हरि भजन ही समस्त दोषों को दूर करने वाला है: धीरशान्त
मुरादाबाद। खत्री हितकारिणी सभा द्वारा शहनाई मण्डप सिविल लाइंस में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में कथा व्यास आचार्य धीरशान्त दास’अर्द्धमौनी’ ने बताया कि हरि भजन समस्त अमंगलों को नष्ट करने वाला है। विषाद, चिन्ता, भय आदि भगवान् की ओर दृष्टि न रहने से होते हैं। भगवान् की ओर दृष्टि रहनेसे तो निर्भरता और निश्चिन्तता—ये दो बातें स्वाभाविक आती हैं।
चंचल मन को शान्त और एकाग्र करने के लिये एक ही रुप की उपासना आवश्यक होती है अनेकों रुपों की उपासना से तो चित् की चंचलता और भी बढ़ जाती है।
भगवान् इस सम्पूर्ण जगत् के महाकारण हैं- ऐसा दृढ़ता से मानना ‘ज्ञान’ है और भगवान् के सिवाय दूसरा कोई कार्य – कारण तत्व नहीं है -ऐसा अनुभव होना ‘विज्ञान’ है।
लोग बड़ी शौक से महंगे – महंगे कुत्ते पालते हैं , कुत्ता चाहे देशी हो या विदेशी है उसका काटना एवं चाटना दोनों ही घातक होता है ! ठीक उसी प्रकार निकृष्ट मनुष्य होते हैं इनकी न तो दोस्ती ही अच्छी होती है और न ही दुशमनी यदि ऐसे व्यक्ति दुश्मन हैं तो वे नीचता की पराकाष्ठा को भी पार सकते हैं और यदि दुर्भाग्य से ऐसे लोगों से मित्रता भी हो गयी है तो अवसर पाकर आपका गला भी काट सकते हैं।
दुःख को सहन करते रहना दुःख का भोग है। दु:ख के कारण की खोज करना दु:ख का प्रभाव है। परमात्मतत्त्व से विमुख हुए बिना कोई सांसारिक भोग, भोगा ही नहीं जा सकता और रागपूर्वक सांसारिक भोग भोगने से मनुष्य परमात्मा से विमुख हो ही जाता है। भगवान की भक्ति अर्थात कृष्ण भावनामृत मनुष्य को परमानन्द प्रदायक है।
जिनका भगवान में तीव्र प्रेम होता है या परम श्रद्धा होती है अथवा जिनकी भगवान से मिलने की तीव्र इच्छा या लगन होती है, उन्हें तो भगवान के दर्शन तुरंत हो ही जाते हैं-यह उचित है और न्याय है। ऐसे भक्तों को दर्शन देने के लिये भगवान बाध्य हैं।
जैसे वृक्ष के मूल में जल डालने से सम्पूर्ण वृक्ष स्वत: हरा हो जाता है, ऐसे ही संसार रूपी वृक्ष के मूल भगवान का चिन्तन करने से, भजन करने से संसार मात्र की सेवा स्वत: हो जाती है।
सभा में महेन्द्र कुमार महरोत्रा, दर्शना खन्ना, डा० गोपेश महरोत्रा, मनु महरोत्रा, इन्दु खन्ना, डा० जी एन टण्डन, पारस टण्डन, जवाहर खन्ना, काली माता मंदिर, लालबाग का आरती मण्डल, खत्री हितकारिणी सभा एवं महिला खत्री हितकारिणी सभा ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, परिजनों को सांत्वना दी।