Wednesday, September 17, 2025
उत्तर प्रदेशदेश

भारत में क्या है क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर आरक्षण

चौ. लौटनराम निषाद। भारतीय संविधान में 2 प्रकार के आरक्षण की व्याख्या की गई है | ऊर्ध्वाधर आरक्षण (Vertical Reservation) तथा क्षैतिज आरक्षण (Horizontal Reservation)।ऊर्ध्वाधर आरक्षण के अंतर्गत अनुसूचित जाति (एससी),अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के आरक्षण समाहित होते हैं।यह व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत दी गई है।जबकि क्षैतिज आरक्षण के तहत ऊर्ध्वाधर श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले विशेष वर्ग जैसे- महिलाओं,स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, भूतपूर्व सैनिकों, समलैंगिक समुदाय और दिव्यांग जन व्यक्तियों आदि को आरक्षण दिया जाता है।

क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद-15(3) के अंतर्गत दी गई है। ध्यातव्य है कि क्षैतिज आरक्षण प्रत्येक ऊर्ध्वाधर वर्ग के अंतर्गत पृथक रूप से दिया जाता है।उदाहारण के लिए , मान लिया जाये कि यदि महिलाओं को 50% का क्षैतिज आरक्षण दिया गया है तो इसका अर्थ यह होगा कि अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) – इन तीनों वर्गों में महिलाओं को पृथक रूप से 50% आरक्षण दिया जाएगा अर्थात 50% अनुसूचित जाति वर्ग में ,50% अनुसूचित जनजाति वर्ग में और 50 % अन्य पिछड़े वर्ग में।

क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर आरक्षण चर्चा में क्यों ?

हाल ही में क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर आरक्षण समाचारों में था।इसका कारण है सौरभ यादव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार वाद संख्या-2021।इस प्रकरण में सोनम तोमर नाम की एक महिला ने अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अधिसूचित कांस्टेबल भर्ती परीक्षा में आवेदन दिया। इस परीक्षा में सोनम तोमर को 276.5 अंक मिले। किंतु उनका चयन नहीं हुआ | जबकि सामान्य वर्ग से 274.8 अंक, जो कि सोनम तोमर के प्राप्तांकों से कम था , हासिल करने वाले अभ्यर्थी का चयन इस परीक्षा में हो गया।अब यहाँ पर तकनीकी सवाल यह है कि तोमर को अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) में आरक्षण दिया जाये या सामान्य महिला वर्ग में ।क्योंकि अन्य पिछड़े वर्गों का आरक्षण ऊर्ध्वाधर वर्ग में आता है जबकि महिला का आरक्षण क्षैतिज वर्ग में।

न्यायालय की व्याख्या:

वाद -विवाद के बाद न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में अभ्यर्थी को आरक्षण से वंचित न कर के सामान्य वर्ग के अंतर्गत आरक्षण का लाभ दिया जाये , क्योंकि न्यायालय के शब्दों में “ऐसा न करने का अर्थ होगा आरक्षण को केवल उच्च वर्ग के लिए बचा कर रखना है।”

भारत में आरक्षण व्यवस्था का इतिहास

भारत में आरक्षण व्यवस्था का बीजारोपण 1882 में गठित हंटर आयोग के साथ माना जाता है।आयोग के अध्यक्ष विलियम हंटर व प्रसिद्द समाज सुधारक महात्मा ज्योतिवा फुले ने सभी के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा तथा अंग्रेज सरकार की नौकरियों में आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व की कल्पना की। 26 जुलाई,1902 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर रियासत में शाहूजी महाराज द्वारा पहली बार आरक्षण की शुरूआत की गई।शाहूजी ने गैर ब्राह्मणों के लिए 50% आरक्षण की व्यवस्था दी।यह अधिसूचना भारत में आरक्षण देने वाला पहला आधिकारिक आदेश है।
1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी ने जातिगत सरकारी अधिसूचना जारी की , जिसमें गैर-ब्राह्मणों के लिए 44 %, ब्राह्मणों के लिए 16 %, मुसलमानों के लिए 16 %, भारतीय-एंग्लो/ईसाइयों के लिए 16 % और अनुसूचित जातियों के लिए 8 % आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।

