जनहित के मुद्दों को जीवित रखने के लिए सत्ता पक्ष से ज्यादा विपक्ष का मजबूत होना आवश्यक
यमकेश्वरः किसी भी क्षेत्र के विकास और वहॉ के जनहित के मुद्दों को जीवित रखने के लिए सत्ता पक्ष से ज्यादा मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक है। लेकिन यमकेश्वर में चुनावी परिणाम आने के बाद यमकेश्वर का समूचा विपक्ष गहरी नींद में सोया हुआ है, और धरातल से गुमशुदा है, वहीं सोशल मीडिया से भी नदारद दिखायी दे रहा है। विपक्ष की यह गहरी कुंभकर्णी निद्रां यमकेश्वर के जनहित मुद्दों के लिए घातक साबित होगी।
10 मार्च को चुनाव परिणाम आने के बाद यमकेश्वर विपक्ष में जो हताशा और निराशा देखने को मिली वह अभी तक उनके मन से बाहर नही जा पायी है। 2017 से 2022 के चुनाव तक काग्रेंस के उम्मीदवार शैलेन्द्र रावत और यूकेडी के शांति प्रसाद भट्ट दोनों ने विपक्षी की भूमिका को जिंदा रखा हुआ था। शैलेन्द्र रावत ने जिस तरह से पिछले पॉच सालों में मजबूत विपक्ष के तौर पर यमकेश्वर के मुद्दों को जीवित रखा था, सत्ता पक्ष के लिए चुनौति के तौर दिखाई दे रहे थे। लेकिन चुनाव परिणाम उनके पक्ष में नहीं आने से वह भी कोटद्वार जाकर ’’देखो और इंतजार करो’’ की स्थिति में दिखाई दे रहे हैं। शायद उन्हें यमकेश्वर की जनता द्वारा दिये गये ऐसे परिणामों की आशा नहीं थी, इसलिए वह भी यमकेश्वर से अभी राजनीति से दूरी बनाये हुए हैं। अभी वह आने वाले 04 साल मेंं अपनी राजनीति के भविष्य को कोटद्वार या यमकेश्वर में से किसी को चुनने के लिए दिशा और दशा को भॉपने की स्थिति में नजर आते दिखाई दे रहे हैं, उसी अनुरूप वह अपनी राजनीति की पृष्ठभूमि को तैयार करने की योजना पर काम करने की रणनीति बना रहे हैं।
वहीं यूकेड़ी से शांति प्रसाद भट्ट जो कि मूल निवासी यमकेश्वर के हैं, वह आज भी दो बार चुनाव में निराशाजनक परिणाम मिलने के बाद भी यमकेश्वर विधानसभा से जुड़े मुद्दों को लेकर अपनी आवाज को बुलंद किये हुये हैं, और एक मात्र विपक्ष को जिंदा रखे हुए हैं। शांति प्रसाद भट्ट आज भी आम जन के बीच जाकर उनकी पीड़ा और उनकी व्यथा को सुन रहे हैं, यमकेश्वर में बिजली विभाग से जुड़े कर्मचारियों का मानदेय का मामला रहा हो या फिर दिगवंत यशपाल नेगी का प्रकरण, उन्होंने दोनों मुद्दों को सिर्फ उठाया ही नहीं बल्कि उसके प्रति आका्रेश भी दिखाया। शांति प्रसाद भट्ट आज भी यमकेश्वर के मुद्दों को लेकर जनता के बीच बने हुए दिखाई दे रहे हैं, हालांकि जनता ने कभी उनके मुद्दों को उनकी यमकेश्वर विधानसभा की पीड़ा को समझ नहीं सकी है। शांति प्रसाद भट्ट जहॉ दो असभांवित हार के बाद भी अपने को मजबूत बनाये रखने में कामयाब हैं, वहीं यमकेश्वर के जनहित के मुद्दों को एक मजबूत विपक्ष के तौर पर उन्हें कायम रखे हुए हैं, ऐसा केवल वही व्यक्ति कर पाता है, जिसको राजनीति से ज्यादा अपने क्षेत्र के प्रति लगाव और प्रेम हो। शांति प्रसाद भट्ट जहॉ एक कुशल वक्ता हैं, लेकिन राजनीति में अभी उतने परिपक्व नहीं दिखाई देते हैं, क्योंकि उनके अंदर से वह पहाड़ीपन नहीं गया है। उनकी एक बड़ी कमी यह दिखाई देती है कि वह संगठनात्मक तौर पर खुद को खड़ा नहीं कर पाये हैं जिसका नतीजा उन्हें बार बार भुगतना पड़ा। साथ ही उनको अपनी एकला चलो की नीति को त्याग कर जनता की राय को स्वीकार करने की आदत डालनी होगी।
वहीं 2022 के चुनाव में आम आदमी पार्टी से अविरल बिष्ट और समाजवादी पार्टी से बीरेन्द्र प्रसाद की उपस्थिति तो मात्र नामांकन करने तक ही दिखाई दी। वहीं यमकेश्वर विधानसभा में चिन्हित विपक्ष सोशल मीडिया से भी नदारद दिखाई दे रहा है। यदि यमकेश्वर में विपक्ष की इस तरह की भूमिका रहती है तो सत्ता पक्ष पर अंकुश लगना मुश्किल होगा।
वहीं दूसरी ओर सत्ता पक्ष विपक्ष से 14 हजार मतो से विजयी होकर विपक्ष को ध्वस्त समझ बैठा है, यदि विपक्ष इस तरह से आने वाले चारों सालों के लिए चादर ओढ कर सोये रहता है तो सत्ता पक्ष उतना ही और मजबूत होकर निरंकुश हो सकता है। वहीं दूसरी ओर सत्ता पक्ष विधायक आपके द्वार और यमकेश्वर उदय का नारा देकर अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि को मजबूत करने में जुटी है, वहीं विपक्ष मूक बधिर होकर बैठा है। यदि विपक्ष इस तरह से कुंभकर्णी नींद और मूक बधिर बनकर रहेगा तो जनता हमेशा के लिए भूला देगी। अतः यमकेश्वर के विपक्ष को यदि जिंदा रहना है तो उसको यमकेश्वर के जनहित मुद्दों के लिए अपनी ओढी हुई चादर को समेटकर कुंभकर्णी नींद से उठकर जनता के बीच तपस्वी बनकर जाना होगा।