निषाद बने सभी के खेवनहार,पर किसी दल ने नहीं किया इनके साथ न्याय: लौटन राम निषाद

लखनऊ। निषाद समुदाय की मल्लाह, केवट, मांझी, धीवर, कश्यप, कहार, गोड़िया, धुरिया, बाथम, रायकवार आदि सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक व राजनैतिक रूप से काफी पिछड़ी हुई हैं। उत्तर प्रदेश में मझवार, तुरैहा, गोड़, बेलदार,खैरहा, खोरोट आदि जातियाँ 10 अगस्त, 1950 की राष्ट्रपति की प्रथम अधिसूचना के आधार पर अनुसूचित जाति में शामिल की गई हैं। मांझी, मल्लाह, केवट, राजगौड़, मुजाविर, गोड़ मझवार आदि सेन्सस ऑफ इण्डिया -1961 के अनुसार मझवार की पर्यायवाची व वंशानुगत नाम हैं। कई समाजशास्त्रियों व मानवशास्त्रियों ने उक्त सभी जातियों को एक दूसरे की पर्यायवाची व आदिवासी जाति करार दिया है। परन्तु अभी तक निषाद, मछुआ समुदाय की जातियों को सामाजिक न्याय नहीं मिला।

राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ.लौटनराम निषाद ने बताया कि निषाद मछुआ समुदाय की जातियों का परम्परागत पुश्तैनी पेशा मत्स्य पालन, मत्स्याखेट व शिकारमाही, बालू, मौरंग खनन, सिंघाड़ा उत्पादन व नदियों की कछार में जायद की खेती रहा है। परन्तु सरकार की गलत नीतियों के कारण निषाद मछुआरों के परम्परागत पेशों पर मत्स्य माफियाओं, बालू व भू-माफियाओं का कब्जा हो गया है। उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण में इस समाज की आबादी 12.91 प्रतिशत है और ये जातियां उ.प्र. की 157 सीटों पर विशेष प्रभावशाली व निर्णायक हैं। सभी दलों ने बारी-बारी इनको आरक्षण का लालीपॉप दिखाकर सरकारें बनाया, परन्तु किसी ने भी इन जातियों के साथ न्याय नहीं किया। भाजपा व इसके आनुषांगिक संगठन चुनाव के समय श्री राम व निषादराज की मित्रता का हवाला देकर वोट लिया परन्तु सरकार बनने पर निषाद समाज के साथ दोयमदर्जे का बर्ताव किया।

निषाद ने बताया कि योगी कस नेटडितव में भाजपा सरकार बनने पर निषाद समाज अधिकार विहीन हो गया।योगी सरकार ने ई-टेंडरिंग की व्यवस्था कर बालू मोरम खनन व खुली बोली द्वारा मत्स्य पालन पट्टा का अधिकार निषादों से छीन लिया गया। विभिन्न दलों ने समय-समय पर केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजा व चुनाव घोषणा पत्र में वायदा किया।परन्तु केन्द्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार के प्रस्तावों पर सकारात्मक कदम नहीं उठाया।जिसके कारण यह समाज सामाजिक अन्याय का शिकार हो रहा है।

निषाद ने बताया कि कांग्रेस ने विधान सभा चुनाव-2007 में अन्य राज्यों की भांति उ.प्र. की निषाद / मछुआ समुदाय की जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने का वायदा किया था।10 मार्च, 2004 को सपा सरकार ने निषाद, मछुवा समुदाय की 13 जातियों को अनुसूचित जाति शामिल करने का प्रस्ताव व 31 दिसम्बर, 2004 को 403 पेज का इथनोग्राफिकल सर्वे रिपोर्ट केन्द्र सरकार को भेजा। 4 मार्च, 2008 को मुख्यमंत्री मायावती ने निषाद मछुआ सहित 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए प्रधानमंत्री के नाम अर्द्धशासकीय पत्र भेजा।

भाजपा ने विधान सभा चुनाव- 2012 के चुनाव घोषणा पत्र व भाजपा संकल्प पत्र में वायदा किया था कि भविष्य में सरकार बनने पर निषाद मछुआ समुदाय की जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाया जायेगा।5 अक्टूबर, 2012 को दिल्ली के मावलंकर आडिटोरियम में मछुआरा दृष्टिपत्र / फिशरमेन वीजन डाक्यूमेन्ट्स जारी करते हुए भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी व स्व. सुषमा स्वराज ने वायदा किया था कि 2014 में सरकार बनने पर आरक्षण की विसंगति को दूर कर देश के सभी मछुआरा जातियों को एससी/एसटी का दर्जा दिलाया जायेगा। आज उत्तर प्रदेश व केन्द्र में भाजपा की सरकार होने के बाद भी निषाद, मछुआरा समाज की जातियों को न्याय नहीं मिल रहा है।उन्होंने अनुसूचित जाति में शामिल मझवार,तुरैहा, गोंड़ को परिभाषित कर मल्लाह,केवट,मांझी,बिन्द, धीवर, धीमर,तुरहा,गोड़िया,कहार,रायकवार आदि को अनुसूचित जाति का आरक्षण देने,मत्स्य पालन को कृषि का दर्जा देने,मत्स्य पालन का 10 वर्षीय पट्टा पुश्तैनी पेशेवर निषाद मछुआरा जातियों को देने की माँग किया है।