1933 का सांप्रदायिक पंचाट इस मामले में एक अहम पड़ाव था, जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनाल्ड द्वारा भारत में उच्च वर्ग, निम्न वर्ग, मुस्लिम, बौद्ध, सिख, भारतीय ईसाई, एंग्लो-इंडियन, पारसी और अछूत (दलित) आदि के लिए अलग-अलग चुनाव क्षेत्र आरक्षित कर दिए गये।

1932 के गाँधी -आंबेडकर पूना पैक्ट के बाद 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पास किया जिसमें दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग की गई थी।

1935 के भारत सरकार अधिनियम में सिर्फ अछूत व आदिम पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया,सछूत पिछड़ों को आरक्षण/प्रतिनिधित्व से वंचित कर दिया गया।1937 में अछूत व आदिम पिछड़ी जातियों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए समानुपातिक कोटा दे दिया गया।जबकि रामचरनलाल निषाद एडवोकेट सभी शूद्रों या डिप्रेस्ड क्लास को समान अवसर की मांग कर रहे थे,जबकि डॉ. अम्बेडकर सिर्फ अन टचेबल डिप्रेस्ड क्लास के ही आरक्षण की पैरोकारी कर रहे थे।अम्बेडकर कम्युनल अवार्ड के तहत अछूत पिछड़ों के दोहरे मताधिकार के पक्षधर थे,वही रामचरनलाल निषाद की टीम सभी वयस्कों के मताधिकार की मांग कर रहे थे।आज़ादी के पूर्व से ही हिन्दू पिछड़ी जातियों के साथ धोखाधड़ी कर दी गयी।

1942 में डॉ.भीमराव अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की और सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधित्व को बढाने के लिए आरक्षण की मांग की।जब भारत का संविधान लागु हुआ तो 10 वर्षों के लिए पिछड़े वर्गों,अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए निर्वाचन क्षेत्र में आरक्षण की व्यवस्था दी गई जिसे कि 10-10 वर्षों के बाद सांविधानिक संशोधन के जरिए बढ़ा दिया जाता है।

1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए काका साहब कालेलकर की अध्यक्षता में प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया | इस आयोग के द्वारा सौंपी गई अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) के लिए की गयी सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया गया।1978 में तत्कालीन जनता पार्टी सरकार द्वारा बी.पी.मंडल की अध्यक्षता में दुसरे पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की गई। 1980 में मंडल आयोग ने राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमे अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई थी। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार द्वारा लागू कर दिया गया। उच्च वर्गों द्वरा इस निर्णय का देश भर में विरोध हुआ और राजीव गोस्वामी नाम के एक छात्र ने आत्मदाह का भी प्रयास किया।उच्चतम न्यायालय की 9 सदस्यीय पूर्णपीठ 16 नवम्बर,1992 को दो तिहाई बहुमत से 27 प्रतिशत ओबीसी कोटा को संवैधानिक करार दिया।केन्द्र सरकार ने 8 सितम्बर,1993 को सरकारी सेवाओं में 27 प्रतिशत ओबीसी कोटे के लिए अधिसूचना जारी किया।

2006 से केंद्रीय सरकार ने उच्च शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण शुरू किया।यह साहसिक निर्णय तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह जी ने लिया।इसके कारण उन्हें मंत्री पद गंवाना भी पड़ा था।

उच्च वर्गों द्वारा उच्च व केन्द्रीय शिक्षण संस्थानों में ओबीसी के 27 प्रतिशत कोटा को चुनौती दी गयी।10 अप्रैल,2008 को इसे वैधानिक करार दिया गया।2008 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने “क्रीमी लेयर” की अवधारणा दी जिसके तहत आर्थिक रूप से सशक्त लोगों को आरक्षण से बाहर रखा जाये।निर्णय दिया कि इसे प्रत्येक 3 वर्ष पर संशोधित किया जाना चाहिए ।इसकी वर्तमान सीमा 8 लाख रूपए प्रतिवर्ष है |

2019 में 103वें संविधान संशोधन के तहत उच्च वर्गों में भी आर्थिक रूप से पिछड़े (ईडब्ल्यूएस) व्यक्तियों को 10% आरक्षण की व्यवस्था दी गई।वर्तमान में ओबीसी संगठन जातिगत जनगणना व एससी, एसटी की भाँति समानुपातिक कोटा की माँग कर रहे हैं।जब ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत कोटा देकर 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा को लाँघा जा चुका है तो ओबीसी को जनसंख्या अनुपात में कोटा देने में आनाकानी उचित नहीं है।