सतयुग में पापी का किया गया पाप पूरे राष्ट्र को लगता है: धीरशान्त

मुरादाबाद। सिविल लाइंस मन्दिर के निकट आयोजित कार्तिक मास परायण श्रीमद्भागवत कथा को विश्राम देते हुए, कथा व्यास एवं मठ-मन्दिर विभाग प्रमुख धीरशान्त दास अर्द्धमौनी ने बताया कि सतयुग में पापी का किया गया पाप पूरे राष्ट्र को लगता है, त्रेता युग में एक पापी का पाप पूरे ग्राम को लगता है, द्वापर में कुल को और कलयुग में केवल पाप करने वाले को लगता है।

सब शास्त्रों का सार भगवान् की शरणागति ही है। ‘सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए॥ अपनी पैदा की हुई चीज किसे प्यारी नहीं लगती है। हम सब भगवान् के बनाये हुए हैं तो सहज ही हम सब भगवान् के प्रिय हैं। हमने ही अपनी प्रियता को भगवान् के सिवाय नाशवान् वस्तुओं में बाँट दिया। भगवान् की शरणागति छोड़कर असत्-नाशवान् वस्तुओं का आश्रय ले लिया और अपने आपको असहज, अशान्त, असुरक्षित और दुःखी कर लिया। यदि हम नाशवान् वस्तुओं के आश्रय का त्याग कर दें तो भगवान् की शरणागति का अनुभव हो जाय।
भगवत प्राप्ति में भविष्यकी आशा महान् बाधक है। सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति और भगवत्प्राप्ति की रीति अलग-अलग है। जिन भगवान् को साधक प्राप्त करना चाहता है, वे भगवान् पहलेसे सर्वत्र परिपूर्ण हैं, भगवान् को नया बनाना नहीं है, कहीं से लाना नहीं है। भगवान् के बिना साधक रह नहीं सके तो सर्वत्र परिपूर्ण भगवान् उसके सामने प्रकट हो जाते हैं। माना कि वर्तमानज्ञमें भगवत्प्राप्ति की ऐसी रुचि नहीं है, लेकिन कम-से-कम ‘मेरे ऐसी रुचि जाग्रत् हो जाये। ऐसी भूख तो साधककी होनी चाहिए। तब ऐसी लगन भी भगवान् कृपा करके दे देते हैं।

सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।

कथा में अरविन्द गुप्ता, निगम गुप्ता, निष्ठा गुप्ता, वंश गुप्ता, पं० प्रेम शंकर शर्मा, सतेन्द्र कुमार शर्मा, आशीष स्वरुप शर्मा, सुधा शर्मा, सपना चौधरी, अंकुश सिंह, देवांश अग्रवाल आदि ने सहभागिता की।