देश- विदेश में लोकप्रियता के शिखर को छुआ हास्य व्यंग्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी ने
मुरादाबाद । प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष हुल्लड़ मुरादाबादी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर ‘साहित्यिक मुरादाबाद’ की ओर से तीन दिवसीय ऑन लाइन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि
हास्य व्यंग्य के प्रख्यात कवि हुल्लड़ मुरादाबादी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से देश-विदेश में न केवल श्रोताओं को गुदगुदाते हुए हास्य की फुलझड़ियां छोड़ीं बल्कि रसातल में जा रही राजनीतिक व्यवस्था पर पैने कटाक्ष भी किए। सामाजिक विसंगतियों को उजागर किया तो आम आदमी की जिंदगी को समस्याओं को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की सोलहवीं कड़ी के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि 29 मई 1942 को गुजरांवाला (जो अब पाकिस्तान में है ) में जन्में हुल्लड़ मुरादाबादी का परिवार भारत के आजाद होने से पहले ही मुरादाबाद आकर बस गया था। आप का वास्तविक नाम सुशील कुमार चड्ढा था। उनकी प्रमुख कृतियों में इतनी ऊंची मत छोड़ो, मैं भी सोचूं तू भी सोच, अच्छा है पर कभी कभी, तथाकथित भगवानों के नाम,सत्य की साधना, त्रिवेणी , हज्जाम की हजामत, सब के सब पागल हैं , हुल्लड़ के कहकहे ,हुल्लड़ का हंगामा, हुल्लड़ की श्रेष्ठ हास्य व्यंग रचनाएं ,हुल्लड़ सतसई, हुल्लड़ हजारा, क्या करेगी चांदनी, यह अंदर की बात है,जिगर से बीड़ी जला ले मुख्य हैं । एचएमबी द्वारा उनकी हास्य रचनाओं के अनेक रिकॉर्ड्स एवं कैसेट्स रिलीज हो चुके हैं। उनका निधन 12 जुलाई 2014 को मुम्बई में हुआ ।
ए टी ज़ाकिर (आगरा), प्रदीप गुप्ता(मुम्बई), डॉ मक्खन मुरादाबादी, आमोद कुमार अग्रवाल (दिल्ली), इंदिरा रानी(दिल्ली), कन्नी लाल अरोड़ा(दिल्ली), अशोक विश्नोई ने उनके संस्मरण प्रस्तुत किये।
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा हुल्लड़ मुरादाबादी की गजलों में उनके भीतर के व्यंग्यकार का शिल्प खुलकर सामने आया है । इनमें सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र के अनेक चित्र पैनेपन के साथ उभर कर सामने आते हैं ।
नेताओं की कथनी और करनी के दोहरेपन को उन्होंने गजल के अनेक शेरों में अभिव्यक्त किया है । जीवन में हँसने और मुस्कुराने के लिए हुल्लड़ मुरादाबादी की प्रेरणाएँ उनके काव्य में यत्र-तत्र बिखरी हुई हैं। समस्याओं के बीच भी वह मुस्कुराते रहने का ही संदेश देते रहे ।
डॉ पुनीत कुमार ने कहा कि व्यंग्य के तीखे तेवरों को,हास्य की चाशनी में पगा कर,स्वादिष्ट व्यंजनों के रूप में,श्रोताओं/पाठकों के सम्मुख परोसने की कला, हुल्लड़ मुरादाबादी को बखूबी आती थी। अल्फाज,अंदाज और आवाज,तीनों में,उनकी रचनाओं का कोई सानी नही था।
सम्भल के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम ने कहा कि बहुत सरलता के साथ गंभीर से गंभीर विषय को रखने की मनमोहक महारत उन्हें हासिल थी। वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि उनके गीतों को पढ़कर उनके ह्रदय की पीड़ा और मन के अंतर्द्वंद की झलक मिलती है I अशोक विद्रोही ने कहा हुल्लड़ मुरादाबादी हास्य व्यंग्य की प्रतिमूर्ति थे। हास्य में ग़ज़ल को उन्होंने नया ही रूप दिया । राजीव प्रखर ने कहा हुल्लड़ मुरादाबादी आम व्यक्ति के जीवन को कविता से जोड़ने में सफल रहे।
हेमा तिवारी भट्ट ने कहा हुल्लड़ मुरादाबादी हास्य की शेरवानी पहने एक गम्भीर चिंतक हृदय थे। मोनिका शर्मा मासूम ने कहा फूहड़पन रूपी गर्त से परे , विशुद्ध हास्य की गंगा में स्नान कराती हुल्लड़ मुरादाबादी जी की कविता, तन और मन दोनों में ही स्फूर्ति और ताज़गी भर देती है। सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक विद्रूपताओं के बोझ तले दबा आदमी जब इन विषमताओं को हुल्लड़ जी के नज़रिये से देखता है तो अपने आप को हल्का महसूस करने लगता है मानो उसका बोझ किसी ने बांट लिया हो और उस पर हुल्लड़ जी का चुटीला अंदाज, एक खिलखिलाती मुस्कान स्वत: ही श्रोता के होठों पर चली आती है।
वैशाली रस्तोगी (जकार्ता, इंडोनेशिया) ने कहा हुल्लड़ मुरादाबादी ने न केवल हास्य व्यंग्य की रचनाएं लिखी बल्कि आध्यात्मिक दोहे भी लिखे ।
मीनाक्षी वर्मा ने कहा उनकी रचनाये कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी मनुष्य को सकारात्मकता से जीवन जीने की प्रेरणा भी देती हैं। विवेक आहूजा ने कहा हास्य रचनाओं के माध्यम से उन्होंने सामाजिक मुद्दों को भी उठाया।
डॉ अजय अनुपम, डॉ अर्चना गुप्ता , अखिलेश वर्मा, नकुल त्यागी, डॉ शोभना कौशिक ,मनोरमा शर्मा (अमरोहा),दुष्यन्त बाबा , एस के सेठी, सुधा आनन्द, नीलम सेठी लवी आनन्द, डॉ नीरू कपूर, वन्दना श्रीवास्तव आदि ने भी विचार व्यक्त किये । आभार उनकी सुपुत्री मनीषा चड्ढा ने व्यक्त किया।