राष्ट्रीय न्यायिक सेवा आयोग के गठन का बिल लाये केन्द्र सरकार

लखनऊ। एनडीए- प्रथम की सरकार व कांग्रेस ने सन् 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक सेवा आयोग के गठन का प्रयास किया था जिसे उच्चतम न्यायालय ने निरस्त कर दिया था।कॉलेजियम द्वारा मनोनीत न्यायाधीशों द्वारा जनता द्वारा चुनी हुई सरकार व सांसदों की व्यवस्था को रोकना लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है।भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटन राम निषाद ने केन्द्र सरकार से पुनः राष्ट्रीय न्यायिक सेवा आयोग के गठन को अंतिम रूप देने के लिए शीतकालीन सत्र में बिल लाने की मांग किया है। केन्द्र सरकार राज्य सभा व लोक सभा द्वारा बिल को पारित कराकर इसे कानूनी रूप देने का कदम उठाये। लोक सेवकों(अधिकारियों व कर्मचारियों) के चयन के लिए संघ लोक सेवा आयोग, लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, अधिनस्थ कर्मचारी सेवा चयन आयोग आदि के माध्यम से तीन या दो स्तरीय प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन किया जाता है। परन्तु उच्च न्याय पालिका (उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय) के न्यायाधीशों का मनोनयन 5 या 7 सदस्यीय जजों की समिति जिसे कोलेजियम सिस्टिम कहा जाता है, के द्वारा किया जाता है,जो भारत की एक अनोखी व्यवस्था है।विश्व के किसी भी देश में इस तरह की अनोखी व्यवस्था नहीं है। उन्होंने कहा कि जूनियर व सीनियर ज्यूडीसियरी में जजों का चयन प्रतियोगी परीक्षा द्वारा किया जाता है। इसमें ओबीसी, एससी, एसटी व महिला वर्ग को आरक्षण कोटा की भी व्यवस्था की गयी है। उच्च न्याय पालिका में कोलेजियम सिस्टिम होने से भाई- भतीजावाद, परिवारवाद व जातिवाद को खुला प्रश्रय दिया जाता है। पूरी उच्च न्याय पालिका में अभी तक 3-4 जातियों के 200-250 परिवारों का ही कब्जा होता आ रहा है।

निषाद ने गणेश सिंह पटेल की अध्यक्षता में गठित संसदीय कमेटी की ओबीसी के आरक्षण सम्बंधित क्रीमीलेयर की सिफारिश को लागू करने की मांग करते हुए कहा कि वीपी शर्मा कमेटी की सिफारिश पूरी तरह ओबीसी आरक्षण विरोधी है। इस समिति की सिफारिश को स्वीकार करने से चपरासी व लिपिक का आश्रित भी आरक्षण के लाभ वंचित हो जायेगा। उन्होंने एससी व एसटी की भांति ओबीसी आरक्षण को भी क्रीमीलेयर की बाध्यता से मुक्त करते हुए ओबीसी को समानुपाति आरक्षण कोटा दिये जाने की मांग किया है। उन्होंने कहा कि एससी, एसटी व धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग की हर दसवें वर्ष जनगणना करायी जाती है लेकिन 1931 के बाद ओबीसी की कभी जातिगत जनगणना नहीं करायी गयी। उन्होंने सेन्सस-2021 में ओबीसी की जातिगत जनगणना कराने की मांग की है।

श्री निषाद ने आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था को पूर्णतः असंवैधानिक करार दिया है। उनका कहना है कि भारतीय संविधान में पिछड़ेपन का मानक सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ापन माना गया है न कि आर्थिक आधार। आरक्षण प्रतिनिधित्व सुनिश्चितीकरण का संवैधानिक आधार है न कि गरीबी उन्मूलन का माध्यम। उन्होंने कहा कि जो जातियां कहती थीं कि आरक्षण से अयोग्य व अपात्र का चयन होता है, उनकी टिप्पणी बिल्कुल निर्मूल है क्योंकि आरक्षण से नहीं बल्कि डोनेशन से अपात्र व अयोग्य का चयन होता है। लोक सेवा आयोग व संघ लोक सेवा आयोग के अभी तक जो परीक्षा परिणाम आये हैं उसमें ईडब्लूएस यानी आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण वर्ग की कट ऑफ मेरिट ओबीसी, एससी व एसटी से कम पर बनायी गयी है। उन्होंने ओबीसी रिजर्वेशन को नवीं अनुसूची में दर्ज करने की मांग के साथ-साथ एससी व एसटी की भांति ओबीसी को सभी स्तरों पर समानुपातिक आरक्षण कोटा दिये जाने की मांग किया है। उनका कहना है कि यहीं नैसर्गिक व संवैधानिक न्याय के अनुकूल है। निजीकरण को आरक्षण विरोधी सिस्टम करार देते हुए कहा कि निजी संस्थानों व उपक्रमों में भी आरक्षित वर्ग को समानुपातिक आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।