राष्ट्रीय ओबीसी उपवर्गीकरण जांच आयोग का 13वीं बार बढ़ा कार्यकाल, ओबीसी को समानुपातिक कोटा के बाद ओबीसी का उपवर्गीकरण रहेगा न्यायसंगत-लौटनराम निषाद

लखनऊ,10 जुलाई। भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ. लौटनराम निषाद ने बताया कि केन्द्र सरकार ने अक्टूबर,2017 में दिल्ली हाई कोर्ट की पूर्व जस्टिस जी.रोहिणी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय ओबीसी उपवर्गीकरण जाँच आयोग का गठन किया।जिसका 13वीं बार कार्यकाल बढ़ा दिया गया है।जिसने ओबीसी को 4 उपश्रेणियों में विभाजित करने की योजना बनायया जा रहा है।2013 में वी. ईश्वरैया की अध्यक्षता में भी एक आयोग बना था जिसने 4 श्रेणियों में ओबीसी को बाँटने का सुझाव दिया था।निषाद ने बताया कि मण्डल कमीशन के अनुसार ओबीसी की आबादी 52 प्रतिशत आँकी गयी थी और आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक न होने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश किया।कहा कि जब न्यायालय व संविधान की व्यवस्था के परे जाकर जनवरी 2019 में 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस दे दिया गया,तो ओबीसी को एससी, एसटी की तरह ओबीसी को समानुपातिक कोटा क्यों नहीं दिया जा रहा?उन्होंने कहा कि ओबीसी को समानुपातिक कोटा के बाद ही ओबीसी का वर्गीकरण किया जाना न्यायसंगत रहेगा।उन्होंने सेन्सस-2021 में जातिगत जनगणना कराकर ओबीसी को जनसँख्यानुपाती आरक्षण कोटा देने की मांग किया है।

निषाद ने बताया कि आंध्र प्रदेश में ओबीसी को ए,बी,सी,डी,ई में बांटा गया है। वहीं, कर्नाटक में ओबीसी के सब-ग्रुप के नाम ‘1, 2ए, 2बी, 3ए, 3बी’ हैं।बिहार में भी एनेक्सर-1 व 2 में वर्गीकरण है।पुड्डुचेरी,झारखण्ड,हरियाणा,महाराष्ट्र,केरल,पश्चिम बंगाल,जम्मू और कश्मीर,तमिलनाडु,तेलंगाना में भी ओबीसी का 2 उपवर्गों में विभाजन किया गया है।आयोग की मंशा है कि अतिपिछडों, अत्यन्त पिछडों व विमुक्त जनजातियों को 27% कोटे का हिस्सा सबसे ज्यादा बैकवर्ड समूहों के लिए दिया जाए और इससे ‘बैकवर्ड्स में फॉरवर्ड्स’ के साथ प्रतिस्पर्धा से बचने में मदद मिलेगी। निषाद ने बताया कि ओबीसी आरक्षण का लाभ कुछ ही जातियों तक सीमित है।यादव,जाट,सैनी,कोयरी,कुर्मी,एझवा, वोक्कालिगा,कुरुबा,रेड्डी,थेवर आदि 10 जातियों ने अधिक भाग पर कब्जा किया है।

निषाद ने बताया कि मण्डल कमीशन के मामले में उच्चतम न्यायालय का 16 नवम्बर,1992 में निर्णय आया।इसके बाद क्रीमीलेयर की बाध्यता के साथ 10 सितंबर,1993 को ओबीसी आरक्षण का शासनादेश जारी किया गया।लेकिन 29 वर्ष के बाद भी सभी समूह की नौकरियों में ओबीसी को मात्र 20.26 प्रतिनिधित्व मिल पाया है।केन्द्रीय सेवा के ग्रुप -ए में 50,068,ग्रुप-बी में 1,25,732 अधिकारी हैं।ग्रुप-सी में 3,22,503 व ग्रुप-डी में 13,722 कर्मचारी हैं। केन्द्रीय सेवाओं में ओबीसी को ग्रुप-ए में 8,455(16.88%),ग्रुप-बी में 19,829(15.77%),ग्रुप-सी में 72,710(22.54%) व ग्रुप- डी(सफाई कर्मचारी सहित) में 2,774(20.14%) प्रतिनिधित्व मिल पाया है। एससी का ग्रुप-ए में 6,440(12.86%),ग्रुप-बी में 20,954(16.66%),ग्रुप-सी में 58,744(18.22%) व 4,507(32.72%) सहित सभी ग्रुप में 90,675(17.70%) प्रतिनिधित्व है।एसटी को ग्रुप-ए में 2,826(5.64%),ग्रुप-बी में 8,244(6.55%),ग्रुप-सी में 22,296(6.91%) व ग्रुप-डी में 1,056(7.66%) प्रतिनिधित्व है।सामान्य वर्ग को ग्रुप-ए में 32,226(64.58%),ग्रुप-बी में 76,700(61.0%),ग्रुप -सी में 1,68,639(52.29%) व ग्रुप-डी में 5,435(39.46%) सहित सभी ग्रुप में 2,83,110(55.28%) प्रतिनिधित्व है।

चौ.लौटनराम निषाद ने बताया कि एससी,एसटी को आज़ादी के पूर्व से ही भारत सरकार अधिनियम-1935 से जनसँख्यानुपाती कोटा मिल रहा है।दूसरी तरफ मण्डल कमीशन की सिफारिश के अनुसार 1993 में 52 प्रतिशत से अधिक ओबीसी को मात्र 27 प्रतिशत ही कोटा मिला।उनका कहना है कि ओबीसी को एससी,एसटी की भाँति समानुपातिक कोटा के बाद ही ओबीसी आरक्षण का उपवर्गीकरण न्यायोजित रहेगा।कहा कि वर्तमान कोटा का ही 4 श्रेणियों में उपवर्गीकरण करना न्यायसंगत नहीं रहेगा,उल्टे ओबीसी में आपसी टकराव ही पैदा करेगा।

निषाद ने मार्च,2022 की रिपोर्ट के आधार पर बताया कि भारत सरकार के सचिवों और विशेष सचिवों में सिर्फ 6 एससी व एसटी हैं,ओबीसी का प्रतिनिधित्व नहीं है। 91 अतिरिक्त सचिवों में 10 एससी-एसटी और 4 ओबोसी हैं। 77 अतिरिक्त सचिव अपरकॉस्ट के हैं। संवैधानिक आरक्षण के हिसाब से एससी-एसटी का 22.5 प्रतिशत यानि 21 अतिरिक्त सचिव और ओबीसी के 25 अतिरिक्त सचिव होने चाहिए। 245 संयुक्त सचिवों में सिर्फ 26 एससी-एसटी और 29 ओबीसी हैं। अपर कास्ट के 190 संयुक्त सचिव हैं। एससी-एसटी सिर्फ 10.62 प्रतिशत और ओबीसी 11.84 प्रतिशत है। संवैधानिक आरक्षण के आधार पर एससी-एसटी का कम से कम 22.5 प्रतिशत यानि 56 पद और ओबीसी का 27 प्रतिशत यानि 67 होने चाहिए।