कुछ घटनाएं समाज और व्यवस्था की बयां करती हकीकत…!
मध्य प्रदेश के ग्वालियर और रीवा शहर में मासूम बच्चियों से बलात्कार की घटना ने एक बार फिर देश का सिर शर्म से झुका दिया है!ऐसा लगता है कि इन मासूम बच्चियों से बलात्कार करने वाले आरोपियों को न तो कानून का डर है न किसी और का! देश के अलग अलग इलाकों से रोजाना ही ऐसी अमानवीय खबरें आती हैं! ऐसी घटनाओं के बाद भी महिला सुरक्षा और बलात्कारियों के खिलाफ कोई सख्त व्यवस्था लागू करने को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं! हालांकि कहने को बलात्कार के अपराधों के खिलाफ सख्त कानून हैं! विरोध की कोई चिंगारी उठती भी है तो अन्य धार्मिक और राजनीतिक मुद्दों के बीच ठंडी पढ़ जाती है!सवाल है कि इस सबसे चिंताजनक समस्या के कायम रहते हम किस धर्म राजनीति और देश की आत्मा को बचा सकेंगे? मुख्यधारा के सवालों में उलझते हुए क्या हमें एक बार लगता है कि स्त्रियों की जिंदगी में इस त्रासदी को दूर किए बिना हम कभी भी एक सभ्य समाज नहीं बन सकते? यों महिला सुरक्षा को लेकर हर नेता बड़े बड़े वादे करता है पर वे सिर्फ चुनावी घोषणा पत्रों तक सीमित रह जाते हैं! जो लोग धर्म और जाति के नाम पर वोट मांग रहे हैं उन्हें यह पता होना चाहिए कि महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा हर धर्म जाति और समुदाय का प्रमुख कर्तव्य है! आज देश में लोग अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं पर देश की महिलाओं की रक्षा के लिए क्यों कोई आगे नहीं आ रहा? देश में सरकार चाहे जिस भी पार्टी की रहे कानून व्यवस्था में महिलाओं और छोटी बच्चियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक सख्ती कानूनी व्यवस्था की जरूरत है! कहने के लिए देश में स्त्रियों का दर्जा देवी के बराबर माना जाता है लेकिन यहीं ऐसी घटनाएं पूरे समाज और व्यवस्था की हकीकत बताती है! अब समय आ गया है कि समाज का हर एक वर्ग एकजुट होकर बच्चों और महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाए।