शीर्ष अदालत:कोटा में कोटा बनाम मेधावी आरक्षित का अनारक्षित में समायोजन

21 अप्रैल,2017 को केरल की ओबीसी उम्मीदवार दीपा ईवी(धीवरा) बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया था कि आरक्षित वर्ग को उनके लिए निर्धारित कोटा में ही कोटा मिलेगा,भले ही वो कितना भी योग्य व प्रतिभाशाली हो।अंतर्निहित बिंदु यह था कि यदि आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी उसके लिए देय किसी भी छूट का अतिरिक्त लाभ(अकादमिक व अनुभव छूट,उम्र,अवसर व आवेदन शुल्क आदि की छूट) लिया हो।लेकिन इस निर्णय की आड़ में ओबीसी,एससी, एसटी के अभ्यर्थियों के साथ कई नियुक्तियों में गलत तरीके अपनाकर योग्य आरक्षित अभ्यर्थियों के साथ गलत नीति अपनाई जाती रही।लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 18-12- 2020 में उक्त निर्णय को पलटते हुए कहा कि मेरिटधारियों को कोटे तक सीमित नहीं रखा जा सकता।

ओबीसी उम्मीदवार की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी राय रखते हुए कहा कि ज्यादा अंक लाने वाले सामान्य श्रेणी की सीटों के हकदार होंगे।

न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की पीठ ने 1992 के इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ सहित सर्वोच्च अदालत के विभिन्न फैसलों पर गौर किया।सुप्रीम कोर्ट ने 28-04-2022 को कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के उन उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी में समायोजित करने की आवश्यकता है, जो सामान्य श्रेणी के नियुक्त अंतिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक मेधावी हैं।सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में आरक्षित सीटों के लिए ओबीसी उम्मीदवारों की नियुक्ति पर विचार नहीं किया जा सकता था।शीर्ष अदालत ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप, सामान्य श्रेणी में उनकी नियुक्तियों पर विचार करने के बाद, आरक्षित सीटों को योग्यता के आधार पर अन्य शेष आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों से भरा जाना आवश्यक है।

न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने 1992 के इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ सहित सर्वोच्च अदालत के विभिन्न फैसलों पर गौर किया।पीठ ने फैसले पर भरोसा करते हुए आरक्षित श्रेणी के एक ओबीसी उम्मीदवार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों की सूची में अंतिम उम्मीदवार से अधिक अंक प्राप्त करने पर सामान्य श्रेणी के कोटे के तहत समायोजित करना चाहिए।उनका कहना था कि ऐसे उम्मीदवार को सामान्य श्रेणी के तहत विचार करने की आवश्यकता है।मतलब यह है कि यदि किसी आरक्षित वर्ग(ओबीसी,एससी, एसटी) का अभ्यर्थी खुली प्रतियोगी परीक्षा में सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी से उच्च अंक पाता है तो उसका समायोजन आरक्षित कोटा की बजाय अनारक्षित में किया जाएगा।

अंतिम उम्मीदवार की अपेक्षा अधिक मेधावी हैं ये छात्र
पीठ ने कहा कि दो उम्मीदवारों आलोक कुमार यादव और दिनेश कुमार जो ओबीसी श्रेणी से संबंधित हैं, उन्हें सामान्य श्रेणी में समायोजित किए जाने की आवश्यकता है,क्योंकि वे सामान्य श्रेणी के नियुक्त उम्मीदवारों की सूची में अंतिम उम्मीदवार की

अपेक्षा अधिक मेधावी हैं और उनकी नियुक्तियों पर आरक्षित श्रेणी के तहत सीटों के लिए विचार नहीं किया जा सकता। वहीं हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें पंजाब में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के प्रारंभिक प्रशिक्षित शिक्षकों (ईटीटी) के 595 खाली पदों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उम्मीदवारों से भरने का निर्देश देने की मांग की गई थी।न्यायालय ने कहा था कि चयन सूची को जारी करने के 6 साल बाद ऐसा करना ‘पूरी तरह से अनुचित’ होगा।

इसके बाद न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी की पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा था जिसमें राज्य सरकार को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित पदों को ओबीसी श्रेणी में बदलने की अनुमति देने का निर्देश देने से इनकार कर दिया था।न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि यदि किसी आरक्षित वर्ग के पात्र अभ्यर्थियों की अनुपलब्धता के कारण पद रिक्त रह जाते हैं, तो शिक्षा विभाग जैसे नियुक्ति प्राधिकारी अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग से उक्त रिक्त रिक्तियों को निरस्त करने का अनुरोध कर सकते हैं।

सामान्य श्रेणी के अंतिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक हासिल करने वाले आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार सामान्य श्रेणी में सीट पाने के हकदार-उच्चतम न्यायालय का अहम निर्णय

