अदालत के समक्ष सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक आवेदन दायर किया और कहा कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है,इसलिए उसे उसके पति से भरण-पोषण दिलाया जाए। उसने बताया कि उसका पति 30,000 रुपये प्रति माह कमा रहा है।

दूसरी ओर, पति का कहना था कि उसकी पत्नी ही उसे छोड़कर गई है और उसने अगस्त 2007 में बिना उससे बातचीत किए अपना गर्भपात भी करवा लिया था। उसने यह भी दलील दी कि उसकी पत्नी/संशोधनवादी ही उसके साथ घर में नहीं रहना चाहती है। पति ने दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए भी एक याचिका दायर की थी, जिसमें एक्स-पार्टी उसके पक्ष में आदेश दिया गया था, हालांकि, पति ने निष्पादन की कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ाया। इसे देखते हुए संशोधनवादी के बयान में कुछ मामूली विरोधाभास दर्ज किया गया और उसी के आधार पर मई 2019 में पत्नी के मामले को भरण-पोषण दिलाने योग्य नहीं पाया गया। इन परिस्थितियों में, हाईकोर्ट को इस मुद्दे पर विचार करना था कि क्या संशोधनवादी पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार होगी?

न्यायालय की टिप्पणियां

शुरुआत में, हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने कहा था कि संशोधनवादी को दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के मामले के बारे में जानकारी थी, लेकिन वह पेश नहीं हुई। इसके अलावा, निचली अदालत ने यह भी निष्कर्ष निकाला था कि संशोधनवादी अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती है। इसे देखते हुए, हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 को ध्यान में रखते हुए कहा कि पति के पक्ष में पारित वैवाहिक अधिकारों की बहाली की डिक्री के आधार पर भरण-पोषण से इनकार करना बहुत कठोर होगा।

कोर्ट ने कहा कि,”यह स्थापित कानून है कि तलाक के बाद भी पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार होती है और चूंकि संशोधनवादी कानूनी रूप से प्रतिवादी नंबर 2 की विवाहित पत्नी है, उसे उसको भरण-पोषण देना होगा। यह रिकॉर्ड में स्वीकार किया गया है कि पत्नी अपने माता-पिता के साथ रह रही है और उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। इसलिए, भरण-पोषण देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।” इस प्रकार, न्यायालय ने आंशिक रूप से रिवीजन की अनुमति देते हुए, मामले को निचली अदालत के पास वापस भेज दिया है और आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया।

न्यायालय ने निचली अदालत को निम्नलिखित मुद्दों पर निर्णय लेने का निर्देश दिया है(पक्षकारों को एक अवसर प्रदान करने के बाद)ः -क्या पति ने संशोधनवादी पत्नी को छोड़ दिया है? क्या पत्नी के पास आय का कोई स्रोत है और क्या वह अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है? क्या पति के पास आय का पर्याप्त स्रोत है? क्या संशोधनवादी-पत्नी भरण-पोषण की हकदार हैं, यदि हां, तो कितनी राशि की और किस तिथि से?

केस का शीर्षक – श्रीमती किरण सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य,क्रिमनल रिवीजन नंबर -896/2019

By Vicky Rastogi, Advocate, High Court, Allahabad.