Wednesday, September 17, 2025
उत्तर प्रदेश

वर्तमान सरकार छल-कपट,छद्म परिवर्तित तरीके से सामंतवादी व्यवस्था को लागू कर रहने में जुटी

“सरकरी सेवाओं में दक्षता सुनिश्चित करने के लिए स्क्रिनिंग कर अनिवार्य सेवानिवृत्ति ओबीसी,एससी को बाहर करने की साज़िश

लखनऊ,6 जुलाई। सरकारी सेवाओं में दक्षता सुनिश्चित करने के नाम पर 50 साल के कर्मचारियों की अनिवार्य सेवानिवृति हेतु स्क्रीनिंग करने के आदेश के पीछे उत्तर प्रदेश सरकार का मकसद क्या है? कर्मचारियों के वार्षिक प्रवृष्टि का प्राविधान पहले से है और सभी कर्मचारी जानते हैं कि काम की गुणवत्ता के बजाय, चाटुकारिता, जाति -बिरादरी, और निजी लाभ लेकर वार्षिक प्रवृष्टियाँ लिखी जाती हैं। अपवादों का प्रतिशत बहुत कम है। ऐसे सरकारी तंत्र में जहां आरक्षण के प्रति उच्च वर्ग में जहर फैला हो, जहां ओबीसी,एससी, एसटी और अल्पसंख्यक अधिकारियों के प्रति लगातार भेदभाव किया जाता हो, वहां स्क्रीनिंग के कि शिकार कौन होंगे?भारतीय पिछड़ा दलित महासभा के राष्ट्रीय महासचिव लौटनराम निषाद ने सरकार के कार्मिक अनुभाग-1 के द्वारा जारी पत्र के संदर्भ में कहा कि इसके द्वारा ओबीसी,एससी, माइनॉरिटी की गलत प्रविष्टि दिखाकर स्थाई सेवानिवृत्ति के माध्यम से बाहर कर मनुवादी व सामंतवादी व्यवस्था को कायम करना असल मकसद है।

निषाद ने कहा कि वर्तमान में लगभग 70 प्रतिशत उच्च पदों और लगभग 80 प्रतिशत विभागाध्यक्षों के पदों पर ओबीसी,एससी और अल्पसंख्यक अधिकारी नहीं हैं तो फिर इन वर्गों के साथ कौन न्याय करेगा? न्याय करने का पैमाना क्या होगा? सिफारिशों या शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारियों की मर्जी से मिलती नौकरियों में कार्यों के मूल्यांकन में किसकी मर्जी चलेगी? क्या आने वाले दिनों में चाटुकारिता, भ्रष्टाचार, जी हजूरी आदि के सहारे कर्मचारी अपना कार्यकाल नहीं पूरा करना चाहेंगे?

उच्च पदों पर जिन जातियों का वर्चस्व है, क्या उनके बिरादरी के अधिकारी स्क्रीनिंग में आएंगे? उनकी छंटनी होगी? या वंचित वर्ग के कर्मचारियों के विरुद्ध प्रायोजित शिकायतें बढ़ेंगी, जिनसे स्क्रीनिंग का काम आसान हो जाए?उन्होंने साफतौर पर कहा है कि इसके पीछे सरकार की मंशा बिल्कुल ठीक नहीं है।सामान्य वर्ग के वे विभागाध्यक्ष व उच्च पदस्थ अधिकारी जो सरकार व मुख्यमंत्री के खास हैं,स्क्रिनिंग के नाम पर वंचित वर्ग के अधिकारियों, लोकसेवकों की गलत वार्षिक प्रविष्टि लिखकर बाहर का रास्ता दिखा देंगे,यह जातिवादी सरकार का मकसद है।

निषाद ने कहा कि क्या यह आशंका निर्मूल है कि 50 साल के बाद स्क्रीनिंग द्वारा छंटनी के शिकार अंततः ओबीसी,एससी, एसटी और अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारी ही ज्यादा होंगे? यहां 50 वर्ष की निर्धारित सीमा पर भी गौर करने की जरूरत है। इस उम्र में उच्च पदों पर प्रमोशन मिलता है। ऐसे में ओबीसी,एससी और अल्पसंख्यकों को उच्च पदों से वंचित करने के लिए इस नीति का दुरुपयोग नहीं होगा, इसकी गारंटी कहाँ है? या तब भी आरक्षण के प्रतिशत के अनुसार हर वर्ग के कर्मचारी बने रहेंगे, इसका प्राविधान कहीं है? नहीं है। तब हम क्यों न माने कि इस आदेश का दुरुपयोग कर, वंचितों को ठिकाने लगाया जाएगा, जिससे उच्च पदों पर केवल उच्च वर्ग के अधिकारी/कर्मचारी बैठे रहें? यह नीति भी अंततः आरक्षण से नौकरी में आये वंचितों को बाहर करने का उपक्रम साबित होगा। सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों की 50 वर्ष की सेवा पर दक्षता प्रमाणीकरण के लिए किए स्क्रीनिंग के नाम पर प्रतिकूल प्रविष्टि व स्थाई सेवानिवृत्ति की जद में 95 फीसदी ओबीसी,एससी, माइनॉरिटी के ही लोकसेवक आएंगे। उत्तर प्रदेश सरकार की यह स्क्रिनिंग ओबीसी,एससी को बाहर का रास्ता दिखाने का यह सुनियोजित षडयंत्र का हिस्सा है।

चौ.लौटनराम निषाद
राष्ट्रीय महासचिव-भारतीय पिछड़ा दलित महासभा