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि सामान्य श्रेणी के अंतिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक हासिल करने वाले आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार सामान्य श्रेणी में सीट / पद पाने के हकदार हैं।जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि आरक्षित श्रेणियों से संबंधित उम्मीदवार अनारक्षित श्रेणियों में सीटों के लिए दावा कर सकते हैं,यदि मेरिट सूची में उनकी योग्यता और स्थिति उन्हें ऐसा करने का अधिकार देती है तो।इस मामले में, केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल, जोधपुर ने एक उम्मीदवार द्वारा दाखिल किए गए आवेदन को यह मानते हुए अनुमति दी कि ओबीसी श्रेणी से संबंधित वे उम्मीदवार, जिनके पास अधिक योग्यता है, उन्हें सामान्य श्रेणी की सीटों में समायोजित करने की आवश्यकता है और परिणामस्वरूप ओबीसी श्रेणी के लिए आरक्षित सीटों को आरक्षित श्रेणी के शेष उम्मीदवारों से योग्यता के आधार पर भरा जाना आवश्यक है। हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के इस आदेश को चुनौती देने वाली बीएसएनएल की रिट याचिका को खारिज कर दिया।

उच्चतम न्यायालय के समक्ष, बीएसएनएल ने तर्क दिया कि जहां आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को योग्यता के आधार पर चुना जाता है और सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों की सूची में रखा जाता है, उन्हें सेवा आवंटन के समय उच्च पसंद की सेवा प्राप्त करने के लिए आरक्षित श्रेणी की रिक्तियों के खिलाफ समायोजित किया जा सकता है। दूसरी ओर,उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों ने सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों में अंतिम उम्मीदवार की तुलना में अधिक अंक प्राप्त किए हैं, उन्हें सामान्य श्रेणी के कोटे के खिलाफ समायोजित करना होगा और उन्हें सामान्य श्रेणी के पूल में माना जाना आवश्यक है, जिससे आरक्षित वर्ग के शेष उम्मीदवारों को आरक्षित वर्ग के लिए निर्धारित कोटे के तहत नियुक्त किया जाना आवश्यक होगा।

पीठ द्वारा विचार किया गया मुद्दा यह था कि क्या ऐसे मामले में जहां आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों ने सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक प्राप्त किए हैं, ऐसे आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को पहले सामान्य श्रेणी के पूल में समायोजित करना होगा और उन्हें सामान्य श्रेणी में नियुक्ति के लिए विचार किया जाएगा या आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए रिक्तियों के खिलाफ ?

पीठ ने इस मुद्दे पर इन्दिरा साहनी व अन्य बनाम भारत संघ के निर्णय में की गई टिप्पणियों पर ध्यान दिया-

(1) किसी भी वर्टिकल आरक्षण श्रेणी से संबंधित उम्मीदवार “खुली या सामान्य” श्रेणी में चुने जाने के हकदार हैं और यह भी देखा गया है कि यदि आरक्षित श्रेणियों से संबंधित ऐसे उम्मीदवार अपनी योग्यता के आधार पर चयन के हकदार हैं , उनके चयन को उन श्रेणियों के लिए आरक्षित कोटा में नहीं गिना जा सकता है जो वे संबंधित हैं।

(2) सामान्य श्रेणी के अंतिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक हासिल करने वाले आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार अनारक्षित श्रेणियों में सीट / पद पाने के हकदार हैं। क्षैतिज आरक्षण लागू करते समय भी, योग्यता को वरीयता दी जानी चाहिए और यदि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों ने उच्च अंक प्राप्त किए हैं या अधिक मेधावी हैं, तो उन्हें अनारक्षित उम्मीदवारों के लिए सीटों के खिलाफ विचार किया जाना चाहिए। आरक्षित श्रेणियों से संबंधित उम्मीदवार अनारक्षित श्रेणियों में सीटों के लिए दावा कर सकते हैं यदि मेरिट सूची में उनकी योग्यता और स्थिति उन्हें ऐसा करने का अधिकार देती है।

इसलिए, पीठ ने इस मुद्दे पर हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और कहा,
“उक्त निर्णयों में इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून को मामले के तथ्यों पर लागू करते हुए, यह नोट किया जाता है कि उक्त दो उम्मीदवारों, अर्थात्, श्री आलोक कुमार यादव और श्री दिनेश कुमार को, जो ओबीसी श्रेणी से संबंधित थे, सामान्य श्रेणी के विरुद्ध समायोजित किए जाने के लिए आवश्यक है , क्योंकि माना गया है कि वे नियुक्त किए गए सामान्य श्रेणी के अंतिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक मेधावी हैं और आरक्षित श्रेणी के लिए सीटों के खिलाफ उनकी नियुक्तियों को विचार नहीं किया जा सकता है। नतीजतन, सामान्य श्रेणी में उनकी नियुक्तियों पर विचार करने के बाद, आरक्षित श्रेणी के लिए आरक्षित सीटों को योग्यता के आधार पर और अन्य शेष आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों जैसे प्रतिवादी संख्या 1 से भरा जाना आवश्यक है। यदि ऐसी प्रक्रिया का पालन किया गया होता, तो मूल आवेदक – प्रतिवादी क्रमांक 1 को उपरोक्त प्रक्रिया के कारण हुई रिक्ति में आरक्षित श्रेणी की सीटों में योग्यता के आधार पर नियुक्त किया जाता।

