हरि भक्तों के संग से पाप, ताप एवं दरिद्रता दूर हो जाती है -अर्द्धमौनी

परम्परा कालोनी, श्रीराम गंगा विहार में आयोजित श्रीगीता भागवत कथा के द्वितीय दिवस कथा व्यास श्रद्धेय धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि वैष्णवों की संगति की महिमा बताते हुए कहा गया है कि गंगा स्नान से सब पाप, चन्द्रमा के दर्शन से ताप एवं कल्पवृक्ष का दर्शन दरिद्रता को दूर कर देता है। परन्तु हरिभक्तों की संगति से पाप, ताप और दरिद्रता तीनों से दूर हो जाते हैं।
मृग को मारने के लिये माता सीता ने नहीं कहा, प्रत्युत छाया सीता ने कहा। सीता भी छाया की थी और मृग भी छाया का था। छाया सीता ने स्वर्ण का लोभ किया तो भगवान् ने उसको स्वर्ण की नगरी लंका में ले जाकर बैठा दिया। माता सीता में तो सतीत्व का इतना तेज था कि बुरी नीयत से स्पर्श करने मात्र से रावण भस्म हो जाता। प्रेम प्राप्त होने पर संसार में किंचिन्मात्र भी आकर्षण नहीं रहता।


‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ मन्त्रों से जितने यज्ञ किये जाते हैं, उनमें अनेक वस्तु-पदार्थों की, विधियों की आवश्यकता पड़ती है और उनको करने में कुछ-न-कुछ दोष आ ही जाता है।
परन्तु जपयज्ञ अर्थात भगवन्नाम का जप करनेमें किसी पदार्थ या विधि की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसको करने में दोष आना तो दूर रहा, प्रत्युत सभी दोष नष्ट हो जाते हैं। इसको करनेमें सभी स्वतन्त्र हैं।
भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों में भगवान के नामों में अन्तर तो होता है, पर नामजप से कल्याण होता है, इसको हिन्दू, मुसलमान, बौद्ध, जैन आदि सभी मानते हैं। इसलिये भगवान् ने जपयज्ञ को अपनी विभूति बताया है।
कथा में ईश्वर चन्द्र अग्रवाल, नारायण तोदी, बनवारी लाल तोदी’बन्टी”, आनन्द अग्रवाल, विष्णु अग्रवाल, कैलाश अग्रवाल, अमित अग्रवाल, केशव तोदी, आशुतोष तोदी, अर्पित तोदी, आदित्य तोदी, उज्जवल तोदी, आर्य, शौर्य, खुश, धैर्य, योहांश, अक्षय, राज, जितेन्द्र, हिमांशु एवं यश अग्रवाल में उपस्थित रहे।