भारत में राष्ट्रपति पद सिर्फ रबर स्टाम्प बनकर रह गया है: लौटनराम
लखनऊ। हमारे देश की भावी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जब झारखंड में राज्यपाल थीं, तब झारखंड में कई ऐसे आदिवासी विरोधी कार्य झारखंड की भाजपा सरकार(मुख्यमंत्री रघुवर दास) के द्वारा किये गये जिस पर द्रौपदी मुर्मू चुप्पी साधे रही।भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ. लौटनराम निषाद ने कहा कि भाजपा आदिवासी वोटबैंक के लिए द्रौपदी मुर्मू को मुखौटा के तौर पर राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाई है।भारत में राष्ट्रपति पद सिर्फ रबर स्टाम्प बनकर रह गया है।गुजरात में भाजपा की गिरते जनाधार व सम्भावित हार को देखते हुए रामनाथ कोविंद(कोरी) को राष्ट्रपति बनाया ताकि 24 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले कोली मछुआरा समाज को भ्रमित किया जा सके।हुआ भी यही,भाजपा वाले कोविंद को कोरी नहीं बल्कि कोली प्रचारित कर राजनीतिक लाभ उठा लिया।गुजरात में डेढ़ करोड़ से अधिक कोली हैं और कोरी सिर्फ एक डेढ़ लाख।
निषाद ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू के राज्यपाल रहते ही झारखंड में आदिवासियों की जमीन के सुरक्षा कवच के रूप में मौजूद सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन की कोशिश मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा की गयी, जिसके खिलाफ व्यापक आंदोलन की शुरुआत हुई और सरकार को अपने पैर पीछे खींचने पड़े।द्रौपदी मुर्मू के झारखंड के राज्यपाल रहते कई आदिवासियों को माओवादी बताकर फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया, सैकड़ों आदिवासियों को नक्सली बताकर जेल में बंद कर दिया गया। भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल लाकर आदिवासियों की जमीन को हड़पने की शुरुआत हुई। पत्थलगड़ी आंदोलन के वक्त हजारों आदिवासियों समेत कई आंदोलनकारी बुद्धिजीवियों पर देशद्रोह के मुकदमे थोपे गये। अमर शहीद फादर स्टैन स्वामी पर भी इसी दौरान देशद्रोह के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था। मोमेंटम झारखंड के नाम से इसी समय झारखंड की जमीन को देशी-विदेशी पूँजीपतियों को सौंपने के लिए 210 देशी-विदेशी कम्पनियों के साथ एमओयू किये गये थे। कई जगह आदिवासियों की जमीन जबरन छीनकर पूँजीपतियों के सौंप दी गयी। इस दौरान कई विस्थापन विरोधी आंदोलन पर पुलिस की गोलियाँ चली। देश में पहली बार किसी रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन (मजदूर संगठन समिति) को इनके ही कार्यकाल में झारखंड सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया,लेकिन ये चुप रहीं।
निषाद ने आगे कहा कि यह फेहरिस्त और लम्बी हो सकती है, इसलिए द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति उम्मीदवार या भावी राष्ट्रपति होने पर लहालोट होने वालों से गुजारिश है कि सिर्फ इनके आदिवासी और महिला होने पर ना जाकर इनकी विचारधारा और इनके कार्यों पर भी नजर दौड़ाएँ।
सबसे बड़ी बात कि हमारे देश में राष्ट्रपति पद केन्द्र सरकार के रबड़ स्टांप के अलावा और कुछ भी नहीं होता है।उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पुष्कर मन्दिर में घुसने नहीं दिया गया और पूरी के जगन्नाथ मंदिर में पण्डों ने धकियाकर बाहर कर दिया।भले ही ये ब्राह्मण महिला से शादी किये हैं,पर पुरातनपंथी फिरकापरस्तों की नजर में अछूत ही हैं।रामनाथ कोविंद फ़र्ज़ी जाति के नाम पर ही राजनीतिक लाभ लेते रहे।नेता के तौर पर ये राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय पदाधिकारी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, उत्तर प्रदेश भाजपा के महामंत्री थे,पर ऐसे नेताओं में इनका नाम शामिल रहा को कभी बोले नहीं,सिर्फ दलित मुखौटा व मोहरा रहे।