अदालत ने हालांकि देखा कि फेरबदल करके और सामान्य श्रेणी की चयन सूची में दो ओबीसी उम्मीदवारों को सम्मिलित करने पर, पहले से नियुक्त सामान्य श्रेणी के दो उम्मीदवारों को निष्कासित करना होगा और / या हटाना होगा, जो लंबे समय से काम कर रहे हैं और पूरी चयन प्रक्रिया अस्थिर हो सकती है।इसलिए, संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, यह निर्देश दिया कि फेरबदल पर, सामान्य वर्ग के इन दो उम्मीदवारों को सेवा से नहीं हटाया जाएगा क्योंकि वे लंबे समय से काम कर रहे हैं।

उक्त मामले में जस्टिस एम.आर.शाह और जस्टिस बी.वी.नागरत्ना की पीठ के समक्ष अपीलकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट राजीव धवन , एडवोकेट प्रदीप कुमार माथुर और प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट गौरव अग्रवाल,एमिकस क्यूरी एवं एडवोकेट पुनीत जैन अपनी अपनी दलील पेश किए।

उच्चतम न्यायालय:आरक्षण का लाभ लिया तो सामान्य कोटे में नौकरी नहीं मिलेगी
उक्त निर्णय अब गौण हो गया है।उक्त निर्णय 2017 में दीपा ईवी के मामले में हुआ था।जिसमे शीर्ष अदालत ने निर्णय दिया था कि रिजर्वेशन पाने वाले लोगों को अब केवल आरक्षित कैटेगरी में ही सरकारी नौकरी मिलेगी। कोटे में सीटें न मिलने पर उन्हें जनरल कोटा नहीं दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस आर.भानुमति और जस्टिस ए.एम.खानविलकर की बेंच ने एक पिटीशन का निपटारा करते हुए यह फैसला 22-04-2017 को दिया था। कोर्ट ने कहा, “रिजर्वेशन कोटे के कैंडिडेट को उसी वर्ग में नौकरी मिलेगी, चाहे उसने जनरल कैटेगरी के उम्मीदवार से ज्यादा अंक क्यों न हासिल किए हों।” रिजर्व्ड कैटेगरी के लोग सरकारी नौकरी के लिए आरक्षित कोटे में आवेदन करते हैं…

– सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अक्सर रिजर्व्ड कोटे के लोग सरकारी नौकरी के लिए आरक्षित कोटे में ही अप्लाई करते हैं। वे वहां पर सीट न बचने की वजह से जनरल कोटे के कैंडिडेट्स के कोटे की सीटों की मांग करते हैं।”
– “इसके लिए कभी जनरल कोटे के कैंडिडेंट से ज्यादा मार्क्स लेने की दलील दी जाती है तो कभी कोई अन्य वजह बताई जाती है। मगर यह प्रोसेस गलत है।”
– कोर्ट ने यह व्यवस्था आरक्षित कोटे में नौकरी पाने में नाकाम एक महिला उम्मीदवार की पिटीशन पर फैसला सुनाते हुए दी।
– महिला उम्मीदवार दीपा ईवी ने जनरल कैटेगरी के कैंडिडेट से ज्यादा मार्क्स लेने के आधार पर नौकरी दिए जाने की मांग की थी।
– कोर्ट ने कहा कि पिटीशनर ने एज लिमिट में छूट लेकर ओबीसी की रिजर्व्ड कैटेगरी में अप्लाई किया था। उसने इंटरव्यू भी ओबीसी कैटेगरी में ही दिया था। लिहाजा वह जनरल कैटेगरी में अप्वाइंटमेंट के अधिकार के लिए दावा नहीं कर सकती।
ओबीसी में अप्लाई किया और नौकरी जनरल में मांगी
– दीपा पीवी नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर की थी। उसने कॉमर्स मिनिस्ट्री के अंडर में इंडियन एक्सपोर्ट सुपरविजन काउंसिल में लैब असिस्टेंट ग्रेड-2 के लिए ओबीसी कैटेगरी में अप्लाई किया था। परीक्षा में 82 मार्क्स मिले थे।
– ओबीसी कोटे के तहत अप्लाई करने वाले 11 लोगों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। 93 अंक लेने वाली सेरेना जोसेफ को ओबीसी कोटा में नौकरी दी गई।
– जनरल कोटे में मिनिमम कटऑफ मार्क्स 70 थे। मगर किसी भी सामान्य कैंडिडेट के इतने मार्क्स नहीं थे।
– दीपा ने खुद को जनरल कैटेगरी में नौकरी देने की मांग की तो मंत्रालय ने एप्लिकेशन ठुकरा दिया। मामला हाईकोर्ट से फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

