बर्बादी की कगार पर पहुंचा निर्यात, क़र्ज़ में डूबे निर्यातक

मुरादाबाद। मुरादाबाद हस्तशिल्प व्यापार में भारत का नंबर 1 का नगर है। इस शहर से 8000 करोड़ से अधिक का निर्यात होता है और लगभग 5000 हस्तशिल्प निर्यात फर्म व्यापारी जीएसटी में पंजीकृत हैं। प्रत्येक निर्यातक तथा व्यापारी व्यापार को बढ़ाने के लिए अपने स्तर से देश विदेश में व्यापारिक प्रदर्शनों में भाग लेता है ताकि उसे अधिक व्यापार मिल सके। इसके अतिरिक्त भारत सरकार के सहयोग से चलने वाली हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद भी हस्तशिल्प के व्यापार को बढ़ाने के लिए कार्य करती है। विश्व के प्रत्येक देश में सीधे व्यापार करने के उद्देश्य से अब से लगभग 35 वर्ष पूर्व सरकार ने अनुदान देकर बनाई थी। जिसमें दिल्ली के बहुत बड़े व्यापारी की अध्यक्षता में कार्य शुरू हुआ था।लेकिन कुछ चालबाज तत्वों ने ई पी सी एच का प्रारूप बदलने के उद्देश्य से फाउंडर मेंबर्स में घटा बढ़ाकर नई कमेटी गठित की और पुराने मेंबर्स पर भिन्न प्रकार के मुकदमे लगाकर उनको ईपीसीएच कमेटी से दरकिनार कर दिया। इस खेल को आगे बढ़ाते हुए कमेटी ने व्यापार को भी बढ़ावा दिया लेकिन हस्तशिल्प तथा अन्य व्यापार करने वालों इच्छुक व्यापारियों से धन लूटने के लिए सरकार की सहायता से एक एक्सपो मार्ट ग्रेटर नोएडा में तैयार किया गया तथा छोटे व मझोले व्यापारियों को पटाने के लिए ई पी सी एच द्वारा प्रत्येक क्षेत्र में अपने कुछ ऐसे निर्यातकों को पद आवंटित किए जो निराधार और झूठे बयान बाजी करके नए व्यापारियों को प्रदर्शनी मार्ट में स्टॉल लेने के लिए प्रेरित करते रहे। प्रदर्शनी के बाद वह दलाल निर्यातक अखबारों के माध्यम से बयान देते हैं कि एग्जीबिशन में अर्थात एक्सपो मार्ट ग्रेटर नोएडा में 20 हजार करोड़, 25 हजार करोड़, के 40 हजार करोड़, के हस्तशिल्प उत्पाद के ऑर्डर निर्यातकों को प्राप्त हुए हैं। जिससे प्रेरित होकर अन्य निर्यातक व हस्तशिल्पी भी एक्सपो मार्ट में अपना स्टॉल ले लेते हैं जहां उनको लगभग ढाई लाख से चार लाख रुपया खर्च कर स्टोल पर बैठ ने को मिलता है। हालांकि यह निर्धार बयान बाजी होती है। जो कि एक तरफा बयान होता है ।और दूसरी तरफ इस निराधार बयान बाजी से ई पी सी एच भी बचा रहता है। ताकि किसी प्रकार की कोई जवाबदेही न बने। यदि कभी कोई कार्रवाई हो तो झूठे बयान देने वाले दलाल पर हो ना कि ई पी सी एच पर।
असलियत यह है कि हाल ही में एक्सपोर्ट हाउस में काम करने वाले हस्तशिल्पों तथा हेल्परों की छंटनी हो गई है तथा कुछ एक्सपोर्ट हाउस द्वारा हस्तशिल्पों को फर्म द्वारा 50-50 अर्थात 15 दिन केवल काम करने के लिए ही बुलाया जा रहा है। इससे प्रतीत होता है कि यह सारा प्रचार एक षड्यंत्र के तहत ईपीसीएस कमेटी द्वारा गठित कुछ दलालों को पद देकर उनसे झूठे बयान दिलाते हैं ताकि छोटे निर्यातक उनके जाल में फंस जाएं और बड़ी संख्या में एक्सपो मार्ट में स्टॉल बुक कराएं।जिसकी कम से कम कीमत एक से डेढ़ लाख के बंती है तथा उसका मेंटेनेंस और उत्पादन आदि मिलाकर यानी सैंपल की कॉस्ट मिलाकर 4 से 5 लाख के बीच खर्च होता है। और अंत में निर्यातक खाली हाथ घर वापस आ जाता है दलाल निर्यातक पदाधिकारियों से पूछा जाए कि वह जो सैकड़ों या हज़ारों करोड़ों के विदेशी ऑर्डर बता रहे थे तो फिर बड़े निर्यात हाउसों में मज़दूरों से 50-50 कार्य क्यों कराया जा रहा है।