ज्यादा मौके वाले अनारक्षित पदों के लिए नाकाबिल माने जाएंगे
– जस्टिस भानुमति ने कहा, “1 जुलाई 1999 को डीओपीटी की कार्यवाही के नियम में साफ है एससी/एसटी और ओबीसी के कैंडिडेट को, जो अपनी मेरिट के आधार पर चयनित होकर आए हैं, उन्हें जनरल कैटेगरी में शामिल नहीं किया जाएगा।
– उसी तरह जब एससी/एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों के लिए छूट के मानक जैसे उम्र,अनुभव,शैक्षणिक अर्हता/एजुकेशनल क्वालिफिकेशन,लिखित परीक्षा के लिए ज्यादा मौके दिए गए हों तो उन्हें आरक्षित खाली पदों के लिए ही विचारित किया जाएगा। ऐसे उम्मीदवार अनारक्षित पदों के लिए अयोग्य माने जाएंगे।
शीर्ष अदालत ने उपर्युक्त मामले में बदलाव करते हुए 28-04-2022 को कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी के उन उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी में समायोजित करने की आवश्यकता है जो सामान्य श्रेणी के नियुक्त अंतिम उम्मीदवारों की तुलना में अधिक मेधावी हैं अधिक अंक लाने वाले पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार सामान्य सीटों के हकदार होंगे।

आरक्षण पर सुप्रीम निर्णय:कोटा पॉलिसी का मतलब योग्यता को नकारना नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर,2020 को जातिगत आरक्षण के मामले में अपना फैसला सुनाया था। इस दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कोटा पॉलिसी का मतलब योग्यता को नकारना नहीं है। इसका मकसद मेधावी उम्मीदवारों को नौकरी के अवसरों से वंचित रखना नहीं है, भले ही वे आरक्षित श्रेणी से ताल्लुक रखते हों।

न्यायमूर्ति उदय ललित की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने आरक्षण के फायदे को लेकर दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पद भरने के लिए आवेदकों की जाति की बजाय उनकी योग्यता पर ध्यान देना चाहिए और मेधावी उम्मीदवारों की मदद करनी चाहिए। साथ ही, किसी भी प्रतियोगिता में आवेदकों का चयन पूरी तरह योग्यता के आधार पर होना चाहिए।

आरक्षण, ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज, दोनों ही तरीकों से पब्लिक सर्विसेज में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का तरीका है। आरक्षण को सामान्य श्रेणी के योग्य उम्मीदवार के लिए मौके खत्म करने वाले नियम की तरह नहीं देखना चाहिए। यह बात सुप्रीम कोर्ट की अलग पीठ के न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने फैसले में टिप्पणी के तौर पर लिखी।

जस्टिस भट ने लिखा कि ऐसा करने से नतीजा जातिगत आरक्षण के रूप में सामने आएगा, जहां प्रत्येक सामाजिक श्रेणी आरक्षण के अपने दायरे में सीमित हो जाएगी और योग्यता नकार दी जाएगी। सभी के लिए ओपन कैटिगरी होनी चाहिए। इसमें सिर्फ एक ही शर्त हो कि आवेदक को अपनी योग्यता दिखाने का मौका मिले, चाहे उसके पास किसी भी तरह के आरक्षण का लाभ उपलब्ध हो।

गौरतलब है कि कई उच्च न्यायालय ने अपने फैसलों में माना है कि आरक्षित वर्ग से संबंधित कोई उम्मीदवार अगर योग्य है तो सामान्य वर्ग में भी आवेदन कर सकता है। चाहे वह अनुसूचित वर्ग, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग का हो। ऐसे में वह आरक्षित सीट को दूसरे उम्मीदवार के लिए छोड़ सकता है। हालांकि, विशेष वर्गों जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार, पूर्व सैनिक या एससी/एसटी/ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटें खाली रहती हैं। उन पर सामान्य वर्ग के आवेदकों को मौका नहीं दिया जाता। शासन के इस सिद्धांत और व्याख्या को शीर्ष अदालत ने 18-12-2020 को खारिज कर दिया था।

लौटनराम निषाद
(लेखक व समीक्षक सामाजिक न्याय चिन्तकव भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)